छत्रपति शिवाजी : आदर्श जीवन-मूल्यों के शाश्वत प्रेरणास्रोत – जयंती विशेष

 – डॉ कुलदीप मेहंदीरत्ता

भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी जैसी विभूतियों का एक विशिष्ट सम्मान और स्थान है। इन महापुरुषों के जीवन से हम भारतवासी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। इन प्रातः-स्मरणीय महान व्यक्तित्वों से प्रेरणादायी जीवन-मूल्यों का एक अजस्त्र स्त्रोत बहता है जो केवल भारत का ही नहीं बल्कि समस्त विश्व का मार्गदर्शन करने में समर्थ है। शिवाजी के जीवन से विभिन्न प्रकार के जीवन-मूल्यों को ग्रहण कर हम अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं। शिवाजी के जीवन की बहुत सी ऐसी घटनाओं के बारे में हमने अवश्य पढ़ा होगा, जिनसे हमने प्रेरणा ग्रहण की होगी। एक विद्यार्थी और शिक्षक के रूप में शिवाजी के जीवन से प्रेरणा लेकर निरंतर आगे बढ़ते रहने का प्रयास हम सबको करना होगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1627 को पुणे जिले के जुन्नार शहर के पास, शिवनेरी के किले में शाहजी भोंसले और जीजाबाई के घर हुआ था। शिवाजी का पूरा नाम ‘शिवाजी राजे भोंसले’ था। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले बीजापुरी सल्तनत की सेवा में थे।  शिवाजी की मां जीजाबाई एक धार्मिक महिला थीं जो कि सिंधखेड़ के नेता लखुजीराव जाधव की बेटी थीं और रामायण तथा महाभारत का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था। शिवाजी के जीवन पर अपनी माता जीजाबाई के धार्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का बहुत प्रभाव पड़ा। पिताजी के अधिकांश समय पुणे के बाहर रहने के कारण शिवाजी की शिक्षा की देखरेख की जिम्मेदारी मंत्रियों की एक छोटी सी परिषद को सौंपी गई थी। शिवाजी को शामराव नीलकंठ, बालकृष्ण पंत, रघुनाथ बल्लाल, सोनोपंत और मुख्य शिक्षक के रूप में दादोजी कोंडदेव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त शिवाजी के जीवन पर संत एकनाथ और समर्थ गुरु राम दास जैसी धार्मिक और सामाजिक विभूतियों का प्रेरणादायी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।

लगभग 16 वर्ष की अवस्था में शिवाजी का सैन्य जीवन प्रारम्भ हो गया। उन्होंने तोरण, चकना, सिंहगढ़, कोंडाना और पुरंदर जैसे कई किलों पर भी कब्जा कर लिया। बीजापुर के सुल्तान ने क्रोधित होकर शाहजी को कैद कर लिया। शिवाजी ने अपनी कूटनीतिक प्रतिभा का परिचय देते हुए अपने पिता की रिहाई सुनिश्चित की। इसके अतिरिक्त शिवाजी ने अपना ध्यान कोंकण तट पर लगाया और यहां उन्होंने प्रतापगढ़ का नया किला बनवाया। भारतीय इतिहास में सिंहगढ़ दुर्ग का उल्लेखनीय स्थान है। इस दुर्ग को जीतने के लिए उन्होंने तानाजी को भेजा था जिन्होंने सिंहगढ़ की लड़ाई में विजय और वीरगति प्राप्त की। शिवाजी ने तानाजी की मृत्यु पर कहा था – “गढ़ आला, पण सिंह गेला” (गढ़ तो जीत लिया पर सिंह हमें छोड़ कर चला गया)। इसी वर्ष अजय देवगन द्वारा निर्मित तथा अभिनीत ‘तानाजी: द अनसंग वॉरियर’ शिवाजी के वीर सखा ‘तानाजी मालुसरे’ की कहानी है।

