– रवि कुमार
एक नवयुवक स्नातक पूर्ण कर आजीविका के लिए किसी के पास जाता है और नौकरी के लिए पूछता है। सामने वाला प्रश्न पूछता है, “आपको क्या आता है?” नवयुवक कहता है, “मैंने स्नातक पूर्ण की है।” सामने से वही प्रश्न पुनः दोहराया जाता है। नवयुवक उत्तर देता है, “मैंने स्नातक 60% अंकों से उत्तीर्ण की है।” सामने से फिर प्रश्न आता है, “आपको कुछ आता है तो नौकरी के विषय में विचार कर सकते है।” नवयुवक सोच में पड़ जाता है कि मैं स्नातक हूँ। मुझे और क्या आना चाहिए? यह आज की वस्तुस्थिति है। डिग्री तो है परन्तु कुछ करना नहीं आता। किसी विषय में कुशलता प्राप्त नहीं की। ऐसा क्यों है? क्योंकि कौशल विकास को शिक्षा का अंग नहीं माना गया। विद्यार्थी कुछ विषयों को पढ़ता है, उसकी परीक्षा देता है और डिग्री प्राप्त करता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कौशल विकास को शिक्षा का अंग माना है और विद्यालयीन शिक्षा में कक्षा छह से सम्मिलित किया है। विद्यार्थी कौशल विकास की विभिन्न विधाओं में किसी एक विधा को अपनी रूचि अनुसार कक्षा छह से आठ तक रूचि विकास की दृष्टि से और कक्षा 9 से 12 एक व्यावसायिक विषय के रूप में रूप में सीखेगा। इससे विद्यार्थी यदि चाहे तो अपने आगामी जीवन में कौशल विकास की इस विधा को करियर का विषय भी बना सकेगा अथवा स्नातक के साथ साथ उसके पास कुछ न कुछ कुशलता भी रहेगी।
क्या है कौशल विकास : वास्तविकता में कौशल विकास क्या है और यह कौन सी आयु से प्रारंभ होता है? इस पर विचार करेंगे तो कौशल विकास है कर्मेन्द्रियों (हाथ, पैर और वाणी) एवं ज्ञानेन्द्रियों (आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा) की कुशलता। ये सब जितने कुशल होंगे व्यक्ति अपने सभी कार्य ठीक प्रकार से कर पाएगा। यह तभी संभव है जब परिवार शिक्षा से विद्यालय शिक्षा तक सभी में कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों की कुशलता प्राप्त करने के लिए प्रयास हो।
विद्यालय में कैसे करे : हाथ से काम करना, उपयोगी वस्तुएं बनाना, उत्कृष्ट वस्तुओं का निर्माण करना, कोई भी विषय प्रायोगिक रूप से सीखना आदि प्राथमिक शिक्षा का प्राण है, ऐसा सभी को आत्मसात करना चाहिए। खेलों के लिए जिस प्रकार मैदान अनिवार्य है, उसी प्रकार कौशल विकास के लिए कार्यशाला अनिवार्य है। जीवन के कार्यों को आसान बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीक आनी चाहिए और उसमें प्रयुक्त होने वाले यंत्रों को चलाने की कुशलता प्राप्त करना भी आवश्यक है। ऐसा करने के लिए सक्षम शरीर और एकाग्र मन भी चाहिए।
उदाहरण के लिए उबले आलू छीलने के लिए केवल हाथ चाहिए परन्तु काटने के लिए चाकू चाहिए। कील ठोकने के लिए हथौड़ी, रेखा खींचने के लिए पट्टी, कद्दूकस करने के लिए किसनी, लिखने के लिए लेखनी और रंग भरने के लिए ब्रुश चाहिए। झाड़ू, पोंछा, हाथ का पंखा, चलनी, धौंकनी, रस्सी, फावड़ा, कुदाल, चिमटा, पेचकस आदि असंख्य उपकरण हैं जिनका उपयोग कर हम अनेक प्रकार के कार्य संपन्न करते हैं। इन छोटे-बड़े, स्थूल-सूक्षम, कम या अधिक जटिल उपकरणों का सफाई से और कुशलता से उपयोग करना सीखना आवश्यक है। प्राथमिक शिक्षा का यह बहुत बड़ा अंग बनना चाहिए।
कौशल मानचित्रण Skill Mapping : उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए यह जानना आवश्यक है कि उनकी रूचि कौशल विकास की किस विधा में है। इसके लिए कौशल मानचित्रण करना होगा। स्थानीय कौशलों को सूचीबद्ध कर उसका एक चार्ट बनाना होगा। एक प्रश्नावली बनाकर विद्यार्थियों से भरवाकर कौशल मानचित्रण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों से पूछ सकते है कि घर में जब खाली समय होता है तो क्या करते हैं। जब व्यक्ति खाली होता है तो सबसे रुचिकर काम करना ही पसंद करता है। कुछ विधाओं को बताकर विद्यार्थियों से यह भी पूछ सकते हैं कि उन्हें क्या क्या करना आता है और क्या अच्छे से करना आता है। कौशल मानचित्रण करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जल्दबाजी से इस कार्य में परिणाम अच्छे नहीं आएँगे। कौशल मानचित्रण के पश्चात विधाशः विद्यार्थियों के अलग अलग समूह बना देने चाहिए।
कौन कौन से विधाएँ हो सकती है कौशल विकास की? इस विषय में जब विचार करेंगे तो ध्यान में आएगा कि हमारे इर्द-गिर्द अनेक विधाएँ है जिनमें यदि कुशलता प्राप्त की जाएँ तो जीवन कितना सुगम हो सकता है और ये सब विधाएँ करियर का विषय भी हो सकती हैं। जैसे – पाक-कला, बागवानी, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, किचन गार्डनिंग, दूध डेरी, कला और शिल्प, मेहंदी लगाना, गायन, नृत्य, संगीत यंत्र, मिट्टी के बर्तन/सजावट का सामान बनाना, इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बिंग, कारपेंटर, वेब डिजाइनिंग, डेटा प्रोग्रामिंग, कंप्यूटर टाइपिंग आदि। प्रारम्भ में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं के निर्माण एवं दैनिक उपयोगी गतिविधियों को सीखा सकते हैं। जैसे कला शिल्प में हार्ड बोर्ड या चार्ट से ज्योमेट्री बॉक्स एवं पेन स्टैंड का निर्माण, सिलाई में बटन-टांका लगाना, पाक-कला में चाय-कॉफ़ी बनाना आदि।
कौशल विकास के लिए हमें संसाधकों (Resource Person) की आवश्यकता रहेगी। सबसे पहले आचार्य परिवार व गैर शैक्षणिक कर्मचारियों में से ढूंढे कि किस विधा में कौन पारंगत है। इसके बाद अभिभावकों में से या विद्यालय से जुड़े समाज के विभिन्न लोगों में से संसाधक ढूंढ सकते हैं।
इस योजना को क्रियान्वयन में लाने के लिए समय की आवश्यकता पड़ेगी। इसके लिए दो प्रकार हो सकते हैं। पहला है कौशल गतिविधि कालांश (Skill activity period) देना। इसके लिए साप्ताहिक एक या दो कालांश की योजना हो सकती है। दूसरा है कौशल दिवस (Skill Day) मनाना। इसके लिए मास में कोई एक दिवस निश्चित कर न्यूनतम चार से छह कालांश इस कार्य के लिए देना। यह एक या दो बार करने का विषय नहीं है। वर्षभर की योजना में साप्ताहिक कालांश या मासिक दिवस को सम्मिलित करना आवश्यक है। किस कक्षा स्तर तक उस विधा को कितना सिखाना इसका भी पाठ्यक्रम बनना चाहिए। विद्यार्थी अपनी रूचि, क्षमता व योग्यता से स्तरानुसार सीखे। यह कार्य पूर्णतः प्रायोगिक है अतः प्रायोगिक पर ही बल रहे।
(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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