संघ स्वयंसेवकों का शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शताब्दी के मुहाने पर खड़ा है। संघ को व्यापक रूप से एक विशाल और वर्धिष्णु संगठन के रूप में जाना जाता है। सन् 1925 में स्थापित संघ ने देश भर में विस्तार किया। विजयादशमी के दिन, 24 अक्तूबर, 2023 को  इसकी स्थापना के 98 साल पूरे हो गए…..

– प्रोफेसर अनिरुद्ध देशपांडे

सुसंगठित, एकीकृत, भेदभाव रहित और समतामूलक समाज का चित्र साकार करना संघ का लक्ष्य है। संघ का मूल सिद्धांत संघ और समाज की एकरूपता है। संघ कार्य के मोटे तौर पर दो विभाग हैं। उन्हें संगठन और जागरण के रूप में वर्णित किया जा सकता है। निःसंशय में इनमें पारस्परिकता है। संघ की शाखा संघ के काम का मूल है। जैसे-जैसे संघ के काम का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे दूसरे विभाग यानी जागरण अंग का विचार किया जाने लगा। संघ के स्वयंसेवक सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में सक्रिय हो गए और संघ के विचारों से प्रेरित होकर, उन क्षेत्रों में काम शुरू करने और उसे आगे ले जाने की पहल की। आज की घड़ी में इस तरह की भागीदारी ने कई क्षेत्रों को व्याप्त कर लिया है। शिक्षा, राजनीति, धर्म, छात्रों, मजदूरों और किसानों और कई अन्य क्षेत्रों में संस्थान और संगठन शुरू हो गए हैं। अधिकांश क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हुआ। इनमें संगठन स्वतंत्र हैं और प्रत्येक संगठन की कार्यप्रणाली अलग अर्थात, संबंधित क्षेत्र के लिए प्रासंगिक है। इन संगठनों से नए कार्यकर्ता निकलते हैं। कुछ संगठनों ने अब अपने काम के 50/60 साल पूरे कर लिए हैं, जबकि विद्यार्थी परिषद जैसे संगठन 75 साल पूरे कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में संघ की व्यापक भागीदारी के बारे में यहां कुछ बिंदु उठाना उचित होगा।

शिक्षा क्षेत्र में कार्य की प्रेरणा

शिक्षा समाज की मानसिकता को प्रभावित करने वाला एक सहज तरीका है। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा के बारे में कहा है कि “Manifestation of perfection already in a man!” हम सभी मानते हैं कि इस विचार को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। नर को नारायण करने की क्षमता शिक्षा में है। संघ का मानना है कि इस तरह की प्रेरणा से शिक्षा क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। कोठारी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में व्यापक विचार व्यक्त किया है कि ‘राष्ट्र का भाग्य कक्षाओं में आकार लेता है’ (‘Destiny of the nation is shaped in classes’). मैकाले की विचारधारा ने हमें जो नुकसान पहुंचाया है, उसे हमने दशकों से देखा है. हमारी अपेक्षा ऐसी शिक्षा से है जो पूरे भारतीय मानस का चित्र प्रस्तुत करे। कोठारी आयोग के बाद से आज की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने आम तौर पर इस मुद्दे को विस्तार से संबोधित किया है। संघ की सोच भी इससे अलग नहीं है। इसके पहलू विविध हो सकते हैं, लेकिन यह अवधारणा है कि मानव निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने वाली शिक्षा अधिक से अधिक समृद्ध होनी चाहिए। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, शिक्षा क्षेत्र में भागीदारी मुख्य रूप से विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम से है। यद्यपि प्रत्येक संगठन की पद्धति अलग है, लक्ष्य समान है।

विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान

विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला एक विशाल संगठन है। विद्या भारती को एक बहुत ही प्रभावी स्वायत्त संगठन के तौर पर जाना जाता है। विद्या भारती इस बात पर जोर देती है कि शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, संस्थान स्वायत्त होना चाहिए, कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और संस्थान को सरकारी सब्सिडी के बिना चलना चाहिए और इसी अनुरूप इसका कामकाज है। सरस्वती शिशु मंदिर के नाम से विद्यालय चलाए जाते हैं। आज की घड़ी में विस्तार देखें तो आश्चर्य होता है। 12,093 स्कूल, 139,000 शिक्षक और 3120,690 छात्र हैं. इसके अलावा, 11353 संस्कार केंद्र व एकल विद्यालय विद्या भारती का विस्तार है। इसमें साधारण से साधारण तत्व शामिल है, जबकि सबसे प्रतिभाशाली छात्र आज विभिन्न क्षेत्रों में मान्यवर हैं। यह शैक्षिक भागीदारी समुदाय की भागीदारी पर निर्भर करती है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

छात्र क्षेत्र में शिक्षा के राष्ट्रीय स्तर के कार्यों से प्रभावित करने वाली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में वैचारिक भूमिका के साथ शिक्षा के क्षेत्र में अपनी एक अलग स्थान बनाया है। न केवल देशभर में व्यापक विस्तार हुआ है, बल्कि यह छात्र जगत में एक रचनात्मक छात्र आंदोलन के रूप में स्थापित है. आज विद्यार्थी परिषद में ४५ लाख से अधिक सदस्य हैं।

