विषय कठिन, राह आसान

– दिलीप वसंत बेतकेकर

बुद्धिमत्ता के अनेक प्रकार हैं। प्रो. हावर्ड गार्डनर के मतानुसार प्रत्येक व्यक्ति में सात-आठ प्रकार की बुद्धिमत्ता विद्यमान है- भाषिक, गणितीय, सांगीतिक, व्यक्ति अन्तर्गत, आंतर-व्यक्ति, शारीरिक स्नायु विषयक, अवकाशीय!

ये सभी प्रकार की बुद्धिमत्ता सभी के पास है। मात्रा परिमाण कम अधिक होगा! किसी के पास भाषिक बुद्धिमत्ता अधिक हो तो अन्य कम हो सकती हैं। किसी अन्य के पास गणितीय बुद्धिमत्ता अधिक तो अन्य कम हो सकती है।

इसीलिए कुछ विषयों में अच्छे अंक, अच्छी प्रगति, अच्छा कार्य हो सकता है। अन्य विषय जड़ अथवा कठिन ऐसा अनुभव हो सकता है। अतः धीरे धीरे उस विषय से भय लगने लगता है। अरुचि पैदा होती है। फिर वह विषय तो अत्यंत कठिन ही है ऐसी भ्रान्ति मन में पैदा हो जाती है। अनेक लोगों को गणित, इतिहास ये विषय कठिन लगते हैं। कुछ को अंग्रेजी तो किसी को विज्ञान से घबराहट पैदा होती है। डर के कारण उस विषय का कठिन महसूस होना और अंततः उस विषय से दुराव हो जाता है। उस विषय के लिए फिर कम समय दिया जाता है।

इसमें से कौन सा सही मार्ग होगा ये प्रश्न बच्चे और पालक पूछते रहते हैं। अब हम इसी का विचार करेंगे।

सर्वप्रथम यह देखे कि कौन सा विषय कठिन लगता है? सभी विषय तो कठिन नहीं होते। उस एक विषय के लिए डर लगने के कारण वह कठिन लगता है। कठिन लगने वाले विषय के अध्ययन के लिए एक निश्चित समय तय कर लें। शेष विषय का अध्ययन तो अपनी सुविधानुसार किसी भी समय कर सकते हैं, परंतु उस कठिन विषय… उदाहरण गणित… का अभ्यास तो निश्चित किए हुए समय पर ही करें। किसी भी परिस्थिति में इस समय का निश्चित ही पालन करें। इस समयावधि में अन्य कोई विषय नहीं पढ़ें।

तीसरी बात इस कठिन विषय के अभ्यास हेतु एक निश्चित स्थान तय करें और उसी स्थान पर बैठकर उस विषय का अध्ययन करने का नियम बनाएं। यह स्थान किसी भी परिस्थिति में परिवर्तित ना करें।

एक विशेष बात यह कि उस निश्चित स्थान पर पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर चेहरा रखते हुए बैठक लें। ईशान दिशा की ओर भी मान्य है। दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर मान्य नहीं।

अब कठिन विषय निश्चित हुआ, स्थान निश्चित हुआ, समय और समयावधि (एक घंटा) निश्चित हुई, बैठक की दिशा भी निश्चित हुई। अब उस विषय का अभ्यास प्रारंभ करने से पहले दो तीन मिनट शांत मुद्रा में बैठें। सांस पर नियंत्रण करें, लक्ष्य-केंद्रित करें। पांच मिनिट प्राणायाम करने के पश्चात स्वगत बोलें अपने मन में कहें। – मैं अब मेरे पसंदीदा विषय गणित (या कोई अन्य हो) का अभ्यास करने हेतु एक घंटे के लिए एकाग्र चित्त होकर आसनस्थ हो रहा हूँ। बहुत अच्छी प्रकार से अध्ययन करूंगा ये करते हुए आंखे बंद रखें। यह स्वागत भाषण होने के पश्चात दोनों हाथों के हथेलीयों को आपस में रगड़ें जिससे हथेलीयाँ उष्ण हो जाएंगी। सम्पूर्ण हाथ सम्पूर्ण चेहरे पर फेरे आंख धीरे धीरे खोलें और प्रसन्न मन से आगे एक घंटा उस विषय का अध्ययन करें। ये प्रयोग सतत तीन महीने करें। आलस, टालमटोल ना करें वरना प्रयोग में सफलता नहीं मिलेगी।

हम अन्य धार्मिक व्रत जैसे एकाग्रता से करते हैं, वैसे ही यह व्रत तीन महीने तक करना है। तीन माह की अवधि कुछ कम नहीं होती! परन्तु निश्चित समय पर, तय स्थान पर, तय समयावधि में, निरंतर निष्ठा, एकाग्रता, श्रद्धा से, अभ्यास करने पर, बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे। उपरोक्त वर्णित नियमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक है। अब तीन माह पश्चात…

वह कठिन लगने वाला विषय सरल और आसान लगेगा। उस विषय के प्रति भय दूर होगा और रूचि बढेगी। उस विषय में अब अच्छे अंक भी प्राप्त होंगे। तो फिर यह तीन माह का प्रयोग करने से क्यों परहेज करना? आज ही से शुरू करें! कल कभी नहीं आता। tomorrow never comes! शुभस्य शीघ्रम !!

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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