सुनिए कान, मन, आंखों से’!

✍ दिलीप वसंत बेतकेकर

धोंडोजी और गुंड्रोजी एक बार रास्ते में मिले, आपस में बातचीत होने लगी! धोंडोजी गुंडों जी से पूछने लगे- कहो गुंडों जी, क्या आप बाजार गए थे?

उत्तर देते हुए गुंडों जी बोले- जी नहीं, जरा बाजार गया था।

इस पर धोंडो जी ने कहा अच्छा ऐसा? मुझे लगा कि तुम बाजार गए थे।z`

दोनों के बीच संवाद सुनकर हंसी तो आई ही होगी ना?

कोई बात नहीं, खूब हंसिए। परन्तु हंसना पूर्ण होने पर स्वयं को एक प्रश्न पूछिए मेरा सुनना कैसा है? क्या मैं वास्तव में सुनता हूँ?

मैं हियरिंग करता, लिसनिंग करता क्या? (Hearing अथवा listening).

अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए केवल सुनना….. केवल ऊपरी तौर पर.. उपयोगी नहीं होता। सुनना सरल है जिस हेतु केवल कान की आवश्यकता होती है। परंतु ‘श्रवण’ करने के लिए सतर्कता पूर्वक सुनने के लिए केवल कान ही पर्याप्त नहीं होते।

Hearing is with ears, but listening is with mind! इतना ही नहीं, फिर – Listening is an art. Listen with your eyes also!

यह जो सुनना है (Listen) इस हेतु एक शर्त है। सुनते हुए बोलना नहीं। बहुतों की सामने वाले व्यक्ति की पूरी बात सुनने की आदत नहीं होती, धैर्य, संयम नहीं होता है। कब हम बोलना प्रारंभ करते हैं ऐसा लगता है। बस हम अब क्या बोलेंगे इसकी पूर्व तैयारी मन में चलती रहती है। इसीलिए आवाज भले ही न हो परन्तु स्वयं के साथ- स्वगत – बोलना चलता रहता है। इसलिए यह प्रथम शर्त है मौन रहना! ‘Listen’ और ‘Silent’ इन दोनों शब्दों में भी एक मजेदार साम्य है। दोनों ही शब्दों, में अक्षर एकसमान हैं, अक्षर और संख्या भी! ध्यान में आया ही होगा!

You cannot listen if you are talking, and if you are talking you are not listening, ऐसा कहते हैं।

अध्ययन-अभ्यास से प्रभावी सुनना आत्मसात हो सकता है। करना ही पड़ेगा। Good listener is not only popular but learns much! हमें मुंह एक और कान दो मिले हैं। अर्थात हम बोलने की तुलना में दुगुना सुनें!

संस्कृत शास्त्रज्ञ कहते हैं –

ईक्षण द्विगुणम प्रोक्त

भाषणस्येति वेधसा

जिव्ह्या लेकैत निर्मिता

अक्षणी द्वे मनुष्यानाम।

श्री गणेश जी के विशाल कानों का भी रहस्य यही है। सुनिए ज्यादा कान, आंख और मन, इनका त्रिवेणी संगम बनाकर सुनिए! सुप्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे के अनुसार मुझे ‘सुनना’ बहुत पसंद है। सतर्कता पूर्वक सुनने से मुझे बहुत सीखने को मिला। बहुसंख्य लोग सुनना पसंद नहीं, करते यही उनके लिए समस्या बन जाती है।

कक्षा में शिक्षकों के व्याख्यान सुनते हुए उनके किसी शब्द से दूसरा कुछ याद आ जाता है, दूसरे से तीसरा और इस प्रकार मन किसी अन्य दिशा में भटक जाता है और हम मूल शब्द अथवा प्रसंग को याद नहीं रख पाते। इसलिए शिक्षक के व्याख्यान प्रवाह के साथ ही हमें अपनी नौका चलाना सुलभ हो इसलिए व्याख्यान के मुद्दे, बिंदु, प्रवाह के साथ टिप्पणियां, सिलसिलेवार, कॉपी में उतार लेना उचित होगा।

ठीक से, सतर्कता से, सुउद्देश्य, सुनने की आदत होनी चाहिए, अभ्यास चाहिए। यह कष्ट-साध्य, – अर्थात् प्रयत्नों से साध्य होने का योग्य कौशल्य है।

मुझे कुछ महत्वपूर्ण उपयोगी ज्ञानवर्धक सामग्री प्राप्त होगी इस अभिलाषा से, सकारात्मक दृष्टि से सुनने की आदत डालें, पूर्वाग्रह न रखते हुए, खुले मन से, सुनने का धैर्य रहे। श्रवण कौशल्य की क्षमता वृद्धि हेतु दिनभर में, कम से कम, पांच मिनट का मौन रखने का अभ्यास करें। आंख मूंद कर शांति से स्थिर बैठकर आजू बाजू की आवाज- पंखे, नारे, वाहन, पक्षी, मानव आदि के- केवल सुनें; उनका अर्थ लगाने का प्रयास न करें। इससे अगला पायदान – अर्थात अनेक आवाजों में से एक ही आवाज चुनकर उस पर केन्द्रित होना! अब अगला पायदान है उस आवाज की लय से समरस होने का प्रयास करना और उसमें से सुनना, एकाध नामजप सुनना!

बड़ी बड़ी कम्पनियों के उच्च अधिकारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि करने हेतु निरंतर कार्यशालाओं का आयोजन होता है। अनेक विषय रखे जाते हैं उनमें चर्चा हेतु! उनमें किस प्रकार सुनें, क्यों सुने ऐसे विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यवसायिक यश प्राप्ति हेतु श्रवण कौशल्य कितना महत्वपूर्ण है इस संदर्भ में राबर्ट बाडन पॉवेल कहते हैं – If you can make listening and observation your occupation, you will gain much more than you can by talk.

सीखना हो तो से ध्यान से सुनो, सीखना नहीं हो तो मात्र बोलो, ऐसा एक संकेत दिया जाता है। प्राथमिक स्तर की शालाओं से ही सुनने के लिए पाठ पढ़ना होगा। परन्तु वर्तमान स्थिति के अनुसार अभ्यास पाठ्यक्रम को पूरा करने के उद्देश्य पूर्ति के कारण अतिरिक्त समय कहां मिलता है? कुछ की दृष्टि में तो यह समय का अपव्यय ही कहलाएगा! पालक-शिक्षकों की यह मानसिकता में बदलाव आएगा भी या नहीं ये समय बताएगा।

One who fails to listen fails to learn.’ यह सावधान करने वाला संकेत ध्यान में रखने योग्य है।

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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