– रवि कुमार
‘आपने लेखन कब सीखा’ यह प्रश्न यदि किसी वयस्क से पूछेंगे तो उत्तर आएगा – पहली कक्षा में। और यह पूछेंगे कि आपने लेखन कैसे सीखा? तो उत्तर आएगा – ‘मालूम नहीं’ आचार्य दीदी ने सिखाया, उन्हें ही पता होगा। हाँ जो उच्च शिक्षा के विद्यार्थी हैं, उनसे पूछेंगे तो वे नर्सरी कक्षा की बजाय पहली कक्षा कह सकते हैं। स्वयं के बारे में पुनःस्मरण का प्रयास किया कि मैने लिखना कैसे सीखा? तो वहाँ तक पहुँच नहीं पाया अर्थात् स्मृति में नहीं है। लेकिन किसी विद्यार्थी ने लिखना कब सीखा और कैसे सीखा, इसका प्रभाव उसके विद्यार्थी जीवन पर तो पड़ता ही है, शेष जीवन पर भी रहता है।
इस विषय पर जब और जिज्ञासा बढ़ी तो तीन विद्यालयों के प्रवास के दौरान मन में आया कि पता किया जाए – आजकल कैसे सीखते हैं? अरुण, उदय एवं प्रथम कक्षा की दीदी से इस विषय पर चर्चा से कुछ बातें निकल कर आई। अभिभावक के दबाव के कारण दीदी के मन में रहता है कि बालक को जल्दी से जल्दी पेंसिल पकड़वाई जाए। दूसरा बालक प्रारम्भ में बिन्दु मिलाना सीख ले। अक्षरों की बनावट में Clock wise या Anti-clock wise सिखाया जाए, इस विषय में भी भ्रम है, स्पष्टता नहीं है। कौन-सा वर्ण पहले सिखाना, कौन-सा वर्ण बाद में, इसके बारे में भी अलग-अलग मत हैं।
भाषा जैसे मनुष्य प्राकृतिक रूप से सीखता है विद्यालय में भी उसी प्रकार सिखाएँगे तो बालक ठीक प्रकार से सीखेगा। जैसे शिशु माँ के शब्दों को सुनता है, जो सुनता है उसे बोलने का प्रयास करता है। कक्षा में भी उसी प्रकार सीखना आवश्यक है। सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। लेखन का कार्य सबसे अन्त में है।
इसे LSRW (Listening, Speaking, Reading & Writing) भी कहते है। लेखन की जल्दबाजी से और उसी पर अधिक बल देने से शेष तीनों (सुनना, बोलना व पढ़ना) के विषय में अधूरापन रहता है। चार से साढे़ चार वर्ष की अवस्था तक अंगुलियाँ, जिससे पेन/पेंसिल पकड़कर जीवन भर लिखना है, का विकास नहीं हो पाता, जिसके कारण पेन/पेंसिल पर पकड़ बनती है। ‘सोलह संस्कार’ के क्रम में चार वर्ष, चार मास, चार दिन की आयु होने पर ‘विद्यारम्भ संस्कार’ का प्रावधान है। इसीलिए तीन वर्ष की आयु होने पर जितना आगे समय बढ़कर लेखन प्रारम्भ करेगा उतना लेख अच्छा होगा। इसमें जितनी जल्दबाजी रहती है उतनी गड़बड़ होती है।
स्लेट-बत्ती का उपयोग : आज के समय में स्लेट के उपयोग की बात कहें तो अटपटा-सा लगता है। तरीका पुराना है परन्तु आज भी कारगर है। जहाँ विद्यालयों में आज भी उपयोग होता है उसके अनुभव के आधार पर कुछ बातें कह सकते हैं। स्लेट पर बत्ती से लेखन करने पर फिसलन नहीं रहती। कॉपी में पंक्ति के मध्य में लिखना और उतना ही साइज रखना है। स्लेट पर बड़ा-बड़ा भी लिख सकते हैं। फिर गलत लिखे या सही, मिटाकर पुनः लिख सकते हैं। उससे बालक के मन में भय नहीं रहता कि पेज खराब होगा। स्लेट पर लिखने से बाजू बार-बार रगड़ खाती है, इससे बाजू की सक्रियता बढ़ती है और लेखन की गति में भी बढोत्तरी होती हैं।
मिट्टी में लेखन : कॉपी पैंसिल की बजाय मैदान में ले जाकर मिट्टी में अंगुली से लेखन करवाएँ। लेखन सिखाने का जो क्रम है उसे उसी अनुसार करवाएँ। Standing Line, Sleeping Line, Cross Line, Circle, Curve फिर चार चरणों में ‘ऊ’ और पांच चरणों में ‘अ’ सिखाएँ। मिट्टी में अंगुली से लेखन करवाने से चार बाते होंगी। एक, अंगुली का उपयोग होने से अंगुली का विकास होगा। दूसरा, बालक मिट्टी से अभ्यस्त (Habitual) होगा। जीवन में कभी Dust अर्थात् धूल से कठिनाई (Ellargy) नहीं होगी। तीसरा, Mind में ठीक से Mapping हो जाएगी। पैन-पेंसिल से लिखने पर अक्षर बनावट, पहचान व लेखन में सुविधा होगी। चौथा, उन्मुक्त वातावरण में बालक आनन्दित रहता है।