– रवि कुमार
साहित्य का शिक्षा में क्या सम्बन्ध है, विशेषकर विद्यालयीन शिक्षा में? यहाँ साहित्य अर्थात् Text Books नहीं, अन्य पुस्तकों है, जो पुस्तकालय में रखी जाती है। प्रत्येक विद्यालय में छोटा-बड़ा पुस्तकालय होता ही है। शिक्षा विभाग की नियमावली में है कि प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय हो और वहां छात्र संख्या के अनुपात से पुस्तकें हो। पुस्तकालय सभी विद्यालयों में होते है परन्तु क्रियाशील पुस्तकालय कुछ में ही विद्यालयों में दिखते है। अधिकांश स्थानों पर पुस्तकालय की संकल्पना शिक्षा विभाग के नियम पूर्ण करने से है। साहित्य की विद्यार्थियों के लिए क्या उपयोगिता है, इसकी जानकारी सामान्यतः नहीं होती।
क्या है उपयोगिता : पुस्तकालय का साहित्य विद्यार्थियों के भाषा विकास में सहायता करता है। विद्यार्थी नए-नए शब्द व वाक्य सीखते है। शब्द संचय बढ़ता है जो विद्यार्थी की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाता है। पुस्तकालय में साहित्य अध्ययन के कारण विद्यार्थी की जानकारी व ज्ञान का स्तर भी बढ़ता है, वह केवल पुस्तकीय ज्ञान (Text book knowledge) तक ही सीमित नहीं रहता।
विद्यालयीन शिक्षा में पुस्तकालय साहित्य पढ़ने की आदत लगाने के लिए भी है। छोटी आयु में आदत बनती है तो बड़ी कक्षाओं एवं उच्च शिक्षा में सहायक होती है। जीवन में भी इस आदत का विशेष प्रभाव रहता है। बहुत सारे ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे कि जिनके जीवन पर विद्यालय के पुस्तकालय के कारण बनी आदत का प्रभाव रहा और साहित्य अध्ययन उनकी एक शक्ति बन गया।
दीपावली के आस-पास एक विद्यालय में प्रवास पर वंदना सभा में रहना हुआ। कक्षा 6 से 8 की वंदना सभा में बातचीत के दौरान पूछा कि रामायण किस-किस ने पढ़ी है? बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने हाथ खड़े किए। यह देखकर मैं हैरान था! वर्तमान परिदृश्य में विद्यार्थियों ने रामायण पढ़ी है यह कठिन प्रतीत होता है। जिज्ञासा हुई कि कहाँ पढ़ी होगी? पूछने पर विद्यार्थियों ने बताया कि पुस्तकालय में पढ़ी है। पुस्तकालय प्रमुख से पूछने पर पता चला कि वहां रामायण आधारित कहानियों की चित्रमय पुस्तकें है जो विद्यार्थी नियमित पढ़ते है।
साहित्य में क्या-क्या हो : प्रायः पुस्तकालयों में साहित्य तो रहता है परन्तु विद्याथियों के उपयोग का रहता है या नहीं, यह कहना कठिन है। विशेषकर प्राथमिक कक्षाओं के लिए तो बिल्कुल नहीं होता। कक्षा 1-2, 3-5 व 6-8 तीनों समूहों के लिए अलग-अलग साहित्य की आवश्यकता रहती है। कक्षा 1-2 के लिए चित्रमय, मोटा फॉन्ट साइज़, कहानियाँ, कविताओं आदि की पुस्तकें ठीक रहती है। कक्षा 3-5 के लिए पंचतंत्र (जंगल) की कहानियाँ, महापुरुषों के जीवन चरित्र आदि जुड़ सकते है। कक्षा 6-8 के लिए महापुरुषों के जीवन चरित्र, रामायण-महाभारत आधारित कहानियाँ, यात्रा वृतांत आदि पुस्तकें हो सकती है। इस समूह के लिए अमर चित्रकथा (महापुरुषों के जीवन चरित्र-कॉमिक्स) उपयुक्त रहती है। इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल पत्रिका जैसी पत्रिकाएँ भी बाल मन को आकर्षित करती है।
