अन्तरिक्ष के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां

✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता

अंतरिक्ष के क्षेत्र में किसी भी उल्लेखनीय प्रगति को वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाता है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में की गई प्रगति एक देश और समाज की वैज्ञानिक श्रेष्ठता और प्रतिष्ठा का प्रतिबिंब तो होती ही है परंतु यह प्रगति किसी भी देश को अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है और शक्तिशाली भी बनाती है। आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है इस प्रतिष्ठा यात्रा में भारत के कई राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों तथा वैज्ञानिकों का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनमें सुविख्यात अंतरिक्ष यात्री स्वर्गीय कल्पना चावला का अपना एक विशेष स्थान है। उनके जन्मदिन के अवसर पर भारत की अंतरिक्ष में उपलब्धियों और योगदानकर्ताओं को स्मरण किया जाना अपेक्षित है।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के प्रवेश की कहानी 1960 के दशक में प्रारंभ होती है और वैसे यही समय विश्व के शक्तिशाली देशों के द्वारा अंतरिक्ष के क्षेत्र में गतिविधियों का प्रारंभिक दौर भी है। अन्तरिक्ष में खोज करने लायक साधन बीसवीं सदी में ही जुट पाए, 1945 में विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद एक समय था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अंतरिक्ष अन्वेषण की दौड़ में सबसे आगे थे। शेष विश्व के साथ भारतीयों के लिए भी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास करने का लगभग असंभव था। अमेरिका ने इस समय संचार उपग्रह के माध्यम से टोक्यो ओलंपिक का सारे विश्व में सीधा प्रसारण कर तहलका मचा दिया था।

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई ने उसी समय अनुभव कर लिया कि आने वाले समय में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से समाज और देश के विकास के नए सोपान रखे जाएंगे। अहमदाबाद में भौतिकी शोध प्रयोगशाला की स्थापना के बाद डॉक्टर साराभाई इसके निदेशक बने और योग्य, तीक्ष्ण-बुद्धि वैज्ञानिकों के एक समर्पित समूह के रूप में भारत के अंतरिक्ष प्रगति की यात्रा प्रारंभ हुई।

1961 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना हुई और भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक नियुक्त किए गए। 1962 में डॉक्टर साराभाई और डॉक्टर भाभा के सहयोग से इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) बनी। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, रॉकेट इंजीनियरों के इस समूह के सदस्य थे। डॉ. साराभाई के नेतृत्व में तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की गई। इस कमेटी से ही इसरो नामक संगठन अस्तित्व में आया जो तब से लेकर आज तक भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों का आधारभूत केंद्र बना हुआ है।

अपनी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर में डॉ. कलाम ने लिखा है कि थुम्बा में अंतरिक्ष केंद्र के लिये चुनी गई जगह वहां की रेलवे लाइन और समुद्री तट के बीच स्थित थी। इस क्षेत्र के भीतर एक बड़ा चर्च खड़ा था जिसकी साइट का अधिग्रहण किया जाना था। यह चर्च ही थुम्बा स्टेशन की पहली इकाई के रूप में बना और बाद में इसका नाम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र रखा गया। पहला रॉकेट 21 नवंबर, 1963 को यहां से लॉन्च किया गया था। डॉ. कलाम लिखते हैं कि रॉकेट को चर्च की इमारत में असेम्बल (इकट्ठा) किया गया था। यह प्रक्षेपण कई लोगों के लिए एक चमत्कार था और इसने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ऐतिहासिक शुरुआत को चिह्नित किया।

1975 के वर्ष तक की यात्रा में भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए देश के कई शोध तथा विकास केंद्र स्थापित कर चुका था। 19 अप्रैल 1975 को भारत ने सोवियत संघ के रॉकेट की सहायता से पूरी तरह स्वदेशी पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसके बाद टीवी को आमजन तक पहुंचाने के लिए ‘इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम’ (INSAT) का रास्ता खुल गया। अप्रैल, 1984 में भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर रहे राकेश शर्मा, अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने। तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से बातचीत करते हुए यह पूछा कि अन्तरिक्ष से भारत कैसा दिखता है तो राकेश शर्मा ने उत्तर दिया- “सारे जहाँ से अच्छा”। राकेश शर्मा के इस उत्तर ने तमाम भारतीयों को आल्हादित और रोमांचित कर दिया था।

इसके बाद भारत ने अन्तरिक्ष के क्षेत्र में स्वदेशी पर भी ध्यान देना शुरू किया, क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र था जहाँ पर अमेरिका आदि देश अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहते थे और भारत जैसे विकासशील देश के साथ तकनीक आदि का ज्ञान बाँटने में संकोच करते थे। संघर्ष के बाद ऐसा समय आया जब भारत ने 2008 में अपना पहला चंद्र मिशन यानि चंद्रयान 1 लॉन्च किया था और इसके कुछ ही वर्षों बाद भारत ने 2014 में मंगलयान भी लॉन्च किया। वर्ष 2017 में इसरो ने एक ही रॉकेट में 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर उल्लेक्ख्नीय सफलता प्राप्त की और भारत को अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में स्थापित कर दिया। भविष्य में भारत का लक्ष्य चन्द्रयान-3 के तहत लैंडर को भेजना, प्रथम अंतरिक्ष मानव स्वदेशी मिशन और 2050 तक भारत का खुद का स्पेस स्टेशन विकसित करना है।

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के पास अंतरिक्ष में शोध अध्ययन के लिए समर्पित और विकसित कई सुविधाएं हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं: विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम, तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी), तिरुवनंतपुरम, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी), अहमदाबाद तथा राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो)  के द्वारा अन्तरिक्ष शोध तथा तकनीकी विकास के लिए अंतरिक्ष तक पहुंच प्रदान करने के लिए लॉन्च वाहनों और संबंधित प्रौद्योगिकियों का डिजाइन और विकास किया गया है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी अवलोकन, संचार, नेविगेशन, मौसम विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए उपग्रहों और संबंधित प्रौद्योगिकियों का डिजाइन और विकास करने का दायित्व इसी का ही है।

दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण और विकासात्मक अनुप्रयोगों को पूरा करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इन्सैट) कार्यक्रम का विकास इसरो का उल्लेखनीय कार्य है कि आज भारत की जनता विभिन्न सेटलाइटों के माध्यम से मनोरंजन और ज्ञान के कार्यक्रम देख पा रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष आधारित इमेजरी का उपयोग करके प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण की निगरानी के लिए भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (आईआरएस) कार्यक्रम भारत के भौतिक और आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसरो द्वारा इसके साथ-साथ सामाजिक विकास के लिए अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग तथा अंतरिक्ष विज्ञान और ग्रहों की खोज में अनुसंधान और विकास का कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

(लेखक विद्या भारती विद्वत परिषद के अखिल भारतीय संयोजक है एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र-हरियाणा में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर है।)

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