गत अंक में हमने ‘कक्षाकक्ष में नवाचार’ विषय पर विचार किया था । इस अंक में हम एकाग्रता के विषय पर चर्चा करेंगे । एक विद्यालय में वन्दना में जाना हुआ । वन्दना सत्र में आए हुए अतिथि को मार्गदर्शन हेतु आमंत्रित किया जाता है । ‘मार्गदर्शन’ के नाम पर भाषण की बजाय एक प्रसंग सुनाया जाए, ऐसा सोचा । प्रसंग सुनाने से पूर्व कुछ गतिविधि करवाई । बालकों को कहा गिनती सुनाएं । सभी ने सुनाई । सरल-सा कार्य था । फिर उनसे कहा – 20 से 0 तक उल्टी गिनती सुनाएं एक साथ, एक श्वास में, बिना रुके व बिना-अटके । यह थोड़ा कठिन था । सभी ने प्रयास किया । फिर कहा गया – अकेले सुनानी है, कौन प्रयास कर सकता है । दो तीन बालकों ने प्रयास किया । अच्छा रहा, लेकिन बालकों को ज्यादा प्रयास करना पड़ा । ऐसे ही 100 से 80 तक, फिर 70 तक सुनाने को कहा । उसके लिए और अधिक प्रयास करना पड़ा । गिनती के बाद पहाड़े सुनाने को कहा । सभी ने मिलकर सुनाए । ताली के साथ, मिलकर सुनाने को कहा । सभी ने प्रयासपूर्वक सुनाए । इन दोनों गतिविधियों के बारे में आचार्य बैठक में चर्चा हुई । इस चर्चा से निकलकर आया कि चाहे 20 से 0 तक गिनती हो, या ताली के साथ मिलकर पहाड़े , ठीक प्रकार से बोलने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता रहती है ।
उपरोक्त गतिविधियों के सतत् अभ्यास से एकाग्रता का भी अभ्यास होता है । मन चंचल है, इधर उधर भागता है । मस्तिष्क में भी अनेक प्रकार के विचार एक साथ उत्पन्न होते रहते हैं । किसी कार्य को करते हुए मन और मस्तिष्क को सभी प्रकार के विचलन से हटाकर उस कार्य में केन्द्रित करना एकाग्रता है । एकाग्रता के लिए सतत् अभ्यास चाहिए । शिक्षण में एकाग्रता अति आवश्यक है ।
पतंजलि के अष्टांग योग में पंचकोशों का विकास अर्थात् सर्वांगीण विकास का वर्णन है । पंचकोशीय विकास में एक विज्ञानमय कोश का विकास आता है । विज्ञानमय कोश का विकास यानी बुद्धि का विकास । इस विकास में दस प्रकार की शक्तियों का विकास आता है । प्रथम तीन शक्तियां हैं – ग्रहण करने की शक्ति, धारणा शक्ति और स्मृति शक्ति का विकास । इन तीनों के लिए एकाग्रता आवश्यक है । कक्षाकक्ष में जिसे विषय समझ आ रहा है, अर्थात् वह ग्रहण कर रहा है । ग्रहण करने के पश्चात् उसके मस्तिष्क में वह विषय टिकता है तो धारण कर रहा है । कितने लंबे समय तक उसके मस्तिष्क में रहता है और लम्बे समय के बाद भी वह पूछने पर बताता है, तो स्मृति में आ रहा है ।
कक्षाकक्ष में एकाग्रता के अभ्यास के लिए वातावरण निर्मित करने की आवश्यकता रहती है । विभिन्न प्रकार की गतिविधियों की रचना करनी होती है । अभ्यस्त होने पर किसी भी परिस्थिति अथवा वातावरण में एकाग्र होने में कठिनाई नहीं होती । एकाग्रता का अभ्यास होने से सीखने सिखाने की गति स्वतः बढ़ जाती है । दैनिक जीवन पर भी उसका असर होता है । स्वामी विवेकानन्द ने एकाग्रता का अच्छा अभ्यास किया था । उनके जीवन के अनेक प्रसंगों से यह प्रकट होता है ।
ध्यान के नियमित अभ्यास से एकाग्रता में वृद्धि होती है । पेंसिलोनिया विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार प्रतिदिन कुछ मिनट ध्यान का अभ्यास – ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता व कार्य क्षमता में वृद्धि करता है । अच्छी सजगता और एकाग्रता ध्यान के सह-उत्पाद हैं । कक्षा में कुछ मिनटों के नियमित ध्यान से बालकों की एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है । प्रारम्भिक कक्षाओं में एकाग्रता बढ़ाने के विभिन्न प्रकार के प्रयासों की महती आवश्यकता है । प्रारम्भिक कक्षाओंमें एकाग्रता के अभ्यस्त होने से बड़ी कक्षाओं में विषय सम्बन्धी कठिनाइयां स्वतः न्यून हो जाएगी ।
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