बरसात हो सवालों की!

 – दिलीप वसंत बेतकेकर

“बिल्ली की आँखें रात्रि के समय क्यों चमकती हैं, पापा!”

राजू ने समाचारपत्र पढ़ते कुर्सी पर बैठे हुए अपने पिताजी से पूछा! पिताजी ने समाचारपत्र पर झुका अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाते हुए, राजू की ओर आँखें गड़ाते हुए प्रति प्रश्न किया –

“ये प्रश्न परीक्षा के लिये है क्या?”

“नहीं”! राजू ने कहा।

“तो फिर क्यों पूछ रहे हो बेकार के प्रश्न? पढ़ाई के विषय देखो। चलो पढ़ाई करो”! पापा ने राजू को डांटते हुए कहा।

बेचारा राजू चुपचाप पढ़ाई करने बैठ गया। उसकी आँखें पुस्तक देख रही थीं, परन्तु मन देख रहा था बिल्ली की चमकती आँखें!

प्रश्न पूछने वाले बालक शैतान, उद्दण्ड, मस्तीखोर होते हैं? ऐसा अनेक लोग समझते हैं। वास्तव में प्रश्न पूछने वाले बालक उद्दण्ड होते हैं? प्रश्न पूछना अर्थात् शैतानी है क्या? उद्दण्डता है क्या?

ये हुई पापा की बात! अब शिक्षकों के बारे में सोचें!

लीला पाटिल की पुस्तक में एक मजेदार हास्य चित्रा था। प्रश्न पूछने वाले एक विद्यार्थी से शिक्षक कहते हैं – “मुझे पाठ पूरा करना है। तुम्हारे ऐसे प्रश्नों के उत्तर बताने के लिये समय नहीं है मेरे पास!”

पाठ समाप्त करने की धुन में वे बच्चों की जिज्ञासा को ही समाप्त कर रहे हैं, एक पाप कर रहे हैं। इस बात का एहसास अनेक शिक्षकों को नहीं होता है। अध्यापन का ‘कर्म’ करते हुए अध्ययन प्रक्रिया का ‘कर्ता’ ही बेजान हो रहा है। इसका ध्यान उन्हें नहीं रहता है।

अपने पूछे गये प्रश्न, शंका को इस प्रकार का प्रतिसाद मिलने पर विद्यार्थी क्या सोचते होंगे? क्या मनःस्थिति होगी उनकी?

बच्चों के मन में अनेक प्रश्न उभरते हैं। तीन वर्ष आयु का बालक एक वर्ष की अवधि में लगभग साढ़े तीन हजार प्रश्न पूछता है, ऐसा मनोवैज्ञानिक कहते हैं। इनमें से कितने प्रश्नों के उत्तर उन्हें मिलते होंगे? आसपास दिखने वाली प्रत्येक वस्तु को बच्चा अत्यंत कौतूहल से देखता है। मन में प्रचण्ड जिज्ञासा और आश्चर्य होता है। परन्तु दुर्भाग्य से उनके प्रश्नों के उत्तर देकर उनका समाधान करना वरिष्ठजन पसंद नहीं करते। “कुछ लोगों के पास उतना धैर्य, संयम नहीं होता है और वह एक ही आज्ञा देते हैं – “चुप बैठो”! बार-बार “चुप बैठो”, “बोलो मत”, ऐसी आज्ञाएं सुनकर बच्चे ‘चुप’ ही हो जाते हैं। ‘चुप बैठो’ संस्कृति की निर्मिति होती है। ऐसे ‘चुप’ बैठे बालक को आगे जाकर ‘बोलते’ करना कठिन हो जाता है। बच्चे स्वयं कोई प्रश्न नहीं पूछते और किसी ने प्रश्न पूछा तो चुप हो जाते हैं। घर में प्रश्नों की बौछार लगाने वाले बालक जब युवावस्था प्राप्त करने लगते हैं, उनका प्रश्न पूछना कम हो जाता है। माध्यमिक स्तर तक पहुंचने तक उनका प्रश्न पूछने का उत्साह पूरी तरह नष्ट हो जाता है और उच्च माध्यमिक स्तर तक पहुँचने पर तो वे जैसे गूंगे हो जाते हैं।