शिवाजी का चरित्र उनकी ऐसी पूंजी था, जिसकी प्रशंसा उनके कट्टर शत्रुओं द्वारा भी की जाती है। दृढ़-चरित्र, उद्देश्यों की स्पष्टता, सत्यनिष्ठा, माता और मातृभूमि के अनन्य भक्त, नैतिक मूल्य, महिलाओं का सम्मान, निडरता, सर्व-धर्म समादर, दृढ़-निश्चयी, कर्तव्य-निष्ठ, कुशल संगठनकर्ता आदि उनके चरित्र के विभिन्न आयाम हैं। शिवाजी महाराज के समय के अधिकांश मराठा लोग ऐसे किसान थे जो बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे। यह शिवाजी का नैतिक नेतृत्व और चरित्र ही था कि वे ऐसे लोगों का एक संगठन खड़ा करने में सफल हो पाए जिन्होंने देश के लिए न केवल अपनी जान की बाज़ी लगा दी, बल्कि विश्व के समक्ष बलिदान के नए प्रतिमान स्थापित किये।

शिवाजी एक कुशल योजनाकार थे। सीमित मानवीय और भौतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग कर किस प्रकार अपने उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है, यह शिवाजी से सीखा जा सकता है। छोटी सी सेना और पहाड़ी क्षेत्रों में गुरिल्ला युद्ध पद्धति द्वारा अपने से कई गुना बड़ी और बेहतर शस्त्रों से सज्जित मुग़ल सेना को कई बार पराजित करना उनकी योजना-क्षमता को दर्शाता है। यही नहीं बल्कि युद्धों के ये उदाहरण हमें यह भी बताते हैं कि हम शिवाजी से यह भी सीख सकते हैं कि समय, परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ भले ही कितना विकट हो, कभी हार नहीं माननी चाहिए।

स्वयं पर भरोसा अर्थात् आत्म-विश्वास एक ऐसा जीवन-मूल्य है जो शिवाजी से हम ग्रहण कर सकते हैं। शिवाजी ने अपने जीवन में बहुत सी ऐसी लड़ाइयाँ लड़ी, जिनमें उन्होंने अपने से कई गुना बड़ी सेनाओं को हराया, इन युद्धों में उनकी सबसे बड़ी सहायक शक्ति उनका आत्मविश्वास था। एक अवसर पर शिवाजी के पिताजी उनको बीजापुर सुलतान के दरबार में ले गए, वहां दरबार की परम्परा के अनुसार शाहजी ने तीन बार झुक कर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा। लेकिन, शिवाजी किसी भी कीमत पर सिर झुकाने को तैयार नहीं हुए।  इस आत्मविश्वास का अर्थ आँख मूंद कर शत्रु से लड़ जाना नहीं था, बल्कि देश, काल और परिस्थितियों का उचित आंकलन कर उचित स्थिति में उचित निर्णय लेना था।

शिवाजी की आंकलन क्षमता और निर्णय क्षमता अद्भुत थी। अफ़जल खान का वध, शाइस्ता खान से संघर्ष, आगरा के किले से निकलना ऐसी अनेक घटनाएँ है जिनसे उनकी आंकलन क्षमता और परिस्थतियों के अनुसार बिना घबराए उचित निर्णय लेने की क्षमता का पता चलता है। हम जीवन में कई बार छोटी-छोटी समस्याओं से घबरा जाते हैं और दूसरों का मुहँ ताकने लगते हैं। विद्यार्थी और शिक्षक के रूप में हम शिवाजी से सीख सकते हैं कि परिस्थितियों का उचित आंकलन कर कैसे निर्णय लिए जाते हैं।

शिवाजी धार्मिक सहिष्णुता के वास्तविक प्रतीक थे। शिवाजी ने युद्ध में प्राप्त कुरान अथवा विजय प्राप्ति के बाद किसी मस्जिद का अपमान नहीं किया। ऐसी कई घटनाओं का इतिहास में वर्णन है जब शिवाजी ने युद्ध जीतने के बाद प्राप्त धार्मिक पुस्तकों को सम्मान सहित शत्रु खेमे में पहुंचाया। अपने धर्म के प्रति पूर्णत: समर्पित होते हुए उन्होंने दूसरों के धर्म को पर्याप्त सम्मान दिया।

