आदर्श शिक्षक प्रो. राजेन्द्र सिंह ‘रज्जू भैया’ – 2

– राजेश लिटौरिया ‘प्रकाश’

प्रयाग में ही रज्जू भैया संघ के सम्पर्क में आए। बापूराव मोघे जी के आग्रह पर रज्जू भैया सन 1943 में काशी में संघ शिक्षा वर्ग में सम्मिलित हुए। संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूजनीय श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी उपाख्य ‘श्रीगुरूजी’ का इस संघ शिक्षा वर्ग में आगमन हुआ। प०पू० श्रीगुरूजी के प्रवास के मध्य ही रज्जू भैया का एम.एस.सी उत्तरार्द्ध का परीक्षा परिणाम आया। रज्जू भैया ने प्रयाग विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। ऐसे गौरवशाली परिणाम पर श्रीगुरूजी ने उन्हें बधाई दी और जब आगे की योजना पूछी तो श्रीगुरूजी को भी रज्जू भैया ने अपना यह निश्चय बताया कि अपने मार्गदर्शक प्रो. के.एस, कृष्णन के शोध कार्य करने की इच्छा है। और अध्यापन कार्य मुझे श्रेष्ठ लगता है। तब प.पू. श्रीगुरूजी ने प्रभावित हो उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, “बहुत अच्छा, अपने प्रज्ज्वलित ज्ञानदीप से असंख्य मनों में ज्ञान की ज्योति जलाकर इस देश का अंधकार दूर करने का पूनीत कार्य करो।”

काशी संघ शिक्षा वर्ग से लौटकर रज्जू भैया प्रयाग विश्वविद्यालय में अपने विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्णन से मिले। प्रो. कृष्णन ने उन्हें श्रेष्ठ परीक्षा परिणाम के लिये बधाई दी। रज्जू भैया ने जब उनके साथ रहकर शोध की इच्छा व्यक्त की तो वे उत्साह पूर्वक सहर्ष सहमत हुये और तत्कालीन कुलपति डॉ, अमरनाथ झॉ से मिल लेने को कहा। रज्जू भैया जब उनसे मिले और उन्हें अपनी इच्छा बताई तो डॉ. अमरनाथ झॉ ने पुलकित मन से कहा- श्रेष्ठ विद्यार्थी के अनुरूप श्रेष्ठ विचार है। और  आप इसके लिए योग्यपात्र भी हैं। पर ये तो बताओ कि फिर सिविल सर्विसेज के लिए प्रयाग से कौन जाएगा।

राजेन्द्र – सर! मैं अंग्रेज सरकार के अन्तर्गत नौकरी नहीं करूंगा। डॉ. अमरनाथ – पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक का मासिक वेतन मात्र दो सौ रूपये है। राजेन्द्र – सर! वेतन मेरे लिये महत्वपूर्ण नहीं है। डॉ. अमरनाथ – फिर तो प्रयाग विश्वविद्यालय ऐसी प्रतिभा का पलक पावड़े बिछाकर हृदय से स्वागत करता है।

और फिर कुछ औपचारिकताएं पूर्ण कर 17 जुलाई 1943  को प्रयाग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्यभार ग्रहण कर राजेन्द्र सिंह अब प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह हो गये।

एक शिक्षक हमेशा शिक्षक होता है। वह निश्चित समय के लिए और निश्चित स्थान के लिए नहीं वरन वह सर्वदेशीय और सर्वकालिक शिक्षक होता है। और प्रो. राजेन्द्र सिंह जी ऐसे ही शिक्षक थे। 30 जनवरी 1948 को एक दुर्भाग्य पूर्ण घटना घटी, महात्मा गांधी की हत्या हो गई। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गांधी हत्या का झूठा आरोप लगाकर 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। संघ के पदाधिकारी होने नाते प्रो. राजेन्द्र सिंह जेल भेज दिए गये। इस झूठे आरोप में लगे प्रतिबंध को हटाने देश भर में स्वयंसेवको द्वारा व्यापक सत्याग्रह हुआ। हजारों स्वयंसेवकों ने गिरफ़्तारी दी।  प्रयाग की नैनी जेल में पांच सौ से अधिक स्वयंसेवक पहुंच गये। तब रज्जू भैया ने जेल को ही शाखा क्षेत्र बना डाला। सुबह-शाम के कार्यक्रम तय किये। संघगीत, खेल, कबड्डी, भाषण आदि गतिविधियों की व्यवस्थित रूपरेखा बनाई गई। कहना न होगा कि अधिकांश स्वयंसेवक रज्जू भैया के विद्यार्थी थे। अतः प्राध्यापक रज्जू भैया ने जेल मे ही उनकी पढ़ाई की भी योजना की और जेल में रहते हुए भी शिक्षण कार्य करते हुए इस उक्ति को सत्य सिद्ध किया कि शिक्षक सर्वदेशीय और सर्वकालिक शिक्षक होता है। विपरीत परिस्थितियों को भी अवसर में बदल देने का महान गुण ऐसी अनेक सूबियों से भरा हुआ व्यक्तित्व था पूज्य रज्जू भैया का।

