✍ रवि कुमार
करनाल (हरियाणा) के एक कार्यकर्त्ता से उनकी आयु के विषय में चर्चा हुई। उन्होंने कहा आप ही बताएं कि मेरी आयु कितनी है। किसी की भी आयु पूछने पर सामान्यतः ऐसा ही प्रति उत्तर प्राप्त होता है। मैंने कहा कि आपकी आयु 40 वर्ष के आसपास होगी। वे मुस्कुराने लगे। उनसे पूछने पर कि मुस्कुराने का कारण क्या है? तो उन्होंने बताया कि मेरी आयु 52 वर्ष है। कई बार ‘त्वचा से आयु की जानकारी नहीं मिलती’ ऐसी कहावत चलती है। मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि 52 वर्ष की आयु के व्यक्ति की 40 वर्ष आयु क्यों प्रतीत होती है।
आज का मनुष्य बहुत जल्दी ही कई प्रकार के रोगों का शिकार होता है। इसके कारण वह चिकित्सक की शरण में जाता है। और किसी भी चिकित्सक से परामर्श करने पर वह बहुत सारी औषधि लेने के लिए बाध्य जैसा कर देता है। कुछ दुर्लभ व्यक्ति ऐसे भी मिलते हैं, जिनकी आयु 60-70 अथवा उससे अधिक है और वे पूर्णतः स्वस्थ है, किसी प्रकार के रोग से घिरे नहीं है। सामने वाले को यह देखकर आश्चर्य सा लगता है कि आज के युग में इतनी आयु होते हुए भी किसी प्रकार का रोग नहीं है और न ही वे कोई नियमित औषधि लेते हैं।
आहार चिकित्सा
आयुर्वेद में एक सूत्र है – ‘आहार ही औषध’ अर्थात आहार औषधि है। आहार औषधि तब बनता है जब उसे नियमानुसार, संतुलित रूप से, ऋतुचर्या का पालन करते हुए एवं विरुद्ध आहार का ध्यान करते हुए लिया जाता है। उपरोक्त दोनों प्रसंगों में पूर्ण स्वास्थ्य का बड़ा कारण संतुलित आहार ही है। कोई भी रोग जब उत्पन्न होता है तो एकदम नहीं होता है। उस रोग से पूर्व उसकी प्रारंभिक अवस्था भी रहती है। उस रोग का जो मूल कारण है, उस मूल कारण के लक्षण भी उत्पन्न होते हैं। ऐसे लक्षणों को समझ कर प्रारम्भ में ही आहार के विभिन्न रूपों से मूल कारण को समाप्त किया जा सकता है। मूल कारण समाप्त हो गया तो रोग उत्पन्न होने की स्थिति नहीं आएगी। इस प्रक्रिया को आहार चिकित्सा भी कहा जाता है।
प्रचलित धारणा
चिकित्सा के बारे में प्रचलित धारणा है कि कुछ भी हो तो गोली खा लो, चिकित्सक के पास चले जाओ। चिकित्सक से पूछने पर कि आहार में क्या ले सकते है तो उत्तर मिलता है कि कुछ भी खा सकते हैं बस ये औषधि नियम से लीजिए, कोर्स पूरा अवश्य कीजिए। आहार कुछ भी लेंगे और उसके कारण फिर कोई न कोई व्याधि होगी, उस व्याधि के निवारण के लिए फिर से चिकित्सक से औषधि लेनी पड़ेगी। ये एक चक्र चलता रहता है।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो में बताया जा रहा था कि व्यक्ति फ़ास्ट व जंकफ़ूड खाता है। ऐसा करने से वह रोगी हो जाता है। उसे चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ता है। उसके परिजन उसका कुशलक्षेम पूछने के लिए आते हैं, साथ में फल आदि स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ लेकर आते हैं। कुशलक्षेम पूछने के पश्चात परिजन चिकित्सालय के बाहर स्वयं फ़ास्ट व जंकफ़ूड खा रहे होते हैं। ये वीडियो आज की वस्तुस्थिति बता रहा है।
आहार चिकित्सा के प्रकार
