– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
अनायास समाचार पत्रों में पढऩे को मिला कि मा. आचार्य विष्णुकांतजी शास्त्री अब हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल होंगे। पढ़ते ही यह तय कर लिया कि तुमसे इस पत्र में उनसे हुई भेंट की चर्चा करूँगा। तुमको ज्ञात होगा कि श्री शास्त्री जी कलकत्ता में रहते हुए समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक वर्षों से सक्रिय रहे। राजनीतिक जीवन में विधान सभा तथा राज्य सभा के सदस्य भी रहे। अखबारों से जब एक दिन जानकारी प्राप्त हुई कि श्री शास्त्रीजी एक साहित्यिक कार्यक्रम में व्याख्यान हेतु इन्दौर पधारे हैं तो मिलने की इच्छा बलवती हो उठी। भेंट होने पर जितना सहज-सरल व्यक्तित्व मिला उतनी ही आसानी से ‘देवपुत्र’ कार्यालय में आने हेतु सहर्ष तैयार भी हो गए।
उनका देवपुत्र कार्यालय में आगमन सम्पूर्ण देवपुत्र परिवार के लिए अत्यन्त प्रसन्नता का विषय था। हम सबके बड़े भैया अर्थात् मा. अष्ठाना जी ने देवपुत्र के कुछ अंक उन्हें अवलोकनार्थ दिए। 80 हजार की प्रसार संख्या और पत्रिका का स्वरूप देखकर उन्होंने जब बड़े भैया को इसकी बधाई दी तो मा. अष्ठानाजी ने अपने स्वभाव के अनुसार कहा ‘इस सबका श्रेय तो हमारे प्रधानाचार्य, आचार्य परिवार भैया/बहिन और साहित्यकार बंधुओं को जाता है।’ यह बात सुनकर आचार्य विष्णुकांत जी शास्त्री के मुख से तुलसीदास जी की एक चौपाई निकल पड़ी –
निज दूषण गुण राम के समुझे तुलसीदास।
होय भलो कलिकालहू उभय लोक अनयास।।
और साथ ही उन्होने स्वयं द्वारा रचित चार पंक्तियाँ भी सुनाई। ये पंक्तियाँ भी उसी चौपाई का भाव लिए हुए हैं। तुम्हारे लिए ये पंक्तियाँ यथावत् इसीलिए उल्लेखित कर रहा हूँ ताकि मेरी तरह तुम भी इस भाव को अपने जीवन और आचरण में उतार सको। पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –
बड़ा काम कैसे होता है पूछा मेरे मन ने। बड़ा लक्ष्य हो, बड़ी तपस्या, बड़ा हदय मृदुवाणी।।
किन्तु अहं छोटा हो, जिससे सहज मिले सहयोगी। दोष हमारा, श्रेय राम का, यह प्रवृत्ति कल्याणी।।
आओ हम भी प्रयास करें यह भाव जीवन में सदा बना रहे तभी तो हम भी बड़े काम कर पाएंगे, इस शिक्षा ने शास्त्रीजी से हुई मुलाकात को अविस्मरणीय बना दिया।
– तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)