✍ चाँद किरण सलूजा
एक अच्छी शैक्षणिक संस्था वह है जिसमें प्रत्येक छात्र का स्वागत किया जाता है और उसकी देखभाल की जाती है, जहाँ एक सुरक्षित और प्रेरणादायक शिक्षण वातावरण उपलब्ध होता है, जहाँ सभी छात्रों को सीखने के लिए विविध प्रकार के अनुभव उपलब्ध कराए जाते हैं और जहाँ सीखने के लिए अच्छे आधारभूत ढांचे एवं उपयुक्त संसाधन उपलब्ध रहते हैं। ये सब प्राप्त करना प्रत्येक शिक्षा संस्थान का लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही विभिन्न संस्थानों के बीच तथा शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर परस्पर सहज ‘जुड़ाव और समन्वय’ आवश्यक है। (राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०)
२९ जुलाई, २०२० को उद्घोषित हमारी नूतन राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० का अपने परिचयात्मक अध्याय में कहना है कि –
शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है।
नीति का मानना है कि –
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करना वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता, वैज्ञानिक उन्नत्ति, राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण के संदर्भ में भारत की सतत प्रगति और आर्थिक विकास की कुंजी है। सार्वभौमिक उच्चतर स्तरीय शिक्षा वह उचित माध्यम है, जिससे देश की समृद्ध प्रतिभा और संसाधनों का सर्वोत्तम विकास और संवर्द्धन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और वैश्विक हित के लिए किया जा सकता है।
दार्शनिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आदि दृष्टियों से वैश्विक स्तर पर अत्यन्त ही स्पष्टता के साथ शिक्षाविदों द्वारा यह स्वीकार एवं सिद्ध किया गया है कि बच्चे के सम्पूर्ण विकास, न्यायसंगत एवं न्यायपूर्ण समाज की कुञ्जिका मूल रूप से बच्चे की मातृभाषा में निहित है।
यह भी बहुत ही स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद १९ जहाँ किसी भी व्यक्ति को स्वतन्त्र, परन्तु कुछ सीमाओं के साथ अभिव्यक्ति का अधिकार देता है वहीं यह भी माना गया है कि मातृभाषा ही इस अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ साधन है। बच्चे की अवबोधनात्मक तथा अभिव्यक्तात्मक कौशल-क्षमता का विकास मूलरूप से मातृभाषा में ही विद्यमान रहता है। यही कारण है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३५०(क) में मातृभाषा को ही बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा देने की चर्चा की गई है। यहाँ यह भी जानना अनिवार्य है कि बच्चों को मातृभाषा के द्वारा अभिव्यक्ति के अवसर देना मानवाधिकार के साथ उनका बालाधिकार है। अतः शैक्षिक प्रक्रिया में मातृ-भाषा का प्रयोग अपने-आप में सभी बच्चों को सहज रूप से इस शैक्षिक प्रक्रिया में सम्मिलित करने की प्रक्रिया है। शिक्षा हेतु मातृभाषा का प्रयोग अपने-आप में ही वस्तुतः स्वयमेव ‘शिक्षा’ है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर २१ फरवरी को मातृभाषा-दिवस के रूप में मान्यता देने की पृष्ठभूमि में यही भावना कार्य कर रही है –
In many countries around the world where it is common practice to use more than one language in daily life, education takes place in multilingual contexts. Yet, many countries adopt monolingual systems of education and see multilingualism – the use of several languages within an area – as a challenge. Providing education in only one language that is not necessarily shared by all learners may impact negatively on learning performance, and the development of socio-emotional and foundational literacy skills. (UNESCO)
इसी सन्दर्भ में ‘यूनेस्को’ संस्था का मानना है कि –
The overall aim of the International Mother Language Day (IMLD) 2023 is to contribute to the achievement of Sustainable Development Goal 4 by recognizing the role of actors in education and in related fields in promoting multilingualism and multilingual education, and in fostering quality, inclusive and equitable learning. More specifically, IMLD 2023 aims to:
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Further sensitize actors in education, teachers, and education policy-makers of the transformative power of multilingualism and multilingual education;
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Support actors in education, teachers, and education policy-makers in the strengthening of multilingualism and multilingual education by highlighting and sharing promising and innovative policies and practices.