भारतीय शिक्षण मंडल

भारतीय शिक्षण मंडल की स्थापना 50 साल पहले हुई थी। भारतीय शिक्षा मंडल का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण स्थापित करना है। गुरुकुल पद्धति से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा में भारतीय ज्ञान का आग्रह रखने वाला यह संगठन एक वैचारिक आंदोलन (घना ज्ञान वृक्ष) के रूप में जाना जाता है। सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् स्वर्गीय धर्मपाल जी ने शिक्षा की आदर्श स्थिति के बारे में ‘The Beautiful Tree’ की अवधारणा प्रस्तुत की थी। भारतीय शिक्षा मंडल ने स्वर्गीय धर्मपाल जी की पुस्तकों को मराठी में प्रकाशित किया। ये ऐसे उदाहरण हैं जो सीखने की प्रक्रिया को समृद्ध करते हैं।

संस्कृत भारती

संस्कृत भाषा के लिए हर भारतीय के दिल में प्रेम है, लेकिन संस्कृत भाषा सीखने-सिखाने की पद्धति, संभाषण के माध्यम से संस्कृत का विस्तार करने, बातचीत का आनंद लेने और संस्कृत साहित्य का अध्ययन करने के उद्देश्य से 1986 में प्रायोगिक तौर पर तथा 1996 में आधिकारिक रूप से संस्कृत भारती संगठन का काम शुरू हुआ. अब तक 150,000 से अधिक संभाषण कक्षाएं हुई हैं, जिसमें 200,000 से अधिक पुरुष और महिलाएं संस्कृत में संवाद कर रहे हैं। इसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के साथ आत्मीयता का वातावरण बनाना है।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास

कुछ वर्ष पूर्व, विभिन्न मीडिया और पुस्तकों के माध्यम से भारतीय अवधारणाओं को विकृत करने वाले कुछ लोग अनावश्यक रूप से भारतीय विचारों की आलोचना करते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका दबदबा था। इसके विरोध में ‘शिक्षा बचाओ आंदोलन’ प्रारम्भ किया गया, एक कानूनी लड़ाई लड़ी गई, और विकृत सामग्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। समय के साथ, इस अस्थायी संगठन को ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ में बदल दिया गया। आज यह संगठन पर्यावरण, वैदिक गणित, चरित्र संरक्षण, क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा जैसे कई माध्यमों से शिक्षा विकास पर कार्य कर रहा है।

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ

शिक्षा क्षेत्र में कर्मचारी (शिक्षक) संगठन पिछले 50 वर्षों से काम कर रहा है। कुछ अवसरों पर एक ट्रेड यूनियन की तरह कार्य करना पड़ता है। लेकिन trade unionism नहीं होना चाहिए, इस भूमिका को अपनाकर ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ’ कार्य कर रहा है. संगठन ने हमेशा कहा है कि छात्रों की आड़ लेकर कोई भी आंदोलन नहीं होना चाहिए।

विज्ञान भारती

एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने, विज्ञान शिक्षा में रुचि विकसित करने और आयुर्वेद और इसी तरह के भारतीय दृष्टिकोण को समाज में लाने के लिए विज्ञान भारती संगठन काम करता है।

ये सभी संगठन स्वायत्त हैं। प्रत्येक संगठन की कार्यप्रणाली अलग है और संबंधित संगठन के लिए आवश्यक है। कुछ आधारभूत विचारों को संजोने का यह प्रयास है। संघ की विचारधारा में यह मान लिया गया है, कि ऐसी शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जो भारतीय संस्कृति और भारतीय मानस को समृद्ध करे। यह विचार कि शिक्षा को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए और इसे दुनिया की सभी विचार धाराओं को शामिल करना चाहिए, व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। हमारे सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। कई संगठन आज प्रभावी रूप से उन पर विचार कर रहे हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

संघ के विचारों से प्रेरित ये संगठन अपना योगदान दे रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने इन सभी कारकों पर बहुत गहराई से विचार किया है। उल्लिखित सभी संगठन व संस्थाओं ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में बहुत मूल्यवान काम किया है। इस नीति के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा की है, कुछ नए प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं। बड़े और छोटे समुदायों में सेमिनार, साहित्य उत्पादन और कार्यान्वयन के प्रयासों पर व्यापक काम किया गया है।

आज की शैक्षिक स्थिति को और अधिक समृद्ध, युगानुकूल और कल्याणकारी बनाने के लिए इन सभी कार्यों में संघ के स्वयंसेवकों की भागीदारी बहुत मूल्यवान है। मुझे विश्वास है कि संघ के स्वयंसेवकों की यह भागीदारी समाज के सभी वर्गों की सहायता से और अधिक प्रगतिकारक होगी।

(लेखक शिक्षाविद् और राष्ट्रीय स्वय़ंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं।)

और पढ़ें : ‘वर्तमान परिदृश्य एवं हमारी भूमिका’ विषय पर प.पू. सरसंघचालक डॉ० मोहन भागवत जी का बौद्धिक वर्ग – 26 अप्रैल 2020

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *