गोकुल में नन्हा कृष्ण पल रहा है, यह खबर कंस को मिली । उसके मन में भय उत्पन्न हुआ । वह घबरा गया और कृष्ण का वध करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रयास शुरू किए । अपने अनेक दुष्ट सरदारों को कृष्ण का वध करने के लिए भेजना शुरू किया । उसमें एक थी पूतना ।
पूतना छिपते-छिपाते गोकुल में पहुँची । उसने बाल कृष्ण को देखा । उसे अकेला देखकर उसको बहुत हर्ष हुआ । नन्हे कृष्ण को उठाकर उसने अपनी छाती से लगाया । अपना दूध पिलाना शुरू किया । वह दूध नहीं विष था । कुछ ही क्षणों में कृष्ण यह दुनिया छोड़कर चला जायेगा, ऐसा उसे पूरा विश्वास था । लेकिन हुई उल्टी बात । कृष्ण ने पूतना को ही इस संसार से विदा कर दिया ।
कृष्ण ने पूतना को अच्छी तरह से पहचान लिया था । उसका उद्देश्य ठीक तरह से समझा और उसे विफल किया । परन्तु क्या आज के नन्हे कृष्ण पूतना को जानते-पहचानते हैं? नन्हों की बात छोड दें, बड़े-बड़े लोग भी आज की पूतना को नहीं पहचान पा रहे हैं । घर-घर यशोदा, देवकी, नंद, वसुदेव आज की पूतना को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं । कैसा दुर्भाग्य और विडंबना ।
कृष्ण को मारने के लिए तो एक ही पूतना आयी थी । लेकिन आज सैंकडों पूतना हैं । घर-घर में उन्होंने प्रवेश कर लिया है । वह पूतना तो छिपकर आयी थी, आज की पूतना दिन दहाड़े, बड़ी तामझाम के साथ, खुलेआम घरों में प्रवेश करके आराम से निवास कर रही है । लोग उसको बुला-बुलाकर, निमंत्रण देकर अपने घर ले जा रहे हैं । केवल दूध ही नहीं वह अनेक प्रकार के विष, खाद्य पदार्थ खिला रही है, पिला रही है । आधुनिक माता-पिता भी बड़े प्यार से अपने कृष्ण कन्हैया को विष खाते गौरव से देख रहे हैं । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापन और प्रचार देखकर मोहित हुए अभिभावक अपने हाथों से अपने कृष्ण-बलराम, लव-कुश, प्रहलाद, ध्रुव, सीता-राधा को जहरीले पदार्थ खिला रहे हैं ।
उनके ध्यान में यह बात नहीं आ रही है कि यह सब ‘जंक’ है । उसमें पोषण युक्त कुछ नहीं । केवल खोखलापन है । यह खाकर बच्चों में बल निर्माण होने के बजाय दुर्बलता ही बढ़ जायेगी । जो रोग पचास-साठ साल का होने के बाद होते हैं वह सब शैशव और यौवनावस्था में बच्चों को ग्रस्त करेंगे, यह बात बिल्कुल ध्यान में नहीं आ रही है ।
अभिभावकों की बैठकों में हँसी-मजाक में मैं एक प्रश्न पूछता हूँ, मान लो, आपके घर एक साथ दो मेहमान आये । एक मेहमान आपके बच्चों के लिए घर में बनाकर कुछ खाद्य पदार्थ लाया और दूसरा कैडबरी, तो आपकी दृष्टि से ‘वी.आई.पी.’ मेहमान कौन होगा? बड़ी ईमानदारी से अभिभावक जवाब देते हैं, ‘कैडबरी लानेवाला मेहमान’ आपका भी तो उत्तर यही है न?