अनुभूति जितनी गहरी होगी अभिव्यक्ति उतनी ही सरल और हृदय स्पर्शी होगी। इस उक्ति को प्रो. राजेन्द्र सिंह जी चरितार्थ करते थे। उनकी सूक्ष्म बुद्धि के लिए कोई विषय दुरूह या अगम न था। जटिल से जटिल विषय को वे बड़ी सरलता से जब खोलकर रखते थे तो वह अगम प्रतीत होता विषय सुगम ही नहीं अपितु रोचक भी लगने लगता था। कक्षा जीवंत हो उठती थी। दूसरे सैक्शन के विद्यार्थी भी अनुमति लेकर उनकी कक्षा में बैठते। वे मॉडर्न फिजिक्स पढ़ाते और सभी छात्र मंत्र मुग्ध होकर उनका व्याख्यान सुनते। एक बार बी.एस.सी. द्वितीय वर्ष की कक्षा में ताप (हीट) विषय को एक विद्वान प्रोफेसर पढ़ा रहे थे। विषय की जटिलता को प्रोफेसर की विद्वत्ता ने कक्षा के विद्यार्थीयों के लिए बड़ा गंभीर बना दिया था। जब यह गंभीरता ज्यादा बढ़ गई तो कोई छात्र कागज का हवाई जहाज उड़ाने लगा तो कोई कुत्ता बिल्ली की आवाज निकालने लगा। अध्यापक महोदय बहुत ही गुस्से में भरे कक्षा छोडकर चले गये और विभागाध्यक्ष को जाकर बोल दिया कि मैं उस कक्षा में नहीं जाऊँगा। उन शैतान किन्तु अत्यन्त मेधावी छात्रों की कक्षा में जाने को कोई तैयार न हुआ। तब रज्जू भैया ने पूरे विश्वास के साथ उस कक्षा को पढाने के लिए अपनी स्वीकृति दी। साथ के सभी प्राध्यापक सोच रहे थे कि अब प्रो. राजेन्द्र सिंह जी की फजीहत होगी किन्तु यह क्या जैसे चमत्कार हो गया। वे सभी शैतान और उत्पाती युवा छात्र मंत्रमुग्ध से रज्जू भैया का हीट पर व्याख्यान सुन रहे थे। ऐसी अनेक घटनाएं है, जब रज्जू भैया अपने विद्यार्थियों की कठिनाइयों को समझ उनके बीच जाकर चुटकियों में समाधान कर देते थे। अपने विद्यार्थियों के बीच वे बेहद लोकप्रिय थे। उत्कृष्ट और आदर्श शिक्षक के वे प्रतिरूप थे।

अपने विद्यार्थियों के अध्यापन के प्रति वे बहुत गंभीर थे। उन्होंने अध्यापन में कभी प्रमाद नहीं किया और कभी भी बिना तैयारी के कक्षा में नहीं गये। संघ कार्य से जब प्रवास पर जाते और यदि प्रवास से लौटने में देर होती तो वे ट्रेन के डिब्बे में ही देर रात तक अपना अगले दिन का लैक्चर तैयार करते और ट्रेन में ही मंजन आदि से निवृत हो स्टेशन से सीधे विश्वविद्यालय पहुंचकर कक्षा में पढाने चले जाते।

इतनी सजगता और उत्तरदायित्व के प्रति समर्पण सम्पूर्ण शिक्षा जगत के लिये अनुकरणीय है।

हमारे ऋषियों ने परमात्मा के लिए सर्वश्रेष्ठ और प्रथम सम्बोधन ‘माँ’ दिया ‘त्वमेव माता’ और मां को यदि प्रथम गुरू कहा तो सिर्फ इसलिए नहीं कि वह बच्चे को सर्वप्रथम संसार का ज्ञान देती है बल्कि शायद इसलिए कि वह अपनी संतान के बिना कहे उसकी मुखाकृति उसकी चेष्टाओं से उसकी आवश्यकता समझ लेती है और समाधान के लिए तत्पर हो जाती है। इसलिए वह प्रथम गुरू है। एक आदर्श षिक्षक भी अपने विद्यार्थी का चेहरा देखकर उसकी समस्या समझ उसका समाधान करता है। उसकी स्थिति और उसके लिए क्या उपयुक्त है वह देने का उद्यम करता है। प्रो. राजेन्द्र सिंह जी भी राह चलते विद्यार्थी का चेहरा देख जान लेते कि उसे कुछ समस्या है। और फिर समस्या का समाधान कर के ही चैन लेते।

एक बार विश्वविद्यालय के बारामदे से होकर वे निकल रहे थे। तभी एक छात्र पर उनकी दृष्टि पड़ी। वे लौटकर उस छात्र के पास पहुंचे और पूछा –

