– वासुदेव प्रजापति
जिस समाज में जितने अधिक शिक्षित व्यक्ति होते हैं, वह समाज उतना ही अधिक विकसित होता है। एक शिक्षित व्यक्ति अपनी भाषा से, अपने व्यवहार से, अपनी शैली से समाज में अग्रणी भूमिका निभाता है और अपने समाज को सुव्यवस्थित व सुसंस्कारित बनाता है। इसलिए किसी भी समाज में शिक्षित व्यक्तियों का सर्वाधिक महत्त्व होता है। ठीक इसी प्रकार एक राष्ट्र में शिक्षित समाज का होना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। एक शिक्षित समाज की व्यवस्थाओं में भी अनेक विशेषताएँ होती हैं, जो अधोलिखित हैं –
शिक्षित समाज कर्तव्यनिष्ठ होता है
शिक्षित समाज के लोग पैसे लेकर या अपनी जाति देखकर अथवा किसी मजबूरी में मतदान नहीं करते। वे लोकतंत्र के प्रति अपने कर्तव्यों को भली-भांति समझते हैं। किसी एक व्यक्ति के समझने से काम नहीं चलता, जब पूरा समाज अपने कर्तव्यों को समझता है, तब समाज में सुव्यवस्थितता बनी रहती है। अन्यथा अशिक्षित समाज सदैव अराजकताओं से घिरा रहता है।
शिक्षित समाज में महिलाएं सुरक्षित रहती हैं। उनके साथ जोर-जबरदस्ती के किस्से नहीं होते। यदि कभी हो जाय तो समाज उसकी कड़ी भर्त्सना करता है, और अपने स्तर पर ही उसका निराकरण कर डालता है, कानून के भरोसे बैठा नहीं रहता। राज्य के कानून से सामाजिक आलोचना अधिक प्रभावी होती है। सामाजिक आलोचना के डर से शिक्षित समाज में किसी के साथ अभद्रता भी नहीं होती।
शिक्षित समाज में भ्रष्टाचार नहीं होता
शिक्षित समाज भ्रष्टाचारी नहीं होता, और न किसी असहाय का शोषण होने देता है। देश की अर्थनीति जिसमें उद्योग नीति का भी समावेश होता है, उनमें भ्रष्टाचार और शोषण के अवसर आने ही नहीं देता। परिणामस्वरूप लोगों में दरिद्रता नहीं बढ़ती।
शिक्षित समाज परिश्रमी होता है। लोगों को काम करने में आनन्द आता है, वे उद्यमी होते हैं। ऐसे उद्यमी लोगों को समाज सम्मान देता है। उनके साथ आदरपूर्ण व्यवहार करता है। ऐसे समाज में न तो कोई भूखा रहता है, न कोई बेरोजगार होता है और न कोई निठल्ला रह सकता है।
शिक्षित समाज स्वस्थ होता है
शिक्षित समाज में शारीरिक एवं मानसिक लोगों के हॉस्पिटल कम होते हैं। डॉक्टरों की संख्या भी कम होती है। विद्यार्थी डॉक्टर बनने के लिए लालायित नहीं होते, जबकी वहाँ कमाई भरपूर होती है। ठीक इसी प्रकार न्यायालयों व वकीलों की संख्या भी कम होती है।
शिक्षित समाज में असत्य बोलना, छल-कपट करना, द्वेष रखना जैसे मानवीय दोषों के नगण्य होने के फलस्वरूप लड़ाई-झगड़ों के मामले बहुत कम आते हैं, इसलिए वकीलों की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत शिक्षित समाज में अपनापन, मैत्री भाव, प्रेम व परस्पर सहयोग की भावना होने से समाज में मानसिक रोगी भी अत्यल्प होते हैं।
शिक्षित समाज संगठित होता है
शिक्षित समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव सहज ही होता है। लोग परस्पर सद्भाव पूर्वक रहते हैं। परस्पर सद्भावना होने से उनमें लड़ाई-झगड़े नहीं होते, उनमें मेल-मिलाप बना रहता है। फलत: उनमें संगठन का भाव जाग्रत होता है। ऐसा संगठित समाज आतंकवाद का सामना स्वयं ही कर लेता है। उसे राज्य अथवा सैन्य कार्यवाही की आवश्यकता नहीं पड़ती। संगठित समाज से ही राष्ट्र सफल बनता है।
शिक्षित समाज कुरीतियों से मुक्त होता है
