भारतीय परम्परागत रसोई – घर का वैद्य

 – रवि कुमार

एक व्यक्ति स्कूटर पर जा रहा था। एक गाँव में भैस से टक्कर होने पर दुर्घटना हुई और उस व्यक्ति को काफी चोटें आई। पास ही एक क्लिनिक में गाँव के कुछ लोग उस दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को ले गए। गाँव में सूचना तंत्र बहुत मजबूत होता है। उसगाँव में इस व्यक्ति के रिश्तेदार भी रहते थे। रिश्तेदार परिवार तक उस दुर्घटना की सूचना पहुंची। घर के मुखिया तुरन्त क्लिनिक की ओर दौड़े। घर की गृहणी ने हल्दी मिलाकर दूध गर्म किया, उसमें देशी घी मिलाया। उस हल्दी व देशी घी युक्त गर्म दूध को एक पात्र में डालकर गृहणी भी क्लिनिक की ओर बढ़ी। क्लिनिक में चिकित्सक ने दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को तब तक मर्म पट्टी आदि कर दी थी। गृहणी ने उस व्यक्ति को वह दूध गिलास में डालकर पीने को कहा। अब प्रश्न यह उठता है कि ग्रहणी ने ऐसा क्यों किया? ग्रहणी को कैसे पता था कि चोट लगने पर हल्दी-देशी घी युक्त गर्म दूध पिलाना चाहिए। क्या गृहणी ने वैद्य से वह कार्य सीखा था या वह बहुत पढ़ी लिखी थी? ये दोनों बातें नहीं थी। ऐसा क्यों हुआ होगा तथा ऐसा और क्या-क्या होता है?आइए विचार करते हैं।

आयुर्वेद में कहा गया है – “आहार ही औषध।” अर्थात आहार स्वयं औषधि है। हमारा आहार यदि ठीक रहा तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा और औषधि की हमें आवश्यकता नहीं होगी। आहार-विहारकी गड़बड़ी के कारण स्वास्थ्य खराब होता है और उसे ठीक करने के लिए औषधि की आवश्यकता होती है। आयुर्वेद में चिकित्सा का मूल सिद्धांत बताया है – ‘निदान परिमार्जनम्, अर्थात रोग का कारण ढूँढ कर, उस कारण का निवारण करो। एलोपैथी के अधिकाधिक उपयोग से कारण का निवारण नहीं हो पाता।

आजकल औषधि के रूप में हम कोई न कोई गोली ले लेते है। अनेक घरों में प्राथमिक चिकित्सा डिब्बे (FirstAidBox) में सामान्य रूप से होने वाले रोगों के लिए एलोपैथिक औषधि गोली के रूप में रहती ही है। क्या कभी किसी ने सोचा कि हमारी रसोई में अनेक ऐसे मसाले रहते हैं जो सामान्य रोग में औषधि का कार्य करते हैं। आज की पीढ़ी में शायद नहीं! हाँ पिछली पीढ़ी में अवश्य विचार होता था और प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में होता होगा। इन मसालों का उपयोग भोजन को स्वादयुक्त बनाने के लिए किया जाता है। यदि मसालों के उपयोग की सही जानकारी है तो भोजन स्वास्थ्य वर्धक तो होगा,साथ ही सामान्य रूप से ऋतु अनुसार होने वाले रोगों से रक्षा कवच का भी कार्य करेगा। छोटी-छोटी बीमारी में इन मसालों के उपयोग से बिना चिकित्सक से बात किए और बिना एलोपैथी के घर पर ही उसका ईलाज कर सकते है।

मसालों का उपयोग औषधि के रूप में हो, इसके लिए हमारे पूर्वजों ने आयुर्वेद के सिद्धांतों को समझकर, मसालों के गुणधर्म जानकर उन्हें रसोई में आदरपूर्वक स्थान दिया है। अदरख, सौंठ, काली मिर्च, हल्दी, मेथी, अजवाइन, धनिया, जीरा, हींग, नमक ये ऐसे मसालें हैं जो प्रायः सभी रसोईघरों में पाए जाते है। वैसे शास्त्रों में 150 से अधिक मसालों का प्रयोग सहित वर्णन आता है। 150 की बजाय उपर्युक्त 10 मसालों का सही उपयोग ही हमें एक घर के वैद्य के रूप में स्थापित करेगा और छोटी-छोटी बीमारी में प्रयोग होने वाली एलोपैथी के दुष्प्रभाव से भी अपने घर को हम बचा सकते है।

