✍ रवि कुमार
कक्षा तीसरी-चौथी के चार-पांच बालक उद्यान में खेल रहे थे। परस्पर चर्चा करते समय एक बालक ने अपनी बात सांझा की। उस बात में बालक ने कहा कि कल मेरी परीक्षा है। यदि परीक्षा में कम अंक आए तो मेरी माँ का मेरे साथ क्या व्यवहार होगा, इसकी चिंता मुझे सताए जा रही है। घर का सदस्य कोई अनपेक्षित बात परिवार के मुखिया से छुपा रहा है। उसके मन में भाव है कि यदि बता दिया तो क्या होगा। कर्मचारी को उसकी कम्पनी ने अधिक कार्य बता दिया है। वह कार्य प्रारंभ किए बिना दवाब अनुभव कर रहा है। उपरोक्त तीनों प्रकार की स्थितियां तनाव की स्थिति उत्पन्न करती है। ऐसी और अनेक प्रकार की तनाव की स्थितियां हम अपने दैनंदिन जीवन में अनुभव करते होंगे। ये तनाव क्या है?
क्या है तनाव
भिन्न-भिन्न परिस्थिति में हमारा शरीर प्रतिक्रिया स्वरूप मन के भावों को शाब्दिक/अशाब्दिक अभिव्यक्त करता है। ये अभिव्यक्ति तनाव है। तनाव भावनात्मक या शारीरिक परेशानी से जुड़ी भावना है। यह अनुभूति किसी भी घटना या विचार से हो सकती है, जो व्यक्ति को निराश, क्रोधित और दुखी कर देती है। अगर तनाव लंबे समय तक रह जाए तो यह घातक भी हो सकता है।
तात्कालिक तनाव शीघ्र समाप्त हो जाता है। कई बार तनाव सप्ताह-मास तक चलता है। ऐसा भी होता है कि व्यक्ति तनाव में है लेकिन उसे पता ही नहीं है। लंबे समय का तनाव विभिन्न रोगों को जन्म लेता है। अवसाद, चिंता, द्विध्रुवी विकार, एंग्जायटी आदि जैसे गंभीर मानसिक विकारों को जन्म देता है लंबा तनाव।
तनाव के लक्षण
सामान्य स्थिति में सिरदर्द, सिर का भारी होना, किसी भी कार्य में एकाग्र न होना, भूख न लगना, स्मृति कम होना आदि तनाव के लक्षण है। तनाव का पेट पर भी प्रभाव होता रहता है जिसके कारण कब्ज होना, पेट ठीक से साफ न होना, जल्दी जल्दी पेट दर्द होना, गैस-एसिडिटी होना आदि सामान्य लक्षण है।
आहार का तनाव से सम्बंध
‘जैसा खाए अन्न वैसा हो जाए मन’ ये कहावत तो हम सबने सुनी होगी। अन्न का मन पर पर्याप्त प्रभाव रहता है। सात्विक भोजन दिनचर्या का भाग है तो मन निर्मल रहेगा। मन में गलत विचार व भाव उत्पन्न नहीं होंगे। तामसिक भोजन, आधा पका हुआ, भोजन निर्माण की मूल प्रक्रिया को बिगाड़कर बनाया हुआ, जंकफूड आदि का सेवन जीवन में मूढ़ता, आलस, क्रोध, एकाग्रता न होना आदि उत्पन्न करता है।
आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि सत्वशुद्धो ध्रुवा स्मृति:। स्मृतिर्लब्धे सर्वग्रन्थीनाँ प्रियमोक्ष:।।
– छान्दोग्य उपनिषद (7.2, 6.2)
अर्थात – आहार के शुद्ध होने से अंतःकरण की शुद्धि होती है। अंतःकरण के शुद्ध होने से बुद्धि निश्छल होती है और बुद्धि के निश्छल होने से सब संशय व भ्रम जाते रहते हैं और तब मुक्ति का मिल सकना सुलभ हो जाता है।
विहार का तनाव से सम्बंध
सम्यक दिनचर्या, खेल, व्यायाम, ईश-प्रार्थना, परस्पर संवाद, संतुलित कार्य समय आदि, ये सभी अच्छे विहार के भाग है। ये सब दिनचर्या के भाग व्यक्ति को मानसिक रूप से पुष्ट व दृढ़ करने का कार्य करते हैं।
आईटी क्षेत्र में कार्य करने वाले एक व्यक्ति से बात हुई कि सारा दिन लैपटॉप पर कार्य करने से मन तो नहीं थक जाता। उनका कथन था कि मन क्या शरीर भी थकता है। फिर मैंने प्रश्न किया कि आईटी अथवा कॉरपोरेट क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति कुछ वर्षों के पश्चात या तो ये व्यावसायिक क्षेत्र छोड़ देते हैं या कई प्रकार के रोगों से घिर जाते हैं। उन व्यक्ति का कहना था कि ये भी सत्य है। फिर मैंने प्रश्न किया कि उपरोक्त दोनों से बचना हो तो क्या करना चाहिए? बहुत सुंदर व व्यवहारिक उत्तर उन व्यक्ति का था – जो प्रोफेशनल दिनचर्या में शारीरिक कार्य, खेल/व्यायाम आदि को अनिवार्य से रूप से सम्मिलित रखते हैं वे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं और अपने क्षेत्र में आनन्द लेते हुए आगे बढ़ते हैं। तनाव उनके आसपास भी नहीं आ पाता।
सम्यक आहार-विहार से तनाव प्रबंधन
आहार-विहार सम्यक रहा तो तनाव हमारे निकट नहीं आ पाएगा। और किसी कारण से आया भी तो तात्कालिक ही रहेगा। सामान्यतः लोग हल्का सिरदर्द या सिर भारी होने पर सिरदर्द की गोली ले लेते हैं। ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। नहीं तो गोली की आदत या लत लग जाती है।
तनाव की स्थिति से बचने के लिए पर्याप्त नींद व पर्याप्त संवाद दिनचर्या का भाग बनना चाहिए। कई बार नींद पूरी न होने के कारण ही तनाव रहता है। सामान्यतः लोगों को लगता है कि तनाव के कारण नींद नहीं आ रही। ऐसी स्थिति में यदि आप एक पूरी नींद (6-8 घंटे) ले लेते हैं तो मन-मस्तिष्क से सहज व तनाव मुक्त अनुभव करेंगे। अपने जीवन में कोई ऐसा व्यक्तित्व हो जिससे आप अपने मन की बात निःसंकोच रख सके। योग व प्राणायाम का नियमित अभ्यास तनाव से लड़ने के लिए मानसिक शक्ति प्रदान करता है।
मिताहार बिना यस्तु योगारम्भं तु करायेत्।
नाना रोगो भवेतस्य किंचितद्योगो न सिध्यति।।
घरेण्ड संहिता (16) के अनुसार मिताहार के अभाव में योग रोग नाशक नहीं अपितु भयंकर रोगों का नाशक बन जाता है।
वर्तमान समय में तनाव प्रबंधन सर्वदूर चर्चा का विषय बना है। तनाव प्रबंधन तनाव के स्रोत को ढूंढने, कम करने व हटाने में सहायता करता है। यह तनावपूर्ण घटना को देखने का तरीका बदलने में, अपने शरीर पर तनाव के प्रभाव को कम करने में एवं वैकल्पिक तरीकों से परेशानियों का सामना करना सीखने में सहायता करने का प्रयास करता है।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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