प्रो. राजेन्द्र सिंह – क्या बात है? छात्र – (अचानक उन्हें अपने आगे देख सकपकाकर) जी कुछ नहीं। प्रो. राजेन्द्र सिंह जी ने आत्मीयता से कहा – मेरे साथ आओ।

उनके स्वर के सम्मोहन में बंध वह छात्र उनके पीछे पीछे चलता उनके चैम्बर में पुहंचा। रज्जू भैया ने अपनी सीट पर बैठकर छात्र को समाने कुर्सी पर बैठने को कहा, फिर उसे अत्यन्त आत्मीयता से आश्वस्त करते हुए समस्या पूछी।

छात्र – सर मैं अपने गांव से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर यहां प्रयाग विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने आया हूँ। मैंने गलती से अपने प्रवेश फॉर्म में गलत विषय भर दिया। मुझे जैसे ही अपनी गलती मालूम पड़ी। मैंने कार्यालय पहुंच सभी से अपनी भूल सुधारने के लिए अनुनय विनय की लेकिन सबने मना कर दिया। सबका कहना है कि अब कुछ नहीं हो सकता। जो विषय भर दिया वही पढ़ो। सर मेरा तो यहां आना ही व्यर्थ हो जाएगा। कहते कहते छात्र बहुत परेशान हो उठा। छात्र की बात सुन प्रो. राजेन्द्र सिंह सिंह जी तुरन्त उठे और छात्र को साथ लेकर कार्यालय में पहुंचे और उसकी गलती को ठीक कराया। ये छात्र थे – राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) के पूर्व निदेशक तथा राष्ट्रीय अध्यापक प्रशिक्षण (एन.सी.टी.ई.) के पूर्व अध्यक्ष एवं जाने माने शिक्षाविद पद्मश्री प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत।

प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत कहते है कि मैं आज तक इस घटना को नहीं भूला। रज्जू भैया अपने विद्यार्थी की समस्या को बिना कहे समझ लेते और उसके समाधान के लिये डूबकर प्रयत्न करते इसलिये एक आदर्श शिक्षक के रूप में उनके विद्यार्थी आज तक उन्हें यादकर पुलकित हो उठते है।

डॉ. कृष्ण बिहारी लाल पाण्डेय जी प्रोफेसर एवं पूर्व विभागाध्यक्ष शासकीय पी.जी.कॉलेज दतिया अपने प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्ययन काल का स्मरण करते हुए बताते हैं कि पूज्य रज्जू भैया न केवल भौतिक विज्ञान के श्रेष्ठ प्राध्यापक बल्कि अच्छे गायक भी थे। उनका कंठ बड़ा मधुर था। किसी प्रतियोगिता के लिये उन्होंने हमें दो गीत सिखाऐ थे।

वे ऋषि थे, महामानव थे, आदर्श शिक्षक थे, श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे, सारी उत्कृष्टता व महानताएं होते हुए भी वे अत्यन्त सरल और सहज थे। रज्जू भैया का सम्पूर्ण जीवन गौरवपूर्ण था। वे बहुत शिक्षित सम्पन्न और प्रतिष्ठित परिवार से आए थे। उनका विद्यार्थी जीवन भी बहुत गौरवपूर्ण रहा। इसके बाद एक बहुत प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के शिक्षक प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे। संघ जीवन भी बहुत गौरवपूर्ण रहा। विश्व के सबसे बडे संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च पद सरसंघचालक रहते हुए भी पद प्रतिष्ठा का मद उन्हें कभी स्पर्श भी न कर सका। उनकी सरलता सहजता तथा सर्वसुलभता बनी रही। वे सच्चे शिक्षक थे, सर्वकालिक शिक्षक थे। उनका हृदय अत्यंत संवेदनशील था। जीवन के अंतिम समय तक भी वे अपनी मां का स्मरण कर भावुक हो जाते थे। उनने प्रयाग में सिविल लाइन स्थित अपना बहुत बडा मकान ‘अनन्दा’ एवं उससे लगा विशाल भूखण्ड जो उनकी माता श्रीमती ज्वालादेवी के आग्रह पर पिताजी द्वारा खरीदा गया था, सरस्वती शिशु मंदिर चलाने के लिए दे दिया था। उनके द्वारा दिये उस विशाल भूखण्ड पर उनकी पूज्य माताजी के नाम पर ‘ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर’ बनकर खड़ा है। मां के नाम के विद्यालय से वे अत्यन्त संतुष्ट थे। इस प्रकार अंतिम समय तक वे शिक्षा के लिए समर्पित एक सम्पूर्ण शिक्षक थे।

(लेखक साहित्यकार है और विद्या भारती विद्यालय से सेवानिवृत्त प्राचार्य है।)

और पढ़ें : आदर्श शिक्षक प्रो. राजेन्द्र सिंह ‘रज्जू भैया’ – 1

One thought on “आदर्श शिक्षक प्रो. राजेन्द्र सिंह ‘रज्जू भैया’ – 2

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *