– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
गत पत्र से हमारी बातचीत का क्रम प्रारम्भ हुआ था कुछ स्मरणीय मुलाकातों का। आओ इस बार चर्चा करें एक और ऐसी ही मुलाकात की जो स्मरणीय तो है ही शिक्षाप्रद भी है।
हमारे ‘देवपुत्र’ परिवार की प्रसन्नता और उत्साह देखते ही बन रहा था। हम सब यह सोच-सोचकर ही प्रसन्न हुए जा रहे थे कि आज श्रद्धेय सुदर्शन जी हमारे यहाँ पधारने वाले हैं। थोड़ी ही देर में प्रतीक्षा समाप्त हुई। मा. सुदर्शन जी हमारे बीच थे। देवपुत्र के कुछ अंक उनके सामने रखे और उनसे मागर्दशन चाहा। और अगला आधा घंटा सम्पूर्ण देवपुत्र परिवार के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गया। बहुत विस्तार से तो चर्चा नहीं करूंगा। किन्तु उस मुलाकात की एक शिक्षा अवश्य तुमसे भी बाँटना चाहूँगा। हमने उनसे जानकारी हेतु पूछा- ‘भाई सा., एम.जी. रोड लिखे इस पते में ‘रोड’ शब्द ठीक है या ‘रोड़’। वे धीमे से मुस्करा कर बोले- ‘रोड’ और ‘रोड़’ दोनों ही के बदले ‘मार्ग’ शब्द ही उपयोग किया जाए तो शायद सबसे अधिक ठीक रहेगा।
फिर बोले संक्षिप्त नाम एम.जी. की अपेक्षा महात्मा गांधी मार्ग पूरा उपयोग करें। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि भोपाल में टी.टी. नगर के रहवासी और यहाँ के रिक्शे वाले भी यह नहीं जानते कि उस नगर का नाम तात्या टोपे नगर है। साथ ही हमसे यह भी अपेक्षा की कि हम भविष्य में टीचर, मम्मी, पापा, स्कूल जैसे सहज ही प्रयोग होने वाले आंग्ल भाषा के शब्दों के स्थान पर इनके विकल्प वाले हिन्दी भाषा के शब्दों का प्रयोग करें। यही हमारे लिए गौरव का कारण रहेगा।
तो बेटे आपसे भी अब यह अपेक्षा रहेगी कि आप भी इस शिक्षा को ध्यान में रखेंगे और प्रयास करेंगे कि बोलचाल में यथा सम्भव हिन्दी भाषा के शब्दों का ही प्रयोग करेंगे।
– तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)