इस अंक में हम अवरुद्ध बालकों के सम्बन्ध में विचार करेंगे । अवरुद्ध बालक यानि ऐसे बालक जो कक्षा में शेष बालकों की अपेक्षा पिछड़ गए हैं । ऐसे बालकों के प्रति सामान्यतः अध्यापक के मन में व अन्य बालकों में धारणा स्थाई रहती है व धीरे-धीरे अवरुद्ध बालक को स्वयं के विषय में हीनता लगने लगती है और वह स्वयं के प्रति धारणा पक्की कर लेता है ‘मैं ऐसा ही हूँ और ऐसा ही रहूँगा ।’ परन्तु यदि अवरुद्ध बालकों के सम्बन्ध में ठीक से प्रयास किया जाए तो यह धारणा भी बदल सकती है और वह अवरुद्ध से सामान्य श्रेणी में आ सकता है । ध्यान में यह आता है कि इन बालकों के सम्बन्ध में ठोस योजना ही नहीं बन पाती और कहीं-कहीं प्रयास होता भी है तो थोड़े समय के पश्चात् दम तोड़ देता है । अवरुद्ध बालकों के सम्बन्ध में प्रयास की योजना बनाते समय यह जानना महत्वपूर्ण है कि वह अवरुद्ध क्यों है? यानि पृष्ठभूमि समझना आवश्यक है ।
इसके लिए कई बातें उत्तरदायी हो सकती हैं – 1. परिवार की पृष्ठभूमि व वातावरण । 2. परिवार में उसके अध्ययन की चिन्ता करने वाला कोई है या नहीं । 3. वह किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित तो नहीं है । 4. किसी विषय या आचार्य विशेष से तो डर नहीं लगता । आदि-आदि अनेक बातें हो सकती हैं । दूसरा, किस क्षेत्र में अवरुद्ध है? सुनने में, बोलने में, पढ़ने में, लिखने में, समझने में, ग्रहण क्षमता (Grasping Power) कम है । Seating नहीं हो पाती । Basic concept clear नहीं है । जैसे बड़ी कक्षाओं में गणित में कमजोरी का
बड़ा कारण गणना (calculation) न कर पाना जो कि उसे प्रारंभिक कक्षाओं में आना चाहिए ।
एक कार्यकर्ता बड़े दुखी मन से मिलने आए कि एक समस्या के विषय में आपसे समाधान चाहिए । समस्या यह थी कि उनका छोटा बालक 7वीं कक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हुआ । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें । उनसे कुछ बातें पूछने के पश्चात् उनके स्थान के एक व्यक्ति को जो बी.एस.सी के होनहार विद्यार्थी हैं, कुछ बातें बताकर उस बालक की काऊंसलिंग करने को कहा और बाद में रिपोर्ट मुझे बताएं ऐसा भी बताया । उनसे हुई चर्चा और काऊसलिंग रिपोर्ट के बाद कुछ बातें ध्यान में आई । एक, घर में उस बालक के अध्ययन की चिन्ता करने वाला कोई नहीं है, माता-पिता दोनों वर्किंग हैं । दूसरी, Grasping power अच्छी है । और तीसरी, लेखन में अशुद्धियाँ काफी होती हैं । इसलिए सब कुछ आते हुए भी परीक्षा में लेखन के कारण अंक कट जाते हैं । इन सब बातों को ध्यान करते हुए कुछ सुझाव उनको दिए और आशा जताई कि समाधान का रास्ता उनसे निकल आएगा ।
कक्षा-कक्ष में अवरुद्ध बालकों के सम्बन्ध में उपरोक्त बातों को लेकर अध्ययन आवश्यक है । इन बिन्दुओं के अध्ययन के पश्चात उसी अनुरूप समाधान की योजना बनाकर सतत प्रयास आवश्यक है । प्रयास का सातत्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि लंबे प्रयास से ही मूल कारण ठीक हो पाएगा । सतत अभ्यास से ही कोई बात आदत में आती है । कभी-कभी कम प्रयास से भी सफलता मिल जाती है परंतु अध्यापक की मानसिकता में सतत प्रयास का भाव सदा बना रहे । अन्यथा परिणाम तात्कालिक होगा और समस्या अगली कक्षा में ज्यों की त्यों ही रहेगी ।
यह अध्ययन शैक्षणिक सत्र के प्रारम्भ में होना चाहिए और वर्ष भर की योजना बनाकर प्रयास हो । वर्ष के अन्त में तुलनात्मक विश्लेषण हो । अध्यापक के द्वारा किया गया सटीक और थोड़ा अधिक प्रयास बालक के जीवन में सफलता व असफलता के अन्तर को पाट सकता है ।