– वासुदेव प्रजापति
हमारे समाज में शिक्षित व्यक्ति का महत्त्व सदैव रहा है। यदि कोई व्यक्ति अशिक्षित है, तो समाज में उसे कभी मान-सम्मान प्राप्त नहीं होता। संस्कृत में इसी आशय का एक सुभाषित है –
रूप यौवन सम्पन्ना विशाल कुल सम्भवा:।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुका:।।
अर्थात् कोई व्यक्ति रूपवान हो, युवा हो और उच्च कुल का भी हो। ये सभी बातें होने पर भी यदि वह विद्या से हीन है तो उसकी कभी शोभा नहीं होती।। जैसे पुष्पों में बिना गंध के किंशुक पुष्प की कभी शोभा नहीं होती, वैसे ही शिक्षितों के मध्य अशिक्षित कभी शोभायमान नहीं होता।
आज शिक्षित व अशिक्षित शब्दों के अर्थ में बड़ा भ्रम खड़ा कर दिया गया है। यह भ्रम तोड़ना आवश्यक है, अन्यथा विषय स्पष्ट ही नहीं होगा। वर्तमान मान्यता में जो विद्यालय में पढ़ा है, वह शिक्षित है। जो विद्यालय में नहीं पढ़ा है, वह अशिक्षित है। जिसके पास कोई सर्टिफिकेट या डिग्री है, वह पढ़ा-लिखा माना जाता है। जिसके पास कोई सर्टिफिकेट या डिग्री नहीं है, वह अनपढ़ कहलाता है। इसी प्रकार जो साक्षर है, अर्थात् पढ़ना-लिखना जानता है, वह शिक्षित है। और जो निरक्षर है, अर्थात् पढ़ना-लिखना नहीं जानता वह अशिक्षित है। ऐसा मानना सही नहीं है, तो सही क्या है? पहले वह जानेंगे।
हमारी मान्यता में केवल विद्यालय जाना, साक्षर होना या डिग्री होना ही शिक्षित होना नहीं है। बिना विद्यालय गए, बिना साक्षर हुए या बिना डिग्री लिए भी व्यक्ति शिक्षित हो सकता है। शिक्षित होने की आज की मान्यता के अनुसार तो हमारे दादा-परदादा अशिक्षित थे। मेरे दादाजी एक दिन भी स्कूल नहीं गए थे, निरक्षर थे, उनके पास कोई सर्टिफिकेट भी नहीं था, फिर भी वे अपने समाज के पंच थे। क्या पंच कभी अशिक्षित हो सकते हैं? नहीं हो सकते। इसका सीधा-सा अर्थ है कि केवल साक्षर होना शिक्षित होने का मापदण्ड नहीं है। साक्षर भी अशिक्षित हो सकता है और निरक्षर भी शिक्षित हो सकता है।
हमारी मान्यता में जो व्यक्ति भारतीय जीवन दृष्टि और मान्यताओं को समझता है व उनका पालन करता है, वह शिक्षित है। जैसे हमारी मान्यता है, ‘सत्यम् वद:’ सदा सत्य बोलो। यह सत्य सार्वभौम महाव्रत है, ऐसा हमें हमारा योगसूत्र बतलाता है। अतः जो सत्य का महत्त्व समझता है और सत्य बोलता है, वह शिक्षित है। जो सत्य नहीं बोलता वह अशिक्षित है। ऐसा नहीं है कि शिक्षित व्यक्ति में असत्य बोलने की क्षमता नहीं होती। उसमें भी क्षमता होती है, किन्तु क्षमता होते हुए भी असत्य नहीं बोलना ही शिक्षित होने का प्रमाण है। सार्वभौम महाव्रत का पालन करना ही शिक्षित होना है। हमारे पूर्वज अनपढ़ होते हुए भी महाव्रतों का पालन करते थे, इसलिए वे शिक्षित थे। शिक्षित होने के और भी कुछ मापदण्ड और भी हैं, जो इस प्रकार हैं –
शिक्षित व्यक्ति सदाचारी होता है