महात्मा विदुर ने कहा है –
एकं विष रसो हन्ति, शस्त्रोणैकश्च वध्यते ।
सराष्ट्रं सप्रजं हन्ति, राजानं मंत्रा विप्लवः । ।
विष पिलाकर एक व्यक्ति को मारा जा सकता है ।शस्त्रों के प्रयोग द्वारा भी एक और प्रज्ञापालक मर सकता है । लेकिन बुद्धि भ्रम पैदा किया तो राष्ट्र, प्रजा और प्रजापालक सभी का नाश हो सकता है ।
महात्मा विदुर के इन शब्दों का आज पल-पल अनुभव आ रहा है । समाज के बड़े वर्ग की मति भ्रष्ट हो चुकी है । वैचारिक भ्रम के कारण विनाश अनिवार्य है । अपना हित-अहित किस बात में है, इसका पता नहीं । बहुत गर्व से लोग कहते हैं कि वे विज्ञान युग में रहते है । परंतु व्यवहार विपरीत दिखाई देता है । अतीत की हर बात के बारे में आशंका और प्रश्न खड़ा करना और पश्चिम की प्रत्येक बात पूछताछ किये बिना स्वीकार करना, मानों हर आधुनिक बात अच्छी ही होती है ।
आज की पूतना मौसी बहुत सामर्थ्यवान है । उसकी आर्थिक शक्ति तो इतनी अधिक है कि छोटे-छोटे देशों का वार्षिक बजट भी उनके सामने बौना है । उनके विज्ञापन बहुत अहम भूमिका निभाते हैं । विज्ञापन के बलबूते पर सामान्य वस्तु भी असामान्य दिखाई देती है ।विज्ञापन के आधार पर विष भी लोगों के गले में उतारना कठिन नहीं रहा है ।2010 में नेस्ले कम्पनी का अपने उत्पादनों के विज्ञापन पर व्यय था 302 करोड़ रुपये ।2014 में इसी कंपनी ने विज्ञापन पर 445 करोड़ रुपये की राशि व्यय की । पेप्सी, कोक, पिज्जा, बर्गर, मैगी आदि के प्रति लोगों के मन में आकर्षण बढ़ाने के लिए जो तरीके अपनाए जाते हैं और उन पर खर्च दिया जाता है उसकी कल्पना भी सामान्य व्यक्ति को नहीं होती ।
अमेरिका और यूरोपीय देशों को जो वस्तुएँ नहीं चाहिए वे फैंकने का कूड़ादान बन गया है अपना देश-भारत । कई दवाईयाँ अनेक देशों में बिक नहीं सकती । वे सब बहुत आराम से भारत में बेची जाती हैं । तकनीक पुरानी हुई, स्क्रैप हुआ तो बेच दो भारत को । वे सब देश अपने देश के लोगों के स्वास्थ्य के बारे में बहुत सतर्क और सावधान होते हैं । लेकिन भारत के लोगों की जान को हानि पहुँचाने में उनको कोई दुःख नहीं होता । सब प्रकार के नियम और कानूनों की अनदेखी करते हुए अपने उत्पादन भारत के बाजारों में उतारने हैं और करोड़ों रुपये भारत से लेकर चले जाते हैं और सबसे दुःख और दुर्भाग्य की बात यह है कि भारतवासियों को न इसका पता है और न कुछ वेदना ।विदेशीयों के अंधानुकरण से मानव ही उलटा-पुलटा हो गया है । मस्तिष्क बधिर और संवेदनाहीन हो गया है । विशेष रूप से उच्च वर्गीय समाज को भारत की हर चीज, हर बात गंदी, बुरी और प्रतिगामी लगती है और पश्चिम की हर बात श्रेष्ठ, वंदनीय, अनुकरणीय । विदेशीयों की जूठन भी उनको अच्छी, स्वादिष्ठ और मीठी लगती है ।
