पुस्तक परिचय : भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला, चौथा ग्रन्थ – पश्चिमीकरण से भारतीय शिक्षा की मुक्ति

– वासुदेव प्रजापति

पुस्तक का नाम : भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला, चौथा ग्रन्थ पश्चिमीकरण से भारतीय शिक्षा की मुक्ति

लेखन एवं संपादन : इंदुमति काटदरे, अहमदाबाद

सह संपादक : वंदना फड़के नासिक, सुधा करंजगावकर अहमदाबाद, वासुदेव प्रजापति जोधपुर

प्रकाशक : पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, अहमदाबाद वेबसाइट – www.punarutthan.org

संस्करण : व्यास पूर्णिमा, युगाब्द, 9 जुलाई 2017

 

आप भी तनिक विचार करें?

अंग्रेजों ने श्रेष्ठ भारतीय शिक्षा का सर्वनाश क्यों किया?

अंग्रेजी शिक्षा से हमें क्या मिला?

अंग्रेजी शिक्षा ने हमसे क्या-क्या छीना?

स्वतंत्रता पूर्व किन-किन महापुरुषों ने राष्ट्रीय शिक्षा के प्रयत्न किये?

अंग्रेजी शिक्षा ने किस प्रकार भारतीय मानस को बदला?

अंग्रेजी शिक्षा के परिणाम स्वरूप हीनता बोध, जीवन मूल्यों का ह्रास, व्यक्ति केन्द्री विचार के साथ-साथ व्यवस्थाओं में बदलाव तथा यंत्र संस्कृति का विकास एवं कर्म संस्कृति का नाश हुआ है।

भारत में पुनः भारतीय शिक्षा प्रतिष्ठित करने के लिए अब क्या-क्या करना होगा?

आज भी भारतीय ज्ञान एवं कौशल के उदाहरण हम देश भर से दे सकते हैं।

उपर्यक्त सभी प्रश्नों का समाधान भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला का चौथा ग्रन्थ देता है, इसलिए इस ग्रन्थ को पढ़ना बहुत उपयोगी रहेगा। आओ! हम इस चौथे ग्रन्थ की संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करें।

चौथा ग्रन्थ पश्चिमीकरण से भारतीय शिक्षा की मुक्ति

इस ग्रन्थ में यह वर्णित है कि अंग्रेजों ने किस प्रकार इस देश की सनातन शिक्षा पद्धति को समाप्त किया, कैसे शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं के स्थान पर अंग्रेजी कर दिया और कैसे कक्षाकक्ष में भारतीय ज्ञान के स्थान पर यूरोपीय ज्ञान देकर इस देश के लोगों का मानस बदला गया। अब हम भारतीय शिक्षा को पुनः कैसे प्रतिष्ठित कर सकते हैं, इसका मार्ग दिखाया है। इस ग्रन्थ में कुल छः पर्व हैं।

प्रथम पर्व में यह बतलाया गया है कि भारत में दी जाने वाली शिक्षा भारतीय नहीं है। किस प्रकार अंगेजी सत्ता ने ब्रिटिश शिक्षा का भारत में विकास किया और कैसे भारतीय शिक्षा का सर्वनाश किया। कैसे संस्कृत के लिए लड़ाई लड़ी गई और कैसे ब्रिटिश शिक्षा इस देश में प्रतिष्ठित हुई।

पर्व दो में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी भारत में जो पश्चिमी शिक्षा ही दी जा रही है, उसका स्वरूप क्या है? शिक्षा विभाग, यूजीसी, अल्प संख्यक शिक्षण संस्थानों के राष्ट्रीय आयोग, विभिन्न माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, भारत में प्रारम्भिक व माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षा, राज्यों के अनुसार विश्वविद्यालयों की सूची और उनका वर्गीकरण देते हुए विभिन्न शिक्षा आयोगों की यूनिसेफ की जानकारी दी गई है।

पर्व तीन में शिक्षा के भारतीयकरण के प्रयास कब-कब किस रूप में हुए। स्वतन्त्रता पूर्व राष्ट्रीय शिक्षा का आन्दोलन किन-किन महापुरुषों ने चलाया, आज भी देश में भारतीयकरण के प्रयास कौन-कौन कर रहा है, और अन्त में भारतीयकरण के प्रयासों की समीक्षा करते हुए गहन चिंतन किया गया कि भारतीयकरण के ये प्रयास क्यों सफल नहीं हो पाये?

पर्व चार पश्चिमी शिक्षा के सांस्कृतिक दुष्परिणामों की ओर ध्यान दिलाता है। अंग्रेजी शिक्षा के परिणाम स्वरूप भारतवासियों की बुद्धि भ्रमित हुई, बुद्धि विभ्रम के परिणाम स्वरूप हम हीनताबोध से ग्रसित हुए, शिक्षा में जीवन मूल्यों का हृास हुआ, व्यक्ति केन्द्री व्यवस्था बनी तथा व्यवहार और व्यवस्था में भौतिकता आधार बन गई। इन सबके परिणाम स्वरूप यंत्र संस्कृति का विकास हुआ और कर्म संस्कृति का नाश हुआ, दायित्व बोध के अभाव का संकट खड़ा हो गया फलतः मनुष्य में निहित सम्पदाओं का नाश हुआ और अपने देश के विषय में घोर अज्ञान घर कर गया। यदि ऐसा ही चलता रहा तो देश की क्या स्थिति होगी? इस ओर ध्यान खींच कर उसमें आशा की किरण बताई गई है।

पर्व पाँच में भारतीय शिक्षा की पुन:प्रतिष्ठा हेतु करणीय प्रयास क्या-क्या करने होंगे? इसका मार्ग सुझाया है। करणीय कार्य ये हैः सर्वप्रथम हीनताबोध से मुक्त होने के उपाय करने होंगे। हमारी शोध दृष्टि बदलनी होगी, तदनुसार अध्ययन व अनुसंधान करने होंगे। व्यक्तिगत जीवन व परिवारिक जीवन में भारतीय शैली अपनानी होगी। भारतीय शिक्षा की पुनप्रतिष्ठा हेतु विद्यालयों को व समाज को अपेक्षित परिवर्तन की मानसिकता बनानी होगी। धर्माचार्य और सामाजिक कार्यकर्ताओं को व शैक्षिक संगठनों को भारतीय ज्ञान को पुन:प्रतिष्ठित करना होगा, तभी भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा सम्भव हो पायेगी।

पर्व छः में भारतीय ज्ञान की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाले कुछ मुखर उदाहरण दिये गये है। जैसे – शंख विज्ञान, प्रथम स्वदेशी वायुयान ‘मरुत सखा’ काटे कादु जोड़े त्रिभुवन, टीकाकरण, कागज निर्माण, बर्फ बनाने की प्रक्रिया, लोहे के कारखाने, अद्भुत क्षमता के दो नमूने, वैद्यशाला, जीता जागता पुल एवं अनोखी पाठशाला जैसे उदाहरणों के द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि भारत ज्ञान-विज्ञान में भी अग्रणी था।

फलश्रुतिइस चौथे ग्रन्थ को पढ़ने वालों में निश्चय ही विवेक शक्ति के साथ रचाभिमान जाग्रत होगा और वे स्वदेशी व विदेशी में भेद करते हुए स्वदेशी अपनाने में समर्थ होंगे।

(लेखक शिक्षाविद् है, इस ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सह सचिव है।)

और पढ़े पुस्तक परिचय : भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला, तीसरा ग्रन्थ – भारतीय शिक्षा के व्यवहारिक आयाम

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