शिक्षित व्यक्ति किसी के साथ छल-कपट का व्यवहार नहीं करता। वह छल-कपट करना नहीं जानता, ऐसी बात नहीं है। वह भी छल-कपट कर सकता है, परन्तु अपने स्वार्थ के लिए कभी भी वह छल-कपट नहीं करता, जबकि अशिक्षित अपने स्वार्थ के लिए छल-कपट करने में तनिक भी देर नहीं लगाता। हमारे यहाँ शिक्षित व अशिक्षित में यही अन्तर है। असत्य बोलना, छल-कपट करना, धोखा देना, अप्रामाणिक आचरण करना, किसी को मूर्ख बनाना, किसी को मजबूर करके अपना स्वार्थ साधना आदि। ये सभी काम अच्छे नहीं माने जाते इसलिए दुराचार कहलाते हैं, जबकि इनके ठीक विपरीत काम अच्छे माने जाते हैं, इसलिए उन्हें सदाचार कहते हैं। शिक्षित व्यक्ति सदैव सदाचारी होता है जबकि अशिक्षित व्यक्ति दुराचारी होता है।
शिक्षित व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है
कभी-कभी शिक्षित व्यक्ति ज्ञानी तो होता है परन्तु चतुर नहीं होता। कुछ लोग चतुराई को अच्छा भी नहीं मानते। उनकी दृष्टि में अच्छे लोगों को सज्जन होना चाहिए। किन्तु कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिनमें चतुराई होनी आवश्यक है। जैसे राजनीति का क्षेत्र, उसमें काम करने वाला व्यक्ति यदि चतुर नहीं हुआ तो कभी सफल नहीं होगा। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि राजनीति गंदा क्षेत्र है, इसलिए अच्छे लोगों को उसमें जाना ही नहीं चाहिए। यदि अच्छे लोग राजनीति में नहीं जायेंगे तो राजनीति बिगड़ जाएगी। केवल स्वार्थी,कपटी व बुरी नीयत वाले लोग ही राजनीति को चलायेंगे और जनता का बेड़ागर्क कर देंगे। अतः चतुराई जैसी क्षमताएं अच्छे शिक्षित व्यक्तियों में भी होनी चाहिए। अन्यथा वे अनेक प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में से मार्ग नहीं निकाल पायेंगे, अनेक समस्याओं का हल निकालने में असफल होंगे। इसलिए शिक्षित व्यक्ति में परिस्थिति का आकलन कर उचित व्यवहार करने की कुशलता भी होनी चाहिए।
शिक्षित व्यक्ति विवेकी होता है
आदि शंकराचार्य कहते हैं कि सच्चा पंडित वह है जो विद्वानों की सभा में शास्त्रार्थ करता है, साथ ही वन में जाकर लकड़ी काटता है, उन लकड़ियों की सुन्दर गठरी बाँधता है और बाजार में जाकर उचित दाम में बैठता भी है। अर्थात् जिसमें शास्त्रार्थ करने की विद्वता, लकड़ी काटने की कुशलता, बेचते समय ठगे न जाने का विवेक होता है, वही पंडित अर्थात् शिक्षित व्यक्ति है।
विवेक भी दो प्रकार का होता है, तात्त्विक विवेक और व्यावहारिक विवेक। उदाहरण के लिए सज्जन व्यक्ति को कभी असत्य नहीं बोलना चाहिए, यह तात्त्विक विवेक है। परन्तु किसी अबला नारी के पीछे गुंडे पड़ें हैं, इस विकट परिस्थिति में उसे शरण देने पर यदि असत्य बोलना पड़े तो बोलना चाहिए, यह व्यावहारिक विवेक है। शिक्षित व्यक्ति में यह व्यावहारिक विवेक भी होना चाहिए।
शिक्षित व्यक्ति संयमी होता है
शिक्षित व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को वश में रखता है। वह इन्द्रिय लोलुपता से प्रेरित होकर कभी भी करणीय कार्य नहीं करता। उसका खानपान, वेशभूषा, बोलचाल और सार्वजनिक व्यवहार शिष्टतापूर्ण होता है। उसके व्यवहार में कभी हल्कापन दिखाई नहीं देता। उसकी रुचि अभिजात होती है। शिक्षित व्यक्ति में दया, करुणा, प्रेम, सेवा व सहानुभूति के भाव सहज में होते हैं। उसका हृदय उदार, सहनशील व क्षमाशील होता है। उसे सुख में मदद नहीं चढ़ता और दुःख में वह धैर्य नहीं खोता। वह स्वयं भयभीत नहीं होता और किसी को भयभीत नहीं करता।