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पेट दर्द, गैस आदि आजकल सामान्य बात हो गई है क्योंकि आजकल आहार के सामान्य नियमों के पालन का स्वभाव नहीं होता। सामान्य पेट दर्द है तो अजवाइन के साथ काला नमक मिलाकर गर्म पानी के साथ लेने से पेटदर्द, गैस आदि में राहत आ जाएगी। एक बार एक घर में जाना हुआ। भारतीय समाज में आतिथ्य की परंपरा के कारण “आप क्या लेंगे?”ऐसा परिवार के मुखिया ने पूछा। प्रातः 3 बजे से एसिडिटी होने के कारण मैंने कुछ भी लेने से मना किया। घर की गृहणी रसोई से एक गिलास में कुछ द्रव्य लेकर आई। “इसमें क्या है?”ऐसा पूछने पर गृहणी ने बताया कि सेब का रस है और उसमें काला नमक मिलाया है। उस एक तिहाई गिलास रस को ग्रहण करने से थोड़ी देर में एसिडिटी से राहत मिली।

वर्षा ऋतु ऐसी ऋतु है जिसमें अस्वस्थ होने की संभावना सबसे अधिक रहती है। इस ऋतु के प्रारम्भ से पूर्व एक प्रयोग करने से वर्षा ऋतु में होने वाली अस्वस्थता से बचा जा सकता है। एक गिलास दूध में 4-6 तुलसी के पत्ते, 2 हरी इलायची व 1-2 लौंग उबालकर प्रातः खाली पेट सात दिन तक लेवें। ऐसा करने से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी। शरद ऋतु में गला खराब होना, कफ बढ़ना यह सामान्यतः होता है। यह बढ़कर खांसी का रूप ले लेता है। अदरख के रस में शहद मिलाकर लेने से खांसी और कफ में राहत मिलेगी। शरद ऋतु में सब्जी व दाल में छौंक लगाते समय जीरा, हींग, राई, कढ़ी पत्ता का उपयोग ठंड से बचाव के लिए उपयोगी रहता है।

दस्त लगने पर दही-केला अथवा जीरा युक्त चावल के साथ दही लेने से लाभ मिलता है। सामान्य ज्वर में गुनगुने पानी, शहद व नींबू लेने से तीन दिन में काफी राहत मिलती है। सुखा व पका अदरख सुंठ बनता है। सुंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से पुराना जुकाम ठीक होता है।कभी-कभी मुख में छाले हो जाते हैं। ऐसे में चिकित्सक विटामिन बी काम्प्लेक्स का कैप्सूल लेने के लिए कहते हैं। इसकी बजाय दो-तीन अमरुद के पत्ते पानी के साथ खाने से तुरंत असर होता है और छालों में राहत मिलती है। घाव से रक्त बहता हो तो हल्दी का चूर्ण सरसों के तेल के साथ लगाने से रक्त भी बंद हो जाता है और घाव भी भरने लगता है। ठंड के दिनों में मेथी खाने से वायु रोग ठीक होते है।

आयुर्वेद में पांच प्रकार का नमक बताया गया है। ये पांच प्रकार है – काला नमक, सेंधा नमक, बीड नमक (खनिज), उदभिद नमक (भूमि पर क्षार) और समुद्री नमक। सेंधा नमक भूख बढ़ता है तथा लिया हुआ आहार पचाता है।गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करने से गले के दर्द और दांत की पीड़ा में राहत मिलती है। नींबू के टुकड़े पर नमक डालकर चूसने से भूख जागृत होती है और अरुचि दूर होती है। गर्म पानी में नमक डालकर प्रातःकाल खाली पेट पीने से मलशुद्धि अच्छी तरह से होती है।

भारतीय परम्परागत रसोई में मसालों का सही प्रयोग एक स्वस्थ परिवार की संकल्पना में सहायक है और औषधि के रूप में इन मसालों के उपयोग की जानकारी घर को औषधालय के रूप में स्थापित करती है। इससे हम चिकित्सा पर होने वाले अनावश्यक खर्च से तो बचते ही है और समय का अपव्यय एवं एलोपैथी के दुष्प्रभाव से भी दूर होते है।‘आहार ही औषध’ की भारतीय समाज में पुष्ट एवं स्वीकृत परम्परा को पुनर्जीवित करना वर्तमान समय में स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए आवश्यक है।

(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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