हिंदी राम काव्यों में रामराज्य की संकल्पना

✍ डॉ. नाथूराम राठौर

राम राज्य

भारतीय मनीषा के जिन-जिन ग्रंथों में भगवान राम का चरित्रांकन हुआ है उन सभी में रामराज्य की संकल्पनाएं प्रतिष्ठित हैं। आदि कवि वाल्मीकि की रामायण से अनुकूलित संस्कृत काव्य ग्रंथों प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिंदी राम काव्यों में रामराज की प्रेरणाओं और संकल्पों की वर्णना मिलती है। इस निबंध में हिंदी में लिखित प्रमुख प्रबंध काव्यों/ महाकाव्यों में चित्रित पात्रों के माध्यम से राम राज्य की प्रभावी संकल्पनाओं का चित्रण किया जा रहा है।

हिंदी के सभी राम काव्यों में राम का शासन-प्रबंधन प्रेमाश्रित है। सुख संपन्न प्रजा राजा को प्राणों के समान प्रिय मानती है क्योंकि राजाराम प्रजा वत्सल, प्रजापालक और सुव्यवस्थापक हैं। अतः प्रजा उनके सदव्यवहारों और सुंदर आचरण के कारण उन पर सर्वस्व निछावर कर सकती हैं। राम राज्य में वेद सम्मत मार्ग पर वर्ण और आश्रमों के अनुसार कर्तव्य पालन करती हुई प्रजा सुखी भय-रोग-शोक रहित दरिद्रदीनता से दूर, छल-कपट, अज्ञानता से विरत, सदाचारी, गुणज्ञ, ऐश्वर्यशाली और उन्नतिशील है। संपूर्ण प्रकृति राजा और प्रजा के अनुकूल संपदा बिखेरती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदर्श राज्य के संबंध में लिखा है -आदर्श राज्य केवल बाह्य कार्यों का प्रतिबंधक और उत्तेजक नहीं है, हृदय को स्पर्श करने वाला है। यह धर्मराज्य है – यह राज्य केवल चलती हुई जड़ मशीन नहीं है -आदर्श व्यक्ति का परिवर्धित रूप है। प्रजा त्रास पर रक्षा करना, प्रतिज्ञा पाल नार्थ कष्ट झेलना, देश रक्षार्थ युद्ध करना, प्रजा के सुख-दुख में साथी होना यह राजा का आदर्श है। यही राम राज्य की संकल्पना है।

कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन के महाकाव्य ‘उर्मिला’ में लंका विजय के पश्चात विभीषण की राज्य सभा में राम जो वक्तव्य देते हैं वह उनके आदर्श आर्य राज्य की संकल्पना है । वे कहते हैं-

विश्व विजय की चाह नहीं थी और न रक्त पिपासा थी,

केवल‌ कुछ सेवा करने की उत्कंठित अभिलाषा थी।

कवि अयोध्यासिंह हरिऔध के राम का आदर्श ‘लोकाराधन’ पर आधारित है। सीता के विरुद्ध फैले प्रतिवाद का प्रतिकार राम शांति पूर्ण नीति द्वारा करना चाहते हैं। वे अपना संकल्प दोहराते हैं-

लोक आराधन के बल से लोकापवाद दल दूंगा।

कलुषित मानस को पावन कर मैं वांछित फल लूंगा।

मैथिलीशरण गुप्त के ‘साकेत’ में राम मानवता का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। वे लोक सेवा के कारण ही वन जाने तैयार होते हैं। कैकेयी का वरदान तो निमित्त मात्र है।

संपूर्ण विश्व में सुख एवं शांति की स्थापना करने, शापित-प्रताड़ित प्राणियों को नवजीवन देने तथा समष्टि के लिए व्यष्टि बलिदान का प्रचार करने वे धरा पर अवतीर्ण होते हैं। उनका उद्देश्य विश्व में नवीन क्रांति का समारंभ करना है। वे अपने लक्ष्य को स्पष्ट करते हैं-

भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया, नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।

संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया, इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।

राम काव्यों के अन्य पात्र भी रामराज्य की संकल्पना में राम के सहयोगी हैं। लक्ष्मण इस दृष्टि से प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वे बिना किसी बाध्यता के पारिवारिक सुख एवं वैभव छोड़कर वन जाने में राम के साथ हो जाते हैं। राम के आदर्शों  की प्राण प्रण से रक्षा करने में लक्ष्मण की लोक मांगलिक भावना ही प्रबल है। वे केवल भ्रातृ स्नेह के कारण जंगल नहीं जाते वरन राम राज्य की स्थापना के लक्ष्य में सहयोगी बनने के लिए वन यात्रा करते हैं।

भरत राम राज्य स्थापना के प्रमुख स्तंभ हैं। उनकी उत्तम राजव्यवस्था में सारा अवध राज्य एक कुटुंब सा बन जाता है जिसमें शासक और शासित का कोई भेद नहीं रह मंचता। भरत चौदह वर्षों तक अविचल भाव से ऐसे सुंदर राज्य की नींव रखते हैं जिसमें भविष्य में राम राज्य के महल निर्मित होते हैं।

