भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात 88 (यंत्रों का अन्धाधुन्ध प्रयोग)

 ✍ वासुदेव प्रजापति

यंत्र मनुष्य जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। बिना यंत्र के उसका जीवन चल नहीं सकता। प्रातः जगने से लेकर रात्रि में सोने तक वह यंत्रों के सहारे ही अपने सभी काम पूरे करता है। यंत्रों की सहायता से कार्य सम्पन्न करना उसके लिए बड़ा आरामदायक है। उसे श्रम नहीं करना पड़ता और समय भी बहुत बचता है। व्यक्ति को लगता है कि यंत्र मेरे लिए वरदान है। इसलिए वह बिना सोचे-समझे यंत्रों का अन्धाधुन्ध प्रयोग करने में बिल्कुल संकोच नहीं करता।

जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष होते हैं, एक होता है सकारात्मक पक्ष और दूसरा होता है नकारात्मक पक्ष। यंत्रों के सकारात्मक पक्ष का विचार हमने किया, परन्तु यह एक पक्षीय विचार अपर्याप्त है। इसके नकारात्मक पक्ष का विचार करना भी आवश्यक है। यंत्र स्वयं निर्जीव है, उसका संस्कृति या विकृति से कोई लेना-देना नहीं है। यंत्र को लेकर मनुष्य की जो वृत्ति-प्रवृत्ति होती है, उसका सम्बन्ध संस्कृति और विकृति से होता है। यह सही है कि अतीत में मनुष्य ने यंत्रों के सहारे ही संस्कृति व सभ्यता का विकास किया है। परन्तु यंत्र के बारे में आज का जो अविवेकी व्यवहार है, वह संस्कृति को बढ़ाने वाला न होकर विकृति को बढ़ाने वाला है, इसलिए विनाशक है।

यंत्र दो प्रकार के होते हैं

मनुष्य ने आरम्भ काल से ही अपने हाथों की कुशलता व बुद्धि की निर्माण क्षमता के बल पर अनेक यंत्रों का आविष्कार किया है। यह यंत्र निर्माण करने की प्रक्रिया तो अभी भी चल ही रही है। किस प्रकार के यंत्र निर्माण किये जा रहे हैं? इसे समझना आवश्यक है। यंत्र दो प्रकार के होते हैं, एक प्रकार के वे यंत्र हैं जो मनुष्य को काम करने में सहायता करते हैं। दूसरे प्रकार के यंत्र वे हैं जो मनुष्य के स्थान पर स्वयं काम करते हैं। मनुष्य के स्थान पर काम करने वाले यंत्र उसे निकम्मा बनाते हैं, उसके कष्ट कम करने के बदले में उसे आलसी बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से उसको अपरिमित हानि पहुँचाते हैं। पहली प्रकार के यंत्र सभ्यता और संस्कृति का विकास करने में सहायक हैं जबकि दूसरे प्रकार के यंत्र विकृति निर्माण कर विनाश की ओर ले जाने वाले हैं। अतः यंत्रों का प्रयोग विवेक बुद्धि से करने की नितान्त आवश्यकता है।

हमारे पूर्वजों ने पदार्थ विज्ञान के नियमों को जानकर मानवीय और प्राकृतिक ऊर्जा और पदार्थों का विनियोग करके अनेक प्रकार के यंत्र बनाए, जैसे – खेती करने के यंत्र, कपड़ें बुनने के यंत्र, मकान बनाने में काम आने वाले यंत्र आदि। ये सभी यंत्र मनुष्य के मददगार थे, इनमें मुख्य भूमिका मनुष्य की ही रहती थी यंत्र तो उसका सहयोगी उपकरण मात्र था। आज क्या स्थिति हो गई है? आज मनुष्य ने विद्युत, भाप, पेट्रोल या अणुऊर्जा का प्रयोग कर उनसे संचालित होने वाले राक्षसी आकार-प्रकार के यंत्रों का निर्माण कर लिया है। ये यंत्र केन्द्रीकृत उत्पादन करने वाले हैं, इनकी तुलना में मनुष्य उनकी बराबरी नहीं कर सकता वह तो बेचारा बन गया है, स्वयं संसाधन बनकर यंत्रों द्वारा संचालित हो रहा है। यही मनुष्य की अप्रत्यक्ष हानि है।

श्रम से बचना हानिकर है

आज मनुष्य श्रम से बचने का हर सम्भव प्रयत्न करता है। हमारी रसोई में पीसने के लिए पत्थर की शिला के स्थान पर मिक्सर और ग्राइंडर हैं, पकाने के लिए विद्युत चलित ओवन और माइक्रोवेव है, अनाज और मसाले पीसने के लिए विद्युत चक्की आ गई है। छाछ बिलौने जैसे छोटे से काम के लिए भी चर्नर है, अब तो सब्जियाँ काटने के लिए भी उपकरण आ गए हैं। स्नानघर में पानी गर्म करने के लिए गीजर है, ऊपर की टंकी में पानी चढ़ाने के लिए पम्प लगा है। यह सूची जितनी बनाना चाहें उतनी लम्बी बन सकती है।

अब हमारी भी स्थिति ऐसी हो गई है कि हम पैदल चलना ही नहीं चाहते। साइकिल में पैडल मारने पड़ते हैं, इसलिए मोटर साइकिल खरीद ली है। घर से किक मारी और ऑफिस पहुँच गए, शाम को ऑफिस से छूटे और सीधा घर आ गए, पैदल चलने का कोई काम ही नहीं है। दूर किसी अन्य शहर में जाना है तो कार है, रेलगाड़ी है और जल्दी जाना है तो हवाई जहाज है। अब पशुओं की ऊर्जा से चलने वाले वाहन, बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, ऊँटगाड़ी तो पिछडेपन की निशानी रह गए हैं। ‘बैलगाड़ी का युग’ कहकर मजाक उड़ाया जाता है और दूसरी तरफ विनाश करने वाले यंत्रों को विकास के अग्रदूत माना जा रहा है। इसे ही हमारे यहाँ विपरीत बुद्धि कहा है, जो विनाश की गति को ही विकास मानती है। यंत्रों के कारण से जो गति और वृत्ति निर्माण हुई है, उसे सन्तुष्ट करने के लिए विपरीत व्यवस्थाएँ करनी पड़ती हैं, अधिक संसाधनों का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे अधिक विनाश होता है। ऐसा एक दुष्ट चक्र बन गया है।

पर्यावरण की हानि

गर्मी से बचने के लिए घर को सब ओर से बन्दकर वातानुकूलित बनाना अर्थात् अधिकाधिक ए.सी. लगवाना कहाँ तक उचित है? शुद्ध ताजी हवा आने का कोई मार्ग ही नहीं बचाते हैं, फलतः स्वास्थ्य की हानि तो होनी अनिवार्य है। प्राचीन वास्तुशास्त्र को न मानकर आधुनिक सीमेंट व लोहे से घर बनाना जो वैसे ही गर्म रहते हैं। फिर उसे ठंडा करने के लिए ए.सी. लगवाए जाते हैं, परन्तु उस समय यह भूल जाते हैं कि ए.सी. पर्यावरण को दूषित करता है। यह सृष्टि पंच महाभूतों से बनी है और हम यंत्रों का अन्धाधुन्ध प्रयोग कर उन महाभूतों को ही नष्ट करने पर तुले हुए हैं। उसका ही दुष्परिणाम है कि प्रकृति कभी भूकम्प के रूप में तो कभी अतिवृष्टि के रूप में अपना रौद्र रूप प्रकटकर विनाश करती है। और मनुष्य को संकेत द्वारा समझाने का प्रयत्न करती है, फिर भी मनुष्य इन विनाशक यंत्रों का प्रयोग नियंत्रित नहीं करता।

कृषि के लिए, वस्त्र निर्माण के लिए, छोटे से छोटे काम के लिए पेट्रोल या विद्युत से चलने वाले यंत्रों का प्रयोग होता है। ये यंत्र विराटकाय होते हैं। इन्हें चलाने के लिए अनेक दूसरे यंत्रों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार यंत्र के लिए यंत्र ऐसी एक श्रृंखला निर्माण होती है, जो पर्यावरण का नाश करती है। मनुष्य की शक्ति का, बुद्धि का, वृत्ति का और कौशल का नाश करती है। बचपन से ही हाथ से काम नहीं करने की वृत्ति बढ़ती जाती है। हाथ से काम करना हेय मान लिया गया है, छोटे लोग जो कम पढ़े-लिखे हैं वे हाथ से काम करते हैं। बड़े लोग स्वयं काम नहीं करते वे तो करवाते हैं। इस प्रकार हाथ से काम नहीं करना प्रगति का सूचक बना दिया गया है। यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने के दायित्व से मुख मोड़ना है जो मनुष्य के अस्तित्व पर सीधा संकट है।

स्मृति शक्ति की हानि

शिक्षा में यंत्रों का प्रयोग विविध रूपों में दिखाई देता है। गणित में अब पहाड़े याद करने की आवश्यकता नहीं, विज्ञान के सूत्र, अन्य विषयों के नियम सुभाषित, मंत्र या स्तोत्र क्यों याद करना? सब मोबाइल में हैं, जब चाहो तब उसमें से देख लो। अब नक्शे, विज्ञान के प्रयोगों के चित्र, विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ ये सब हाथ से बनाने की आवश्यकता नहीं सब बने-बनाए तैयार मिलते हैं। अब पुस्तकालय से पुस्तक लाकर उसके नोट्स बनाने की भी आवश्यकता नहीं, दो मिनट में जेरोक्स हो जाता है। अब प्रकल्प बनाना है तो पहले अपनी बुद्धि से सोच-विचार कर फिर अपने हाथ से बनाना नहीं पड़ता, इंटरनेट पर सब मिल जाता है। अब कार्यक्रमों के बेनर, प्रदर्शनी, मंच की साज-सज्जा करने में बुद्धि की कल्पनाशीलता और कुशलता की भी आवश्यकता नहीं, यंत्र सब कुछ कर लेते हैं। सम्भव है आगे आने वाले कुछ वर्षों में अक्षर लिखना ही नहीं पड़ेगा, आप तो बस! बोलो, सब अपने आप लिख लिया जाएगा। अक्षर लिखना सिखाना व्यर्थ का काम माना जाएगा। इस प्रकार यंत्रों ने मनुष्य की बुद्धि का काम छीनकर उसे मोटी बना दिया है। शिक्षा मनुष्य के शरीर, मन व बुद्धि का विकास करने के लिए दी जाती रही है, परन्तु अब तो शरीर, मन व बुद्धि की आवश्यकता ही नहीं है तो विकास किसलिए करना? शिक्षा से हम आखिर चाहते क्या हैं? इसकी कोई स्पष्टता नहीं है, मन-मस्तिष्क पर यंत्र छाये हुए हैं।

बेरोजगारी का बढ़ता खतरा

आजकल केवल भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में ए.आई. की धूम मची हुई है। अधिकांश विकसित देश अपने लोगों को आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस जैसे नए विषय में प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्हें इसमें विकास की असीम सम्भावनाएँ दिखाई दे रही हैं, परन्तु इसके नकारात्मक पक्ष की ओर बहुत कम लोगों का ध्यान जा रहा हैं। एआई के कारण पूरी दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में युवाओं के बेरोजगार होने का खतरा मंडरा रहा है, 7.5 करोड़ लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता है। इस एआई से सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कोडर्स, वकील, लेखकों व कलाकारों के कामकाज में कमी आ सकती है। इसके साथ ही फेक्ट्रियों में अधिक कुशल यंत्रों से अधिक उत्पादन हो सकता है। दुनिया की टॉप कम्पनियों में आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस तकनीक में दक्ष करीब 8.5 करोड़ टेक प्रोफेशनल्स की भारी कमी हो सकती है। आइबीएम के प्रोग्राम डेवलपमेंट हेड संजीव मेहता का कहना है कि वर्ष 2030 तक तकनीक दक्ष युवाओं की भारी कमी होने वाली है, और यह कमी हर सेक्टर में होगी। इसी तरह सीईओ, स्टेबिलिटी एआई का कहना है कि भारत में एआई दो साल में ही अधिकांश कोडिंग जॉब्स को खत्म कर देगा, क्योंकि इस नई टेक्नोलॉजी के कारण उनकी जरूरत ही नहीं रहेगी। कुछ विद्वानों की आशंका तो यहाँ तक पहुँची है कि यह आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस आगे जाकर मानव मात्र के अस्तित्व पर ही बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर सकती है।

यदि मनुष्य भी मात्र यंत्र ही होता तब तो कोई परेशानी नहीं होती, परन्तु वह जड़ यंत्र नहीं अन्त:करण युक्त एक चेतन प्राणी है, इसलिए चिन्ता की बात है। आज यंत्रों का मनुष्य जीवन पर इतना अधिक प्रभाव पड़ रहा है कि वह संस्कृति से विमुख हो विकृति के दलदल में धँस रहा है। यंत्र मनुष्यों की कार्यकुशलता और स्वतंत्रता का भक्षण कर रहे हैं। मनुष्यों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य कमजोर कर रहे हैं और पर्यावरण की हानि कर रहे हैं। इसलिए यंत्रों का अन्धाधुन्ध प्रयोग कुल मिलाकर विनायक है। ये यंत्र विनाशक गति को चालना देकर उसे बढ़ाने का काम ही कर रहे हैं, जो सम्पूर्ण मानवता के लिए बहुत बड़ा संकट है। हमें इस संकट को दूर करने का मार्ग ढूँढ़ना होगा, और वह मार्ग भारतीय शिक्षा ही हमें सुझा सकती है।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)

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