शिक्षित व्यक्ति देशभक्त होता है
शिक्षित व्यक्ति समाज व देश का सदैव हित चाहता है। कृतिशील देशभक्ति का अर्थ क्या होता है, वह भली-भांति जानता है। उसे यह सिखाना नहीं पड़ता कि विदेशी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए, देश में पढ़ाई कर अधिक पैसों के लालच में विदेश की सेवा नहीं करनी चाहिए अथवा कानून का पालन करने के लिए उसे दण्ड का भय दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती आदि। वह स्वयं प्रेरणा से देशभक्ति पूर्ण आचरण करता है, तथा अपने आचरण से दूसरों को भी वैसा ही आचरण करने हेतु प्रेरित करता है। शिक्षित व्यक्ति समाज हित को सर्वोपरि रखता है। समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने हेतु तत्पर रहता है। अपने अर्थात् जन हेतु ऐसा व्यवसाय नहीं चुनता जिससे समाज के किसी भी वर्ग की अथवा किसी भी व्यक्ति की हानि होती हो।
शिक्षित व्यक्ति शास्त्रीय होता है
शिक्षित व्यक्ति की अपने शास्त्रों में अपार श्रद्धा होती है। वह जैसे अपने मानवीय गुणों को नहीं छोड़ता, वैसे ही अपने शास्त्रों को भी नहीं छोड़ता। वह जो कुछ भी करता है, उसे शास्त्रीय पद्धति से ही करता है। शास्त्रीयता ही आज की भाषा में वैज्ञानिकता कहलाती है। शिक्षित व्यक्ति अवैज्ञानिक पद्धति से किसी परम्परा का पालन नहीं करता और न अवैज्ञानिक ढंग से किसी परम्परा की आलोचना कर उसका त्याग ही करता है।
वह जिसे सही मानता है, उसका पालन करने में किसी की आलोचना या मजाक अथवा विरोध से भी डरता नहीं है, उसमें आत्मविश्वास और निर्भयता दोनों गुण होते हैं। वह नियम पालन करने में स्वयं के प्रति कठोर और दूसरों के प्रति मृदु होता है। वह न तो किसी की खुशामद करता है और न किसी के साथ पक्षपात ही करता है। जहाँ किसी की प्रशंसा करनी हो, वहाँ मुक्त हृदय से करता है। किन्तु मतलबी नहीं होता,अपना स्वार्थ साधने के लिए कभी प्रशंसा नहीं करता।
शिक्षित व्यक्ति राष्ट्रीय होता है
शिक्षित व्यक्ति अपने देश का नागरिक होने में गौरव का अनुभव करता है। आज देश में अनेक तथाकथित बुद्धिजीवियों को इंग्लैंड, अमेरिका व यूरोप आदि देश अपने देश भारत से अधिक अच्छे लगते हैं। उनके मन में अपने देश के प्रति हीनता बोध भरा हुआ है, जबकि सही अर्थ में शिक्षित व्यक्ति हीनता बोध से मुक्त होता है। और अपने देश की जीवन दृष्टि से अवगत होता है, और उसका ही अनुसरण करता है। राष्ट्रीयता उसमें सहज होती है।
संक्षेप में कहा जाये तो शिक्षित व्यक्ति एक अच्छा व्यक्ति होता है। अच्छा होने व शिक्षित होने में कोई विशेष अन्तर नहीं है। आज के शिक्षित व्यक्ति में ये गुण दिखाई नहीं देते। यह उनका दोष नहीं है, अपितु हमारी शिक्षा प्रणाली का दोष है,जो विद्यार्थियों को देश की मिट्टी से नहीं छोड़ती। हमने न तो शिक्षा के लक्ष्य को ठीक से परिभाषित किया है, और न उसका सही स्वरूप ही समझा है। हमें इस ओर शीघ्रता से ध्यान देना चाहिए।
(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)
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