– रवि कुमार
क्या कभी प्रातःकाल अचानक पेट दर्द, खट्टी डकार या दस्त हुए है? क्यों हुए इसका कारण खोजने का प्रयास हुआ? शायद नहीं! ‘जो हुआ, पता नहीं कैसे हुआ’ यह कहकर चिकित्सक से दवा ले ली अथवा घर पर कुछ ऐसे आपातकाल के लिए दवा रखी है, उसमें से ले ली। चिकित्सक के पास विशेषकर आयुर्वेद के चिकित्सक के पास किसी भी रोग को दिखाने के लिए गए तो एक बात वह चिकित्सक अवश्य पूछता है कि शौच निवृति कैसी होती है या आज प्रातः कैसी हुई? प्रातः शौच निवृति ठीक से न होना या दो-तीन बार जाने पर होना यह सामान्य बात हो गई है। कभी सोचा है कि यह आम बात क्यों हो गई है? शायद यह भी नहीं!
आहार ठीक से पचे और उससे शरीर में रस (प्रथम धातु) ठीक से बने यह प्रथम बात है।
मनुष्य ने आधुनिकता के नाम पर अपना आहार परिवर्तन किया है। इस आहार परिवर्तन ने स्वास्थ्य संबंधी बहुत अधिक परिवर्तित कर दिया है। आहार परिवर्तन में एक प्रमुख है – वैरोधिक आहार जिसे विरुद्ध आहार भी कहते है। इस अंक में इसी पर विस्तार से चर्चा करने वाले है।
तीन लोगों ने रात्रि भोजन में साबुत उड़द की दाल खाई। हरियाणा में सावन मास में फिरनी खाने का प्रचलन है। सोने से पूर्व दूध में फिरनी डालकर खाई। तीन में से एक व्यक्ति का स्वास्थ्य अगली प्रातः खराब हुआ, दूसरे का उससे अगले दिन और तीसरे का तीसरे दिन। एसिडिटी, दस्त आदि हुआ। वर्षा ऋतु में दूध व दूध से बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। उड़द की दाल गरिष्ठ होने के कारण सबसे देरी से पचने वाली है। रात्रि में जठराग्नि कम प्रज्ज्वलित होती है। उड़द की दाल और दूध का मेल नहीं है। दोनों का रात्रि में सेवन करने से स्वास्थ्य खराब होगा ही। ये है विरुद्ध आहार।
विरुद्ध आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचा विकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अष्टौमहागद अर्थात् आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है।
चरक संहिता में विरुद्ध आहार के विषय में वर्णन है –
पथ्य पथोऽनपेत यद्यच्चोक्तं मनसः प्रियम्। यच्चाप्रियमपथ्यं च नियतं तत्र लक्षयेत् ॥ ४५ ॥ मात्राकालक्रियाभूमिदेहदोषगुणान्तरम्। प्राप्य तत्तद्धि दृश्यन्ते ते ते भावास्तया तया ॥४६॥
तस्मात् स्वभावो निर्दिष्टस्तथा मात्रादिराश्रयः। तदपेक्ष्योभयं कर्म प्रयोज्य सिद्धिमिच्छता ।।
(चरक सुत्रस्थान 26/45-46)
उपरोक्त सूत्रों में 17 प्रकार के विरुद्ध आहारों का वर्णन है। समझने योग्य कुछ सिद्धांतों का वर्णन कर रहा हूँ।
१ गर्मी में गर्म प्रकृति (तासीर) व सर्दी में ठंडी प्रकृति (तासीर) के खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित है। अब सर्दी में ठंडी आइसक्रीम खाने के लिए कोई मना करे तो कहा जाता है कि ‘आजकल तो चलता है’। बेसन का हलवा यदि गर्मी में खाएंगे तो कठिनाई रहेगी ही।
२ हर मानव शरीर की भी दो प्रकार की प्रकृति (तासीर) है – उष्ण (गर्म) और सर्द (ठंडी)। आहार भी शरीर की प्रकृति अनुसार सेवन करना अपेक्षित है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में मानव शरीर की प्रकृति अनुसार ही रोग निवारण होता है।
३ ऋतुचर्या अनुसार भोजन नहीं किया तो विरुद्ध आहार माना जाता है। ऋतुचर्या के साथ क्षेत्र विशेष की जलवायु का भी प्रभाव रहता है।
४ समय विरुद्ध आहार अर्थात बेसमय खाना एवं प्रतिदिन समय बदल कर खाना भी विरुद्ध आहार माना जाता है। एक आहार से दूसरे आहार के मध्य कम समय रखना भी हानिकारक है।
५ किए हुए भोजन के पचने पर ही खाना। यदि बिना पचे ही खाया तो हानिकारक है।
६ प्रातः शौच निवृति का बाद ही आहार का सेवन अपेक्षित है, उससे पूर्व नहीं और अधूरी शौच निवृति पर भी नहीं।
७ भूख लगने पर आहार लेना; बिना भूख के लेना भी हानिकारक होता है। कम भूख लगने पर अधिक आहार लेना भी अहितकर है।
८ आधा पका हुआ अथवा अधपका भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