बच्चों के मन में सैंकड़ो प्रश्न और हज़ारों शंकाएँ रहती हैं। वे उन प्रश्नों और शंकाओं को प्रकट नहीं करते। कारण है बचपन से रोपी गई “चुप बैठो” संस्कृति! उनके मन में दो प्रकार के भय घर बनाए रहते हैं इसी भय के कारण ही वे धीरे-धीरे गंभीर हो जाते हैं। “कुढ़ते रहते हैं –

पहला भय, हमसे “कुछ गलती हुई तो…? और दूसरा भय, अन्य लोग हम पर हंसेंगे, उपहास करेंगे हमारा! इन दो प्रकार के भय के कारण उनकी जिज्ञासा दब जाती है, कौतूहल मुरझा जाता है।

चीनी भाषा में एक सुंदर कहावत है अंग्रेज़ी में वह इस प्रकार है – “If you ask a question, you become a fool for five minutes, But if you do not ask a question, you remain a fool for ever.” अर्थात् आपने सवाल पूछा तो लोग अधिकतम पांच मिनट के लिये हंसेंगे, उपहास करेंगे, परन्तु प्रश्न पूछा ही नहीं तो आप जीवनभर मूर्ख रहेंगे, उपहास के पात्र रहेंगे! “कुछ प्रश्न उठते ही न हों मन में, अथवा पूछे ही न जाएं, तो आगामी जीवन यात्रा, विकास अवरुद्ध होगा ही!

प्रश्न अपना मित्र, साथी, मार्गदर्शक होता है। ग्रांट लिचमैन प्रश्नों को – “Waypoints on the path of wisdom” मानते हैं। प्रख्यात लेखक रूडयार्ड किप्लिंग के अनुसार, “मैं अपने साथ छः निष्ठावान मित्र रखता हूँ, वे सदैव मुझे सहायता करते हैं। वे छः मित्र हैं क्या, कौन, कहां, कब, कैसे और क्यों!” वास्तव में कितने उपयुक्त हैं ये मित्र! “कुछ भी समस्या होने पर इन मित्रों को पुकारो, सदैव मदद को तैयार हैं वे! इन छः मित्रों से निकट मित्रता करने पर सहायता ली, तो अत्यंत उपयुक्त होगी।

इजिदोर राबी को भौतिक विज्ञान (फिजिक्स) का ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। उनसे प्रश्न पूछा गया, “आप वैज्ञानिक कैसे बने?”

बहुत सुंदर उत्तर मिला – “मैं जब शाला से लौटकर आता था, तब मेरी माँ प्रतिदिन याद से पूछा करती, “तुमने आज कक्षा में शिक्षक से कोई मौलिक सा प्रश्न पूछा क्या?” वे फिर बोले, “मेरी माँ के कारण ही मैं वैज्ञानिक बना”। बच्चों की माताएँ ध्यान रखेंगी न? शाला से घर लौटकर आने पर बच्चों को गृहकार्य के विषय में पूछताछ करने वाली माताओं के लिए इजिदोर राबी की मां ने एक सुंदर पाठ दिया है। प्रश्न का प्रकार, गुणवत्ता, मौलिकता, गहराई महत्वपूर्ण होती है।

फ्रेंच विचारक वॉल्टेअर कहते थे – “Judge a person by his question rather than his answer”. उत्तर से नहीं, व्यक्ति की सही पहचान (बुद्धि) उसके द्वारा पूछे गये प्रश्न से होती है।

प्रश्न अर्थात् चकमक; प्रश्न अर्थात् बुद्धि को धार लगाने वाला साधन। निरंतर उपयोग करने पर बुद्धि सदैव तीक्ष्ण, धारदार बनी रहेगी। सुयश पाने वाला मार्ग प्रशस्त होगा। इसीलिये अन्योनी रॉबिन्स कहते हैं – “Successful people ask better questions and as a result get better answers”. यशस्वी लोग उत्तम प्रश्न पूछते हैं इसीलिये उन्हें उत्तर भी उत्तम मिलते हैं, और वे उज्ज्वल यश प्राप्त करते हैं।”