शिक्षित समाज में विवाह विच्छेद नहीं होते, बच्चों के अनाथालय नहीं होते, नारी संरक्षण गृह और वृद्धाश्रम आदि नहीं होते। एक परिवार में दो पीढ़ियों का एक साथ रहना शिक्षित समाज का लक्षण है। ऐसा संयुक्त परिवार जीवन किसी को सरकार पर अधीन नहीं होने देता।
शिक्षित समाज में असंस्कारी फिल्में, असंस्कारी कला, असंस्कारी वेश आदि नहीं चलते, लोग शिष्टतापूर्ण जीवन जीते हैं। ऐसे समाज में कोई भी भूखा नहीं सोता, कोई बेरोजगार नहीं रहता, कोई निठल्ला तो बैठ ही नहीं सकता।
संगठित समाज ही सबल राष्ट्र
बात है मगध साम्राज्य की। उस समय मगध एक विशाल साम्राज्य था। उस विशाल मगध साम्राज्य का सम्राट था धननन्द। सम्राट धननन्द विलासी एवं प्रजा का शोषण करने वाला सम्राट था। वह था तो समृद्ध साम्राज्य का सम्राट परन्तु अपनी प्रजा पर अविचारी कर लगाकर उन्हें लूटता था। इस पर मगध के महामंत्री शकटार ने ऐसे कर लगाने का विरोध किया, तो धननन्द ने अपने ही महामंत्री को कारावास में डाल दिया।
महामंत्री शकटार के एक घनिष्ठ मित्र थे, आचार्य चणक। आचार्य चणक एक गुरुकुल चलाते थे। चणक को अपने मित्र शकटार का अपमान और सम्राट का दुर्व्यवहार सहन नहीं हुआ। उन्होंने प्रजा को साथ लेकर धननन्द का विरोध किया।
आततायी सम्राट ने उनपर घोड़े चलवाये और उन्हें भी कारावास में डाल दिया और घोर यातनाएँ दी। फलस्वरूप आचार्य चणक की कारावास में ही मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु हो जाने से गुरुकुल बिखरकर बंद हो गया। उनके परिवार में पत्नी व एक पुत्र था, वे अब असहाय हो गए। भूख, हताशा और राजद्रोही की पत्नी का अपमान वह सह नहीं पाई और चल बसी। पीछे रह गया एकमात्र अनाथ बालक विष्णुगुप्त। पाटलिपुत्र के अन्य आचार्यों ने उसे पढ़ाने से मना कर दिया और प्रजा ने उन्हें भिक्षा देने से मना कर दिया, क्योंकि वह एक राजद्रोही का पुत्र था। यह अनाथ बालक विष्णुगुप्त भी एक स्वाभिमानी आचार्य का पुत्र जो था, इसने भी अपने पिता की भाँति हार नहीं मानी। उसे अपने स्वमानी, ज्ञान साधक और अत्याचारी सम्राट का विरोध करने वाले साहसी पिता पर अत्यधिक गर्व था। इसलिए वह स्वयं को गर्व से चणक का पुत्र बताते थे। अतः यही अनाथ बालक विष्णुगुप्त आगे जाकर सम्पूर्ण विश्व में चणक का पुत्र चाणक्य नाम से विख्यात हुआ।
सब ओर से निष्कासित बालक चाणक्य अपनी शिक्षा पूर्ण करने हेतु तक्षशिला आ गया। यहाँ इस बालक ने राजनीति शास्त्र का अध्ययन शुरू किया और आठ वर्ष में अपना अध्ययन पूर्ण कर लिया। अध्ययन पूर्णकर तक्षशिला विद्यापीठ में ही वे आचार्य बन गए। अपने शिष्यों को पढ़ाने के साथ-साथ वे गांधार और कैकय के राजाओं का स्वभाव और व्यवहार भी बड़ी बारीकी से देख व समझ रहे थे। उनका स्पष्ट मानना था कि राजनीति जो पुस्तको में लिखा हुआ है, मात्र वह पढ़ाने का विषय नहीं अपितु प्रजा जीवन का नियमन और उसे सुरक्षा दिलाने का विषय भी है। वे छोटे-छोटे राज्यों, गण राज्यों के अधिपतियों की संकुचित और स्वार्थी मनोवृत्तियों के चलते आपसी युद्धों तथा मगध जैसे विशाल साम्रज्यों के धननन्द जैसे आततायी और विलासी सम्राटों के द्वारा प्रजा पर होने वाले शोषण के परिणामों को वे देख रहे थे। यह सब देखकर उन्हें यह प्रतीति हो रही थी कि इनसे राष्ट्र दुर्बल हो रहा है, संस्कृति के मूल्यों का ह्रास हो रहा है। ऐसा राष्ट्र कभी भी परकीय आक्रमणों का शिकार बन सकता है। ऐसी परिस्थिति में राजा और प्रजा दोनों को नियंत्रण और मार्गदर्शन से सही मार्ग पर लाने में विद्यापीठ का सक्रीय योगदान होना चाहिए और राष्ट्र को संगठित व सबल बनाना चाहिए।