९ विरुद्ध प्रकृति वाले खाद्य पदार्थों को एक साथ सेवन करना अधिक अहितकर है। लंबे समय में अनेक असाध्य रोगों का कारण इसका प्रकार का विरुद्ध आहार है। यथा दूध के साथ नमक का सेवन त्वचा रोगों का जन्मदाता है। इसी प्रकार दूध के साथ खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन भी हानि पहुंचाता है।
‘आजकल तो चलता है‘ यह कहकर अनेक विसंगतियां हमारे समाज के आहार तंत्र में आ गई है। जैसे- पपीता व दूध का मेल नहीं है परंतु पपीता-शेक पीते है जिसमें दोनों होते है। प्रातः जलपान में दही, परांठा और चाय; दही और चाय विरुद्ध है। विवाह समारोह में एक समय में व्यक्ति दस व अधिक प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करता है। जीभ के स्वाद के नाम पर स्वास्थ्य को ताक पर रख देता है। दही की प्रकृति दोपहर बाद बदल जाती है। दही के बारे में चरक संहिता में वर्णन है – ‘नक्तं दधी न भुन्जीत’ अर्थात दोपहर बाद दही नहीं खाना चाहिए। अतः सायंकाल दही का सेवन वर्जित है। एक दीदी ने बताया कि घर में शिशु को जल्दी-जल्दी जुकाम-सर्द आदि हो जाता था। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? उनकी सास-माँ ने बताया कि इसे दोपहर बाद दही खिलाना बंद करे। दीदी ने ऐसा ही किया और शिशु का स्वास्थ्य ठीक रहने लगा।
दूध के साथ शहद वर्जित है। दूध के साथ आम का बेजोड़ मेल है परन्तु खट्टे आम के साथ नहीं। अगर कोई खट्टा फ़ल दूध के साथ खाने वाला है वो एक ही है आवला। दूध व दही का मेल बिलकुल नहीं। प्याज और दूध कभी एक साथ न खाये। दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तभी शरीर को इसका लाभ होता है।
जो अन्न द्विदलीय है (दो भागों में टूटा हुआ) के साथ दही का प्रयोग वर्जित है। जैसे- उड़द की दाल और दही एक दुसरे के शत्रु हैं। रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है परन्तु परांठा-पूरी आदि तले हुए खाद्य पदार्थों के साथ के साथ वर्जित है। फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं।
खाने के साथ भी फल नहीं खाने चाहिए। भोजन के बाद चाय पीने से कोई लाभ नहीं है। यह गलत धारणा है कि भोजन के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। मीठा अगर भोजन से पहले खाया जाए तो अच्छा है क्योंकि तब न सिर्फ यह सरलता से पचता है, बल्कि शरीर को हित पहुंचाता है। भोजन के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है।
विरुद्ध आहार को ध्यान में रखते हुए आहार के सामान्य नियमों को आत्मसात कर स्वयं के जीवन का अंग बनाने की महती आवश्यकता है। अंग्रेजी में कहा गया है – ‘Prevention is Better than Cure’. रोग होने पर चिकित्सा लेने से पूर्व रोग उत्पन्न ही न हो इस विषय में प्रयास करे। ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ इसी भाव से संभव है।
ऋतुचर्या | अपथ्य (सेवन न करें) |
बसंत : चैत्र-बैशाख | कफ को बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ, दही, उड़द की दाल, चने की दाल, बासी भोजन, खट्टे व अत्यधिक मीठा, भारी (गरिष्ठ) भोजन |
ग्रीष्म : ज्येष्ठ-आषाढ़ | कटु (मिर्ची जैसा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), उष्ण वीर्य (गर्म तासीर वाले) पदार्थ |
वर्षा : श्रावण-भाद्रपद | अधिक मीठे पदार्थ, नदी का तथा वर्षा का जल, तक्र(छाछ), सत्तू, अधिक जल पीना, पत्तेदार सब्जियों का अधिक सेवन |
शरद : आश्विन-कार्तिक | क्षार, वसा, तेल सेवन, भरपेट भोजन, दही |
हेमंत : मार्गशीर्ष-पौष | ठंडा भोजन, नपातुला (थोड़ा भोजन), रूक्ष भोजन (रूखा-सूखा भोजन), हल्का भोजन, मिर्च मसालेदार भोजन |
शिशिर : माघ-फाल्गुन | ठंडा भोजन, ज्यादा मिर्च मसालेदार भोजन, कड़ी चीजें, हल्का भोजन, चना, जौ, बाजरा जैसा रूखा भोजन |
(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
और पढ़ें : ऋतुचर्या अनुसार भोजन
आज के समय के हिसाब से बहुत उपयोगी जानकारी। सदर प्रणाम
सौरभ वार्ष्णेय
प्रचार विभाग ब्रज प्रांत
विद्या भारती