– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
तुमको यह जानकारी तो है ही कि 1813 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व स्तरीय सर्वधर्म सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। आप कई बार, अनेक स्थानों पर यह भी पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार वहाँ अपने राष्ट्र और अपनी संस्कृति की विजय पताका एक युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने फहराई थी। और किस तरह मारग्रेट नोबल उनके प्रभाव से ‘भगिनी निवेदिता’ बनी थी।
आओ आज तुमको एक भिन्न किन्तु वैसे ही घटनाक्रम से अवगत कराते हैं। इस घटनाक्रम के नायक हैं स्वामी रामतीर्थ। पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मे बालक तीर्थराम का बचपन अत्यन्त कष्ट में बीता। माँ का आँचल तो जन्म के कुछ दिनों के बाद ही दुर हो गया था। ऐसे ही संघर्षों में पले बढ़े इस बालक ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1901 में सन्यास ले लिया। विवेकानन्द जी से तो वे प्रभावित थे ही किन्तु उनके जीवन की घटनाओं का साम्य भी बहुत रहा।
1902 में जब शिकागो जैसा ही एक विश्वधर्म सम्मेलन जापान के टोकियो शहर में आयोजित हुआ। वहाँ भी भारत की विजय पताका स्वामी रामतीर्थ ने फहराई। विदेश में हजारों शिष्य बने और हिन्दू संस्कृति के अनुयायी बने। अमेरिका में अंग्रेजी में दिया गया भाषण हो या मिस्र की मस्जिद में दिया गया फारसी भाषण, इतने प्रभावशाली रहे कि लोगों ने उन्हें पलकों पर बैठाया। विद्वान तो थे ही स्वाभीमानी भी उतने ही थे। अपने आपको वे बादशाह कहते थे।
उनके जीवन के अनेक प्रसंगों ने उनका यह गुण प्रकट किया। अमेरिका में अंग्रेजों को दिया गया वह सटीक जवाब तो आपको याद ही होगा जो उनकी पगड़ी पर किए गए व्यंग्यात्मक प्रश्न पर दिया गया था- “पगड़ी मेरे राष्ट्र और संस्कृति का प्रतीक है इसलिए इसे तो मस्तक पर ही धारण करूंगा। हाँ, आपके दिए जूते जरूर मेरे पैरों में है”। ऐसा ही एक स्वाभिमान को जगाता प्रसंग लोगों के सामने तब आया जब वे विश्व भ्रमण के बाद भारत लौटकर आ रहे थे। जब उन्हें पता लगा कि भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन भी उसी जहाज से लौट रहे हैं तो उन्होंने स्पष्ट घोषणा कर दी- “एक जहाज में दो बादशाह एक साथ यात्रा नहीं कर सकते। मैं इस जहाज से यात्रा नहीं करूंगा”।
कैसा स्वाभिमान? कितनी निडरता? सचमुच भारत भूमि धन्य हो गई ऐसे सपूतों से। श्रीमती वैलमैन के शब्दों में-“मुझे उन्होंने जब माँ कहा तब मुझे लगा कि मैं जगत माता हूँ”। एक अंग्रेज महिला जब अपने को जगतमाता मान लेती है तो जिस माता की गोद में उनका जन्म हुआ वह तो सम्पूर्ण विश्व की जगतमाता है ही। ऐसी पवित्र भारत माता को नमन करें और प्रेरणा लें हम भी पुन: रामतीर्थ सा गौरव अपनी माता को दिला पाएँ।
– तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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