नवाचार यानि कक्षा शिक्षण में नया क्या है? बालक कक्षा में पढ़ता है । बालक से पूछो कि आज नया क्या पढ़ा? तो वह बताएगा कि आज मैंने इस विषय में यह पढ़ा है, नया जैसा तो कुछ नहीं था । सामान्यतः कक्षा शिक्षण में एक परम्परागत शैली विकसित हो गई है । एक अधिकारी बड़ा रोचक उदाहरण देते हैं । आचार्य कक्षा में आकर पूछता है, बच्चों कल हम कहां थे? बच्चे सोचते है, कल हम जहन्नुम में थे । बालकों को या कहीं भी यदि कहानी सुनानी हो तो कहानी सुनाने का नियम है और श्रोता भी अपेक्षा करता है कि हर कहानी और हर बात में कुछ नया हो । यदि नया नहीं है और पुनरावृत्ति अधिक है तो श्रोता ऊब जाते हैं । यदि नया है तो वही कहानी श्रोताओं को अच्छी लगती है । कक्षा-कक्ष में नवाचार भी ऐसा ही है ।
इस विषय को हम तीन भागों में बाटेंगे । पहला है, कक्षा में विषय प्रारम्भ करने से पूर्व क्या करते हैं? पिछले कालांश में जो विषय पढ़ा उसका असर मस्तिष्क पर प्रायः रहता है । अगला विषय पढ़ने से पूर्व मानसिक सिद्धता चाहिए । अब क्योंकि विषय अधिगम करना है तो मानसिक सिद्धता के साथ एकाग्रता भी चाहिए । मानसिक सिद्धता एवं एकाग्रता के लिए कुछ करवाना । जैसे तीन बार ब्रह्मनाद करेंगे । कोई ताली बजवाकर गतिविधि (Clapping Activity) भी करवा सकते हैं अथवा एक-दो मिनट का कोई खेल या गतिविधि । ऐसे करने से Mind Refresh हो जाता है और अगला विषय पढ़ने के लिए मानसिक सिद्धता व एकाग्रता भी बनती है । इस एक-दो मिनट के लिए नई-नई गतिविधि खोजनी चाहिए ।
दूसरा है, आज जो विषय आपने पढ़ाना है वह कौन-से नए तरीके से आप पढ़ाते है, जिससे अधिगम अधिकतम हो । एक कार्यकर्ता ने एक सुन्दर प्रसंग का वर्णन किया । CCERT से एक एक्सपर्ट एक विद्यालय में गए । उस एक्सपर्ट कई प्रकार के फल व सब्जियाँ मँगवाई । प्राचार्य को थोड़ा अजीब-सा लगा । फल व सब्जियाँ लेकर वो एक्सपर्ट एक कक्षा में गए । कक्षा में मध्य का स्थान खाली करवाया और सभी बालकों को कहा – चारों तरफ खड़े हो जाओ । बालकों को ऐसा लगा कि कोई खेल प्रारम्भ हो रहा है । एक्सपर्ट ने सौरमंडल पढ़ाना शुरू किया । मध्य में एक संतरा रखा और कहा – यह सूर्य है । अब सूर्य के लिए संतरा ही क्यों रखा क्योंकि उसका रंग सूर्य जैसा है । क्रमशः इसी प्रकार से छोटे बड़े आकार और रंग से जोड़ते हुए शेष ग्रहों के लिए भी कोई भी फल अथवा सब्जी रखी । कितना रोचक रहा होगा और इसके कारण बालक कभी भी नहीं भूल सकते कि सौरमंडल क्या होता है । ऐसे अनेकों तरीके पढ़ाने के हो सकते हैं ।
तीसरा है, सीमा रहित कक्षा-कक्ष । कक्षा-कक्ष की कल्पना करते हैं तो चार दीवारों के मध्य चाकबोर्ड के सामने डेस्कों पर बैठे बालक ऐसा ध्यान में आता है । लेकिन कभी-कभी विषय को पढ़ाने के लिए सीमाओं से बाहर भी निकलना चाहिए । वनस्पति विज्ञान पढ़ाना है तो पेड़-पौधों के निकट जाकर भी पढ़ा सकते हैं । गणित पढ़ाना है तो मैदान में गणित का खेल खिलाकर भी सिखाया जा सकता है । यही नहीं किसी विषय के लिए विद्यालय परिसर से बाहर भी ले जाया जा सकता है । प्राथमिक कक्षाओं में फल-सब्जी के लिए सब्जी मण्डी ले जाया जा सकता है ।
कक्षा-कक्ष में नवाचार के और भी कई तरीके सोचे जा सकते हैं । आचार्य द्वारा किया गया नवाचार बालकों के अधिगम में वृद्धि करेगा । नवाचार एक प्रकार की वृत्ति है । वृत्ति विकसित होने से तरीके व विधियाँ स्वतः खोजी जाती हैं और क्रियान्वयन का रास्ता भी स्वतः मिलता रहता है ।