राम राज्य

राम काव्य भार संभालने का दायित्व शत्रुघ्न पर ही आ जाता है। शत्रुघ्न जहां एक ओर अपनी वीरता से अयोध्या पर किसी शत्रु का आक्रमण नहीं होने देते वहीं दूसरी ओर धन-वैभव एवं संपन्नता से अयोध्या में राम राज्य की आधारशिला रख देते हैं। साकेत महाकाव्य में शत्रुघ्न की राज सुसंचालन व्यवस्था उल्लेखनीय है। उनके संचालन में अयोध्या में कला, संगीत, नाट्य, चिकित्सा, कृषि, गोपालन आदि सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति होती है। विभीषण भी राम राज्य के यशस्वी प्रचारक बनते हैं। उर्मिला नामक महाकाव्य में विभीषण का लोक कल्याणकारी भाव प्रबलता से उभरता है। राम को वह अनन्य सहयोग देकर अपनी जनकल्याणकारी और लोक धर्मी भावना का परिचय देते हैं। इसीलिए राम स्वयं विभीषण के राज्याभिषेक के समय उनके लोकधर्म की प्रशस्ति गा उठते हैं-

मानवता के लिए बनेगी पथ दर्शिका प्रदीप शिखा,

प्रतिबिंबित है तव नयनों में धर्म सनातन अनादि का।

विभीषण लंका क्षेत्र में राम के उत्कृष्ट राज्य आदर्शों को स्थापित करने में संलग्न होते हैं।

रामकाव्य के नारी पात्रों में सीता भी लोक धर्म और रामराज्य स्थापना की प्रबल सहयोगी बनती हैं। प्राचीन राम काव्यों में सीता को व्यक्ति धर्म का आदर्श रूप प्रदान किया गया है परंतु आधुनिक रामकाव्यों में उनका लोक सेविका रूप मुखरित हुआ है। इस रूप में सीता का व्यक्तित्व जनकल्याण, लोकहित और विश्व बंधुत्व की भूमिका पर आधृत हैं। साकेत में सीता भोली-कोल-किरात-भील-बालाओं को नागर भाव प्रदान करती हैं तथा अर्धनग्न, अविकसित और अशिष्ट ग्राम्य जीवन को सभ्यता का नूतन रंग देती हैं। सीता मानव जीवन का गौरव लोक सेवा करने एवं मानव का दुख भार हरण करने में ही मानती हैं। वैदेही वनवास में सीता का व्यक्तित्व लोक आराधिका के रूप में प्रस्तुत हुआ है। वे लोकाराधक राम के लक्ष्य की सहायिका बनकर वन-विपदा और राम-विरह की वेदना सहती रहती हैं। सीता लोकाराधन के कंटकाकीर्ण पथ को स्वीकार कर उसमें सुंदर भावों के पुष्प संजोने अग्रसित भी होती हैं-

जानकी ने कहा प्रभु मैं, उस पथ की पथिका हूंगी।

उभरे कांटों में से ही, अति सुंदर-सुमन चुनूंगी।।

समग्रतया प्राचीन और अर्वाचीन कवियों ने सीता को राम के सुराज्यादर्शो से संयुक्त कर दिया है।

रामकाव्य की उर्मिला के चरित्र को कवियों ने लोक सेवा, जनकल्याण और देश प्रेम की भित्ति पर खड़ा किया है। वह लोक सेवा के पथ पर अग्रसित पति लक्ष्मण के मार्ग का अवरोधक नहीं बनती और न ही रो-चीखकर घुलती रहती है। मैथिलीशरण गुप्त के साकेत में उर्मिला का चरित्र महान जीवन आदर्शों से आपूर्णित है। वह पृथ्वी पर स्वर्ग-भाव भरना चाहती हैं और लोकहित में संलग्न अपने प्रियतम के साधना पथ में किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित नहीं करती। उस की उदारता एवं सहृदयता उसे मानवता की उच्च भूमि पर प्रतिष्ठित कर देती है। उर्मिला की लोक सेवा का स्वरूप राष्ट्रप्रेम की भावना में भी मुखरित होता है। वह भारत लक्ष्मी को शत्रु के कारागार से मुक्त करने के लिए तत्पर होती है। साथ ही शत्रुओं के हृदय का परिष्कार करने की भी अपेक्षा करती है। वह मानवता की पादपीठ पर लक्ष्मण को न्योछावर कर देती हैं-

मानवता की पादपीठ पर, तुमको न्योछावर कर के।

रो लेगी उर्मिला तुम्हारी, चुपके- चुपके जी भर के।।

आधुनिक रामकाव्यों की कैकयी में लोकमंगल, राष्ट्रप्रेम और दूरदर्शिता विद्यमान है। कवि बाल कृष्ण शर्मा नवीन के महाकाव्य ‘उर्मिला’ में कैकेयी का व्यक्तित्व लोक सेवा, जन कल्याण और आर्य संस्कृति के प्रसार में सहयोगी है। लक्ष्मण के शब्दों में कैकेयी वैयक्तिक लाभालाभ अथवा पारिवारिक कलह से हटकर जन जागरण और लोकहित के लिए ही राम को वन प्रेषित करती हैं। वे दूरदर्शनी और महान लक्ष्य धारणी हैं।

निश्चित ही रामराज्य की उत्कृष्ट संकल्पना में रामकाव्य के पात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चाहे पुरुष पात्र हों या स्त्री पात्र सभी ने श्रेष्ठ रामराज्य बनाने के लिए अपनी समर्पण भावना संयोजित की है। महाकवि तुलसीदास के पश्चात रामकाव्य के कवियों ने बढ़-चढ़कर रामराज्य को श्रेष्ठतर बनाने के लिए अपने पात्रों की संयोजना की है। रामराज्य के संपोषक सभी कवि वंदनीय एवं महनीय भूमिकाकार हैं।

(लेखक दमोह, मध्य प्रदेश में प्रोफेसर है।)

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