कक्षा 9-12 के लिए अलग प्रकार से सोचते की आवश्यकता रहती है। इस अवस्था में बालक के अन्तःकरण में मन की बजाय बुद्धि की प्रधानता होती है। इन कक्षाओं में पाठ्यक्रम-विषय वस्तु भी अधिक रहता है इस कारण पाठ्यक्रम पर ध्यान भी अधिक होता जाता है। कक्षा 9-12 के लिए दो प्रकार से विचार किया जाना चाहिए। एक, तथ्यपरक कहानियां, एतिहासिक घटनाओं का वर्णन, यात्रा वृतांत, महापुरुषों की जीवनियाँ, उपन्यास, स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनियाँ, स्वतंत्रता संग्राम आधारित कहानियाँ, सफल जीवन चरित्र आदि पुस्तकें तथा दो, पाठ्यक्रम सम्बन्धी संदर्भ पुस्तकें, विभिन्न कक्षा शिक्षण विषय (विज्ञान, गणित, कंप्यूटर) सम्बन्धी पत्रिकाएँ आदि के बारे में विचार हो।
आचार्य के लिए भी पुस्तकालय में होना साहित्य आवश्यक है। कक्षा शिक्षण, शिक्षण सूत्र-युक्तियाँ, शिक्षण तकनीक, भाषा विज्ञान, बाल मनोविज्ञान, क्रियाशोध, शिक्षा का मूलभूत साहित्य, शिक्षा दर्शन, विभिन्न शिक्षाविदों के शिक्षा पर विचार आधारित पुस्तकें, विभिन्न पत्रिकाएँ आदि साहित्य पुस्तकालय में उपलब्ध हो। आचार्यों के लिए बैठने की भी व्यवस्था हो।
पुस्तकालय की सक्रियता : साहित्य होना एक विषय है, साहित्य का उपयोग होना दुसरा एवं साहित्य का प्रभाव पड़ रहा है यह तीसरा विषय है। दुसरे व तीसरे विषय के लिए पुस्तकालय की क्रियाशीलता आवश्यक है। समय-सारिणी में कक्षा 1 से 12 तक की कक्षा का साप्ताहिक एक कालांश पुस्तकालय का हो, दो कालांश दे सकते है तो अच्छा रहेगा। किसी भी स्थिति में इस व्यवस्था को बदला न जाएँ। बहुत विद्यालयों में परीक्षा निकट आने पर इस कालांश को बदल कर कक्षा शिक्षण विषयों में लगा दिया जाता है। पुस्कालय में बैठकर कक्षा स्तर अनुसार पुस्तक-पत्रिका का अध्ययन हो। पंजीकरण करवाकर घर ले जाकर पढ़ने की व्यवस्था हो।
पुस्तकालय आचार्य कभी-कभी अपने कालांश में कक्षा में भी जाएँ। कक्षा में गत दिनों में जो पुस्तकें पढ़ी गई उस सम्बन्धी चर्चा-प्रश्नोत्तरी हो, कोई कहानी-प्रसंग सुनकर नई पुस्तकों का परिचय दिया जाएँ। यदि पुस्तकालय में बैठने की व्यवस्था नहीं है तो पुस्तकें एक थैले में डालकर कालांश के दौरान कक्षा में जाएँ। कक्षा-कक्ष में पुस्तकालय कार्नर की व्यवस्था भी बनाई जा सकती है।
एक विद्यालय में पुस्तकालय में चालीस पुस्तकों का एक संच बना है। सभी पुस्तकों पर 1 से 40 तक क्रमांक लिखते है। विद्यालय कक्षा स्तर 6 से 12 का है। सत्र आरम्भ में जब कक्षा छह पुस्तकालय कालांश में आती है तो उसे कक्षा क्रमांक के अनुसार एक-एक पुस्तक दी जाती है। दो कालांशों के पश्चात् एक वाली दो के पास व दो वाली तीन के पास जाती है। इस प्रकार एक सत्र में सभी विद्यार्थी वे चालीस पुस्तकें पढ़ लेते है। पुस्तकों का चयन विशेष प्रकार से किया जाता है ताकि जिन विद्यार्थियों का साहित्य अध्ययन का अभ्यास नहीं है वे आसानी से पढ़ सके व पुस्तक अध्ययन में रूचि निर्माण हो सके।
दीवार पत्रिका (Wall magzine) : पुस्तकालय का आकर्षण बढ़ाने की दृष्टि से दीवार पत्रिका अच्छा प्रयोग है। पत्रिका साप्ताहिक/पाक्षिक/मासिक हो सकती है। नई खोज, अविष्कार, महत्वपूर्ण घटना, विमोचित नई पुस्तक, महत्वपूर्ण दिवस, विशेष व्यक्तित्व दीवार पत्रिका के विषय हो सकते है।
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