आहार चिकित्सा के दो प्रकार है – एक है अपना नियमित आहार ठीक रखेंगे तो रोगों और चिकित्सक से दूर ही रहेंगे। दूसरा है – रोग के मूल कारण के लक्षण को समझकर उससे संबंधित आहार पथ्य-अपथ्य का पालन करेंगे तो मूल कारण को प्रारम्भ में ही समाप्त कर देंगे। जिससे रोग उत्पन्न होने से पूर्व ही समाप्त हो जाएगा। यथा- अधिकांश रोग उत्पन्न होने का कारण पेट ही है अर्थात जो आहार ग्रहण किया उसका पाचन ठीक से नहीं हुआ और प्रातः शौच निवृति भी ठीक से नहीं हुई। चिकित्सक इस विषय को अवश्य पूछता है। आहार चिकित्सा में प्रातः उषा पान करने के लिए कहा गया है। प्रातः उठकर पर्याप्त पानी पीना चाहिए। और दिन भर के आहार में भी तरल की मात्रा का समावेश होना चाहिए। किसी न किसी रूप में 5-6 लीटर जल ग्रहण करना आवश्यक है। ऐसे करने से पाचन व प्रातः शौच निवृति में कठिनाई नहीं आएगी। मात्र जल ग्रहण की नियमितता ही आपको कई प्रकार के रोगों से दूर रखेगी। पर्याप्त मात्रा में जल ग्रहण शरीर में शोधन का कार्य भी करता है। शरीर में धीरे-धीरे विष पदार्थ (टॉक्सीड) बढ़ते जाते हैं, जल उन्हें भी पसीने व मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकालता रहता है जिससे शरीर में संतुलन बना रहता है।
रोग लक्षण और पथ्य
क्र० | रोग लक्षण | पथ्य |
१ | एसिडिटी | सलाद, गाजर, गोभी, शिमला मिर्च, खीरा, अंगूर, खरबूजा और पपीता जैसे फल; दूध, दही, पनीर, सोया आदि जैसे प्रोटीन युक्त आहार; ब्राउन चावल, मक्का, रोटी और बेसन जैसे अनाज का सेवन; दाल, चना, लोबिया और मूंगफली जैसे फलौलीय भोजन का सेवन; अधिक पानी पीना चाहिए। |
२ | कब्ज | उषापान, रेशेदार फल व सब्जियों का अधक सेवन, पानी अधिक पीना, चना भिगोकर खाना |
३ | मोटापा | नींबू, शहद और गर्म पानी; लौकी जूस, धनिया जूस, ग्रीन टी बिना चीनी मिलाए |
४ | अनिद्रा | बादाम, अखरोट, दूध एवं दलिया का सेवन; सोने से पूर्व दूध, हर्बल चाय, केला |
५ | अपच | उबले हुए चावल, सब्जियों का सूप, केला, पपीता, उबली हुई सब्जियाँ, सेब की चटनी, अनानास, दही इत्यादि |
६ | गैस ट्रबल | तरबूज, कीवी, केला, अंजीर, खीरा, स्ट्राबेरी |
७ | चरम रोग | सहजन, टिंडा, परवल, लहसुन, टमाटर, मौसमी ताजी सब्जियाँ (लौकी, तोरई, करेला, कददू) सेब, पपीता, अनार, गोभी, गाजर, फालसा, आंवला |
८ | मधुमेह | सेब, अमरुद, नाशपति, आडू, जामुन, करेला, काला चना, सहजन |
९ | रक्त की कमी | चकुंदर, पालक, अनार, तुलसी, अमरुद, साबुत दाल, मोटा अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ. |
१० | कोलोस्ट्रोल बढ़ना | आंवला, एलोविरा, लहसुन, अदरक, नींबू, अर्जुन जड़ी बूटी, त्रिफला |
११ | ज्वर | खिचड़ी, फल, नारियल पानी, विभिन्न सूप |
उपरोक्त तालिका में सामान्य रूप से होने वाले रोग लक्षणों एवं आहार चिकित्सा में पथ्य खाद्य पदार्थों का वर्णन किया गया है। ये 11 रोग लक्षण है, इन्हें रोग मान लिया जाता है। इन्हें आहार चिकित्सा से न्यून व समाप्त किया जा सकता है अन्यथा आगे बढ़कर ये कई भयंकर रोगों को जन्म देते हैं।
आरोग्यं भोजनाधीनम्। (काश्यपसंहिता, खि. 5.9). महर्षि कश्यप कहते हैं कि आरोग्य भोजन के अधीन होता है। अपनी जीवन शैली में संतुलित आहार और आहार चिकित्सा को स्थान देकर जीवन में आरोग्य प्राप्त कर सकते हैं।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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