चाणक्य का कहना था कि – “मैं एक शिक्षक हूँ, मुझे समाज और राष्ट्र का विचार करना है” अतः उन्होंने अपनी शिक्षा व तात्कालिक अनुभवों के आधार पर समाज को शिक्षित व संगठित करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होंने चन्द्रगुप्त का चयन कर उसे भावी सम्राट के रूप में प्रशिक्षित किया। राजाओं को स्वार्थी और संकुचित राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित प्रथम, राष्ट्र सुदृढ़ और बलवान होने की अनिवार्यता के बारे में समझाने में सफल हुए। तक्षशिला विद्यापीठ के छात्रों को चन्द्रगुप्त के नैतृत्व में सैनिक शिक्षा दिलवाई। वे छात्रों के माध्यम से सिकन्दर के विश्वविजय अभियान को रोकने में सफल हुए। विद्यापीठ के छात्रों ने सिकन्दर की सेना को इतना परेशान किया कि वे उत्तर पश्चिमी प्रदेश से आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाए और वापस लौट गए, जहाँ मार्ग में ही सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
दूसरी ओर मगध सम्राट धननन्द द्वारा इस स्वतंत्रता आन्दोलन से अलग रहने, भोग-विलास में मस्त रहने की प्रवृत्ति को देखकर उसे पाठ पढ़ाने का निश्चय किया और उसे समझने हेतु उसके दरबार में गए। विशाल साम्राज्य के मद में चूर धननन्द ने चाणक्य को भरे दरबार में अपमानित कर बाहर निकाल दिया। तब चाणक्य ने प्रतिज्ञा की कि “मैं अपनी शिखा तब तक नहीं बाँधूँगा,जब तक धननन्द को पदच्युत न कर दूँगा।” उन्होंने मगध की राजनीति को बारीकी से समझा, उसकी कमियों, छिद्रों को जाना और सुयोग्य व्यक्तियों को राष्ट्रनिष्ठा, सत्यनिष्ठा और निस्वार्थ भाव से जीत लिया। मगध के आचार्यों को संगठित कर उन्हें जनमानस के प्रबोधन कार्य में लगाया। उधर धननन्द के सारे सुरक्षा कवच नष्टकर उसे पदच्युत कर चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक कर दिया। धननन्द की पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाकर उसे कंटक रहित बना दिया। स्वयं ने महामात्य का दायित्व सम्भालकर राज्य को संगठित, बलशाली व समृद्ध बनाया। परिणामस्वरूप सिकन्दर के आक्रमण के लगभग तीन वर्ष पश्चात जब सैल्यूकस ने पुनः आक्रमण किया तो संगठित समाज की अमोघ शक्ति के सामने सैल्यूकस की सेना बुरी तरह पराजित हुई। अपनी जान बचाने के लिए अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त से करके अपनी इज्ज़त बचाई।
जब-जब समाज संगठित हुआ है, तब-तब भारत राष्ट्र ने ऐसे-ऐसे चमत्कार करके दिखाएँ हैं कि सम्पूर्ण विश्व ने दाँतों तले अंगुली दबाई है। आचार्य चाणक्य ने अपने समय में यह प्रत्यक्ष करके दिखाया था। आज भारत राष्ट्र पुनः करवट ले रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले समय में भारत पुनः विश्व का सिरमौर बनकर सम्पूर्ण विश्व को कल्याण के पथ पर अग्रसर करे। बस! हमें आचार्य चाणक्य की शिक्षा लागू करनी होगी, “जो शिक्षा यह नहीं सिखाती कि राष्ट्र सर्वोपरि है, वह शिक्षा व्यर्थ है उसे शीघ्र रोक देना चाहिए।” हमें अपने समाज को शिक्षित, संगठित व सामर्थ्यशाली बनाने वाली भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा करनी है।
(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)
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