प्रश्न मानव को जागृत करता है। प्रश्न के कारण नई-नई कल्पनाएं ध्यान में आती हैं। सृजन होता है। प्रश्न नये मार्ग, नये स्थान, पद्धति दर्शाते हैं। “कुछ लोग प्रश्नों के कारण हताश हो जाते हैं, हतोत्साहित हो जाते हैं। वास्तव में तो उचित और सकारात्मक दृष्टि से देखें तो प्रश्नोत्तर ‘ट्रिगर’ करते हैं – चालना देते हैं बुद्धि को।

जगप्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक जे.कृष्णमूर्ति के प्रश्न के सम्बन्ध में विचार अत्यंत मौलिक हैं। उनके अनुसार, उचित, सटीक प्रश्न पूछना यह उत्तर प्राप्त करने से भी अधिक महत्वपूर्ण है। प्रश्न अथवा समस्याओं को सुलझाना उस समस्या को उचित रूप से समझने से ही होता है। उत्तर प्रश्न में ही छुपा रहता है। वह प्रश्न के बाहर नहीं होता!”

प्रश्न पूछने हेतु बच्चों को प्रेरित करना चाहिये, प्रोत्साहित करना चाहिये। उनके सभी प्रश्नों के उत्तर पालकों के पास हों, आवश्यक नहीं। हो सकता है उत्तर नहीं दे पा रहे हों वे, परन्तु अपना अज्ञान छुपाए बिना खुले मन से प्रश्नों का स्वागत करना चाहिये। उत्तर मालूम न होने पर भी अच्छे प्रश्नों के लिये सराहना करना उचित होगा। “तुम्हारा प्रश्न महत्वपूर्ण है, अच्छा है किन्तु मुझे उत्तर मालूम नहीं, हम मिलकर उसका उत्तर ढूंढेंगे” ऐसा कहकर बच्चों के सहयोगी बनें।

अच्छे प्रश्न निर्मित करना और पूछना इसका कौशल्य प्राप्त होने पर कक्षा में बच्चे अधिक सक्रिय होकर अध्ययन करेंगे। सही अर्थ में अध्ययन करेंगे, फिर विषय “कुछ भी हो।

प्रश्न का कौशल्य केवल शाला-कॉलेज में ही शिक्षा के लिये प्रभावशाली होने के लिये महत्वपूर्ण नहीं। ये सीमित उद्देश्य कहलाएगा। ये कौशल्य आत्मसात् होने पर, जीवन में हर पल, इसकी सहायता मिलेगी, उपयोग होगा। वारेन बर्जर के अनुसार- “Knowing answers will help you in school, knowing how to question will help you in life.” जीवन शिक्षा की दृष्टि से प्रश्न-कौशल्य कितना महत्वपूर्ण है यह ध्यान में आया होगा! प्रश्न कौशल्य के सम्बन्ध में अल्बर्ट आइन्सटाइन शिक्षकों के लिये एक सुंदर और उपयुक्त संदेश देते हैं – तदुनसार, अधिकतर शिक्षक विद्यार्थियों को जो ज्ञात नहीं है, उसे पूछने में अधिकतर समय नष्ट करते हैं। प्रश्न पूछने की उचित पद्धति विद्यार्थी को क्या ज्ञात है अथवा क्या समझने की क्षमता है? ये जानने के उद्देश्य से प्रश्न पूछना होता है।

महान ग्रीक चिंतक प्लेटो इसकी पुष्टि करते हैं। उनकी दृष्टि में- “People have innate knowledge just need to be asked the right question. लोगों के पास नैसर्गिक ज्ञान तो होता ही है। उनको उचित और अचूक प्रश्न पूछना जानना चाहिये। आइन्सटाइन एक प्रश्न प्रति वर्ष पूछते थे। एक बार एक विद्यार्थी ने पूछ लिया कि वे वही प्रश्न बार-बार क्यों पूछते हैं? उत्तर में आइन्सटाइन ने कहा- “मित्रों, प्रतिवर्ष प्रश्न वही होगा किन्तु उत्तर बदलता रहता है।” कितना अर्थपूर्ण है यह उत्तर! जैसे-जैसे प्रगल्भता, चिन्तन में वृद्धि होती है, अनुभव भी समृद्ध होता है, तदनुसार “कुछ प्रश्नों के उत्तर भी बदलते जाते हैं। वे अधिक गहन, अधिक अर्थपूर्ण बनते जाते हैं।”

(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)

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