हमारी नूतन राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० जिन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर अत्यधिक ध्यान देती है उनमें से दो प्रमुख हैं –
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विद्यार्थियों की अन्तः ऊर्जा को पहचानना, स्वीकार करना व उसका समुचित विकास करना। अपने प्रथम आधारभूत सिद्धान्त में शिक्षा-नीति अभिव्यक्त करती है कि –
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शिक्षकों और अभिभावकों को इन क्षमताओं के प्रति संवेदनशील बनाना जिससे वे बच्चे की अकादमिक और अन्य क्षमताओं में उसके सर्वांगीण विकास पर भी पूर्ण ध्यान दे सकें।
इस प्रकार विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करते हुए एक न्यायपूर्ण, समावेशी, समरसता से युक्त समाज का निर्माण करना, और वह भी वैश्विक स्तर तक।
स्पष्ट किया जा चुका है कि नीति का प्रारम्भ ही इन्हीं शब्दों से होता है कि –
शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है।
शिक्षा नीति की दृष्टि में –
‘शिक्षा समता सुनिश्चित करने का बड़ा माध्यम है और इसके द्वारा समाज में समानता, समावेशन और सामाजिक-आर्थिक रूप से गतिशीलता प्राप्त की जा सकती है’
और अपने इस लक्ष्य को पाने हेतु नीति जिस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को इसका आधार मानती है उस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सन्दर्भ में यह शिक्षा नीति एक सम्पूर्ण शैक्षणिक परिदृश्य (Pedagogical Scene) में परिवर्तन करना चाहती है। इसे इस रूप में ढालना चाहती है कि विद्यार्थी ‘समस्या-समाधान के प्रति प्रेरित हो सकें और इस समाधान के लिए तर्कपूर्ण रीति से सोचना सीख सकें। नीति का मानना है कि –
बच्चे, जो कुछ सिखाया जा रहा है, उसे तो सीखें ही और साथ ही वे सतत सीखते रहने की कला भी सीखें… वे समस्या-समाधान और तार्किक एवं रचनात्मक रूप से सोचना सीखें, विविध विषयों के बीच अंतर्सबंधों को देख पाएँ, कुछ नया सोच पाएँ और नई जानकारी को नई और बदलती परिस्थितियों या क्षेत्रों में उपयोग में ला पाएँ। आवश्यकता है कि शिक्षण प्रक्रिया शिक्षार्थी-केन्द्रित हो, जिज्ञासा, खोज, अनुभव और संवाद के आधार पर संचालित हो, लचीली हो और समग्रता और समन्वित रूप से देखने-समझने में सक्षम बनाने वाली और अवश्य ही रुचिपूर्ण हो।
यह अत्यन्त ही स्पष्ट है कि यह सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य एक सशक्त एवं बहु-आयामी भाषा की अपेक्षा करता है।
यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० भाषा की भूमिका को एक सशक्त एवं बहु-आयामी शक्ति के रूप में देखती है। यह शिक्षा नीति बहुत ही स्पष्ट रूप से अपने एक आधारभूत सिद्धान्त के रूप में इसका उल्लेख करती है –
‘Promoting multilingualism and the power of language in teaching and learning;’
हमारी इस नूतन राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० के निम्नलिखित प्रमुख विशिष्ट कथन अथवा निर्देशन व्यक्ति की शिक्षा हेतु मातृभाषा की आवश्यकता को दिग्दर्शित करते हैं –
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सब को ‘शिक्षा की पहुँच’ तक ले जाना
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सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन-पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देना
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वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता, वैज्ञानिक उन्नत्ति, राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण देना
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बच्चे, जो कुछ सिखाया जा रहा है, उसे तो सीखें ही और साथ ही वे सतत सीखते रहने की कला भी सीखें
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बच्चे समस्या-समाधान और तार्किक एवं रचनात्मक रूप से सोचना सीखें
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बच्चे विविध विषयों के बीच अंतर्संबंधों को देख पाएँ, कुछ नया सोच पाएँ और नई जानकारी को नई और बदलती परिस्थितियों या क्षेत्रों में उपयोग में ला पाएँ
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शिक्षण-प्रक्रिया को शिक्षार्थी-केन्द्रित बनाना
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शिक्षण प्रक्रिया को जिज्ञासा, खोज, अनुभव और संवाद के आधार पर संचालित करना
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शिक्षण-प्रक्रिया को रुचिपूर्ण, लचीली, समग्र एवं समन्वित रूप से सक्षम बनाना
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शिक्षा की प्रक्रिया को भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों का आधार देना
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शिक्षार्थियों को उच्चतर-स्तर की तार्किक और समस्या-समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं के साथ विकसित करने के साथ-साथ –
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उनका नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी विकास करना
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भारत के युवाओं को भारत देश के बारे में और इसकी विविध सामाजिक, सांस्कृतिक, और तकनीकी आवश्यकताओं सहित यहाँ की अद्वितीय कला, भाषा और ज्ञान परंपराओं के बारे में ज्ञानयुक्त बनाना, तथा
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उन्हें राष्ट्रीय गौरव, आत्मविश्वास, आत्मज्ञान, परस्पर सहयोग और एकता की दृष्टि से भारत को निरन्तर ऊँचाइयों की ओर ले जाना
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शिक्षार्थियों में करुणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पनाशक्ति, नैतिक मूल्यों का सहज भाव से विकास करना
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रटने पर आधारित पद्धति और केवल परीक्षा हेतु अध्ययन के स्थान पर अवधारणात्मक समझ पर बल देना अनिवार्य होना चाहिए, साथ ही,
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तार्किक निर्णय लेने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए रचनात्मकता और तार्किक सोच को विकसित करना चाहिए।
हम इस तथ्य से सुपरिचित हैं कि अपनी नूतन ५+३+३+४ शैक्षिक संरचना के अन्तर्गत इस नीति ने शिक्षा के प्रारम्भिक पाँच वर्षों को बच्चे के भाषाई आधार को सुदृढ़ करने के आधार के रूप में देखा है।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रोफेसर है और संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान दिल्ली के शैक्षणिक निर्देशक है।)
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