आकर्षित करने वाले पैकिंग, लेबल्स और रात-दिन चलने वाले विज्ञापन के कारण लोग भ्रमित हो रहे हैं । चक्रव्यूह में फंसे हैं । घरों में रसोईघर, फ्रिज और अलमारियां ऐसे पेय और खाद्य पदार्थों से भरे हैं जिनमें कोई पोषक तत्व नहीं है । अपने घर आने वाले अतिथि को यह सब खिलाने में उनको धन्यता और प्रतिष्ठा अनुभव होती है ।
ये सब पेय और खाद्यपदार्थ वास्तव में कितने सुरक्षित हैं इस पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है ।
कैडबरी, डेअरी मिल्क चॉकलेट में कीटनाशक पाये गये ऐसी खबर 2003 में अखबारों में छपी । कंपनी ने अपनी जिम्मेदारी टालने और दुकानदारों पर दोषारोपण करने का प्रयास किया ।2003 में ही पेप्सी और कोका कोला में कीटनाशक की मात्रा अत्यधिक है, ऐसा ध्यान में आया । यह खबर बहुत लोगों तक पहुँची भी नहीं ।2006 में दिल्ली के ‘सेंटर फॉर साइन्स एण्ड एन्वायर्नमेंट’ नामक प्रतिष्ठित संस्था ने पेप्सी और कोका कोला के ग्यारह उत्पादनों के बारे में अपना अनुसंधान प्रस्तुत किया । कोका कोला, पेप्सी, थम्स अप, मिरींडा, लिम्का, स्प्राईट, पैंफटा, इन सभी में लिंडेन, डी.डी.टी., मैलथियॉन और क्लोरोपायरीपफॉस जैसे कीटनाशकों के अंश मिले ।
31 मार्च 2012 को इकॉनॉमिक टाइम्स ब्युरो ने एक आलेख प्रकाशित किया । सेंटर पफॉर साइन्स एण्ड एन्वायर्नमेंट(सी.एस.ई.) ने नेस्ले, हल्दीराम, पेप्सिको, के.एफ.सी. और मॅक्डोनाल्ड कंपनियों के सोलह उत्पादनों का परीक्षण किया । बहुतांश उत्पादनों में शक्कर, नमक और वसा का अनुपात स्वीकृति मानकों से अधिक पाया गया ।
मैगी नूडल्स में सीसे (लीड) का अनुपात 17.5 पी.पी.एम. है छोटे बच्चों के खाद्य पदार्थों में इसकी मात्रा 0.01 पी.पी.एम. से भी कम होनी चाहिए । लीड शोषण बच्चों में बहुत जल्दी होता है किन्तु उसके दुष्परिणाम तुरंत नहीं दिखाई पड़ते । धीरे-धीरे लीड यकृत, वृक्क, मूत्राशय और अस्थियों में जाता है । मैगी में नमक आवश्यकता से अधिक मात्रा में होता है । विशेषतः मोनोसोप्यिम ग्लुटामेट (एम.एस.जी.) शरीर के लिए बहुत हानिकारक है । इन पदार्थों में वसा की मात्रा अधिक और पफायबर कम होता है ।
अनेक शोधों के निष्कर्ष बताते हैं कि यह सब उत्पाद स्वास्थ्य पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले हैं । तो भी विज्ञापनों का मायाजाल और उससे भी अधिक आधुनिक बनने और स्टेटस सिंबल के रूप में इन उत्पादों की स्वीकृति इससे सामान्य व्यक्ति को दूर रहने नहीं देती । दूर-दराज के गाँवों तक इनकी पहुँच हो गई है । आकर्षक पैकिंग की चकाचौंध के अन्दर छिपी पूतना को हम पहचान नहीं पा रहे । पैकिंग का प्लास्टिक उपजाऊ भूमि को नष्ट कर रहा है और अन्दर रखा पदार्थ मनुष्यों को । कृष्ण के समय पूतना एक थी और कृष्ण में पहचानने की क्षमता थी । आज पूतना अनेक हैं, विविध रूप हैं और घर-घर में अपनी पैठ बना चुकी हैं । क्या करें आज के बालकृष्ण, जब स्वयं यशोदाएँ ही उन्हें पूतनाओं को सौंप रही हों? क्या आप पहचान रहे हैं अपने आसपास घूम रही पूतनाओं को?