नारी-सम्मान एक ऐसा सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन मूल्य है जो सम्पूर्ण विश्व में शिवाजी को एक अलग शासक विजेता के रूप में स्थापित करता है। तत्कालीन युग में एक ओर जहाँ पूरे विश्व में युद्ध में प्राप्त महिलाओं को सम्पत्ति के रूप में देखा जाता था। वहीँ शिवाजी महाराज ने मुस्लिम महिलाओं को बहन तथा माता का दर्जा प्रदान किया। कल्याण के युद्ध में पराजित मुस्लिम सूबेदार की सुन्दर पुत्रवधू को तोहफे के रूप में शिवाजी के पास भेजा गया। कितने महान रहे होंगे शिवाजी इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिवाजी ने जैसे ही उसे देखा तो उनके मुह से निकला कि ‘अगर मेरी माँ भी इतनी सुन्दर होती तो शायद मैं भी सुन्दर होता?’ और शिवाजी ने उसी समय आदेश दिया कि शत्रु पक्ष की महिला के साथ भी उत्तम व्यवहार किया जाये और उस महिला को उसके परिवार के पास भिजवा दिया। उनके जीवन की एक घटना ही हमें यह शिक्षा देने में समर्थ है कि नारी-सम्मान का वास्तविक अर्थ क्या है?

शिवाजी समाज में असमानता के विरोधी और सामाजिक समानता के पक्षधर थे। उनके समय की प्रमुख सामाजिक बुराई थी जातिवाद और छुआछूत। ऐसे समय में शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र भर में गणपति की झांकियां निकलवाईं, जिसमें समाज के सभी वर्ग एक साथ बिना किसी भेद के गणपति की स्थापना और पूजा करते थे। तत्कालीन समय में परम्पराओं का आवरण ग्रहण कर चुके जातिवाद और छुआछूत को अपने व्यक्तिगत आचरण से नकार कर समानता और भाईचारे की नयी शुरुआत करना शिवाजी जैसे विलक्षण व्यक्तित्व का कार्य था।

नेतृत्व शक्ति और कुशल वक्तृत्व के गुण ग्रहण करने के लिए हमें शिवाजी से बेहतर उदाहरण नहीं प्राप्त हो सकता। वीरता और युद्ध-कौशल के अद्भुत प्रतिमान शिवाजी की ने छोटी सी सेना के दम पर लगभग छह गुनी मुग़ल सेना को कई बार पराजित किया था। ये अद्भुत नेतृत्व शक्ति के बिना सम्भव नहीं था। अपने से कई बड़ी गुना बड़ी शक्ति से लड़ने का साहस कोई विरला व्यक्तित्व ही कर सकता था। इसी विरले व्यक्तित्व के मार्गदर्शन और नेतृत्व में मराठों ने अपना नाम अमर कर लिया। शिवाजी एक कुशल वक्ता भी थे। उन्होंने अपने वक्तव्यों द्वारा अपनी उस छोटी सी सेना को बड़ी सेनाओं से लड़ने को तैयार किया। मराठा वीर अपनी वीरता के लिए संसार में प्रसिद्ध हुए और यह कार्य बिना अपनी सेना को प्रेरित किये शिवाजी नहीं कर सकते थे।

विश्व इतिहास में ऐसे कम व्यक्तित्व हुए हैं जिन्हें शिवाजी जैसी विभूतियों के समकक्ष रखा जा सकता है। हम भारतवासियों  के लिए यह गर्व का विषय है कि शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्व ने इस धरा पर जन्म लिया। शिवाजी न केवल कुशल योद्धा, सुरक्षा रणनीतिज्ञ, श्रेष्ठ प्रबन्धनकर्ता तथा योजनाकार थे, बल्कि वास्तविक पंथनिरपेक्षता तथा मानवता की प्रतिमूर्ति भी थे। वास्तव में शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्व के गुणों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखने के समान है। शिवाजी के जीवन से हम भारतवासियों को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

और पढ़ें : बचपन से सिखाएं संयम और जीवन मूल्य

Facebook Comments

2 thoughts on “छत्रपति शिवाजी : आदर्श जीवन-मूल्यों के शाश्वत प्रेरणास्रोत – जयंती विशेष

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *